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    Home»देश»कुटुम्ब के नाम पर राजपूत और सहभोज के नाम पर ब्राहमण विधायकों के सम्मेलन क्यों? भाजपा ही नहीं संघ परिवार भी चौकस हुआ, सपा ने तो निमंत्रण ही दे डाला
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    कुटुम्ब के नाम पर राजपूत और सहभोज के नाम पर ब्राहमण विधायकों के सम्मेलन क्यों? भाजपा ही नहीं संघ परिवार भी चौकस हुआ, सपा ने तो निमंत्रण ही दे डाला

    adminBy adminDecember 26, 2025No Comments13 Views
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    जातियों के आधार पर नागरिकों में विभाजन कभी भी देशहित में नहीं रहा। शायद इसीलिए हमेशा जागरूक नागरिक और महापुरूष जातिवाद का विरोध करते रहे। एकता से जो उपलब्धि होती है वो अब आजादी के रूप में देख सकते हैं क्येांकि जिस तरीके से हमें स्वतंत्रता मिली उसमें हमारे पूर्वजों ने एकजुट होकर लड़ाई लड़ी उसने हमें स्वतंत्रता के माहौल में बोलने का अधिकार दिलाया। कहीं सत्ता प्राप्ति तो कहीं वर्चस्व की लड़ाई या अहम का मुददा अंगुलियों पर गिने जाने वाले लोगेां द्वारा इसे कायम रखने के सभी प्रयास किए शायद इसलिए हर स्तर पर जाति को बढ़ावा देने पर रोक लगाई गई। वाहनों पर जातिसूचक शब्दों, जातीय सम्मेलनों को भी प्रतिबंधित किया गया। मगर वो बात और है कि इसकी चर्चा होती रही है और महापुरूषों को बढ़ावा देने और युवाओं को उनकी प्रेरणा से अवगत कराने में हम अगर जातिगत आधार पर महापुरूषों का महिमामंडन करते हैं तो उसे गलत नहीं कह सकते। बीते दिवस पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर लखनऊ में जो कार्यक्रम हुए इस मौके पर पीएम ने महाराजा बिजली पासी की वीरता को प्रणाम किया तो भगवान बिरसा मुडा, राजा सुहेलदेव, राजा महेंद्र सिंह सहित चौरा चौरी के योद्धाओं को नमन करते हुए उनके आदर्शों का महिमामंडन किया। इसे तो किसी भी रूप में राजनीतिक संबोधन नहीं कह सकते।
    मगर बीते दिनों यूपी में राजपूत विधायकों द्वारा कुटुब के नाम पर और फिर ब्राहमण विधायकों ने सहभोज का नाम देकर जो अपनी जातियों के विधायकों को एकजुट किया उसे लेकर चर्चाएं सभी दलों में गरम है। भाजपा सहित आरएसएस भी इन आयोजनों पर निगाह लगाए हैं और समीक्षा की जा रही है। सपा के एक नेता ने ब्राहमण विधायकों को अपने दल में शामिल होने का न्यौता भी दे दिया लेकिन सहभोज के आयोजक पीएन पाठक द्वारा अपने आवास पर दिए गए सहभोज के बारे में स्पष्ट किया कि यह सिर्फ लिटठी चौखा का कार्यक्रम था ना कि सियासी। इसमें ४६ ब्राहमण विधायकों रत्नाकर मिश्रा, उमेश द्विवदी, शलभ मणि त्रिपाठी, राकेश गोस्वामी, रवि शर्मा, संजय शर्मा आदि शामिल हुए लेकिन इससे यह स्पघ्ट नहीं होता कि ब्राह्मण या राजपूत विधायकों ने कोई लामबंदी की हो लेकिन कहते हैं कि दो नेता भी चर्चा करते हैं तो उसे लेकर सवाल उठने लगते हैं और जिज्ञासा उत्पन्न होने लगती है। ऐसे में राजपूत और ब्राहमण विधायकों का सहभोज के नाम पर इकटठा होना चर्चा ना बने ऐसे कैसे हो सकता है। बताते हैं कि इन बैठकों को लेकर बेचौनी और संभावनाएं बलवती हो रही है। आयोजकों का कहना है कि यह जातिगत राजनीति नहीं हुई मगर यह भी किसी से छिपा नहीं है कि अगर राजनीतिक क्षेत्रों में कोई बात उछलती है तो सुगबुगाहट तो होने लगती है। शायद इसे रोकने के लिए भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पंकज चौधरी ने भाजपा जनप्रतिनिधियों को स्पष्ट रूप से आगाह किया है कि वे किसी तरह की नकारात्मक व जातिवादी राजनीति का शिकार न बनें।
    प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि मीडिया में प्रसारित एक कथित समाचार के अनुसार पिछले दिनों विधानसभा सत्र के दौरान कुछ जनप्रतिनिधियों द्वारा विशेष भोज का आयोजन किया गया था जिसमें अपने समाज को लेकर चर्चा की गई। उन्होंने कहा कि हमने उन जनप्रतिनिधियों से बातचीत की है। सभी को स्पष्ट कहा गया है कि ऐसी कोई भी गतिविधि भाजपा की संवैधानिक परंपराओं के अनुकूल नहीं है।
    प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पंकज चौधरी ने कहा है कि भाजपा विविधितापूर्ण लोकतंत्र में अपनी सर्वव्यापी पहचान आधारित राजनीति को आगे बढ़ा रही है। उन्होंने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा व्यापक रूप से प्रतिरूपित विकासवादी राजनीति और राष्ट्रवाद के सामने प्रदेश के अंदर विपक्ष की जाति आधारित राजनीति का अंत हो रहा है। प्रदेश में भाजपा सामाजिक न्याय, सर्वस्पर्शी एवं सर्वव्यापी राजनीति को स्थापित कर चुकी है। विकास व आदर्शों पर आधारित इस मॉडल ने उत्तर प्रदेश में जाति की राजनीति करने वाले उत्तराधिकारियों को पराजित कर दिया है। प्रदेश में लगातार बदल रहे राजनीतिक परिदृश्य में जाति पहचान के आधार पर राजनीति करने वाले सपा, बसपा और कांग्रेस जैसी पार्टियों का भविष्य अन्धकारमय है।
    भाजपा प्रदेशाध्यक्ष के इस फैसले के बाद यह कह सकते हैं कि वैश्य और जाट समाज के विधायकों के सम्मेलन किसी भी नाम पर नहीं हो पाएंगे। जहां तक सहयोगी दलों की बात है तो उसके नेता विधायक हमेशा ऐसा करते रहे हैं। मुझे लगता है कि इन पर रोक लगाना बिल्कुल सही है क्योंकि पिछली सरकारों में कई बार ऐेसे विषय कई प्रदेश सरकारों की समाप्ति का कारण भी शायद बनते रहे हैं। वैेसे भी २०२७ के विधानसभा और २०२९ के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए इस प्रकार की सरगर्मियों से कोई सही संदेश नही जाता।
    (प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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