Date: 22/12/2024, Time:

कल खुलेंगे बदरीविशाल के कपाट, डोली पहुंची धाम

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बदरीनाथ (चमोली) 11 मई। केदारनाथ, गंगोत्री- यमुनोत्री के कपाट खुलने के बाद अब बदरीनाथ धाम के कपाट खुलेंगे। भगवान बदरीनाथ की डोली आज शनिवार को धाम पहुंच गई है। बदरीविशाल के जयकारों के बीच बड़ी संख्या में श्रद्धालु धाम पहुंचे हैं। 15 कुंतल फूलों से बदरीनाथ मंदिर को सजाया जा रहा है। कल रविवार सुबह छह बजे बदरीनाथ धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे।

भगवान बद्रीविशाल की डोली बद्रीनाथ धाम पहुंच गई है। धाम पहुंचने पर भगवान बद्रीनाथ की डोली का भव्य स्वागत हुआ। इस दौरान भगवान बद्रीनारायण के जयकारों से पूरा क्षेत्र गूंज उठा। सबसे पहले भगवान बदरी विशाल को यात्राकाल में लगाए जाने वाले तेल को पिराने(पीसने) की प्रक्रिया शुरू हुई। परंपरा है कि भगवान बदरी विशाल को प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में चार बजे स्नान कराया जाता है। स्नान के उपरांत तिलों के तेल से भगवान बदरी विशाल का लेपन (मालिश) की जाती है।

तिलों के तेल को भगवान के अभिषेक के लिए शुद्ध माना जाता है। साथ ही इसे अखंड ज्याति में भी प्रयोग किया जाता है। इसलिए इस तेल को सिलबट्टे पर पीसा जाता है। जिससे इसमें कोई मिलावट न हो। परंपरा है कि यह तेल सुहागिन महिलाएं ही पिरोती हैं। यह तेल टिहरी राजदरबार की महारानी के साथ मिलकर पीसा जाता है। इसके बाद इसे एक कलश में रखा जाता है जिसे गाडू घड़ा कहते हैं। महारानी माला राज्यलक्ष्मी शाह की मौजूदगी में शहर की कई सुहागिनों ने तेल निकाला। गणेश पूजन, मूसल पूजन, ओखल पूजन और अग्नि पूजन के बाद शहर की कई सुहागिनों और महारानी ने पीले वस्त्र धारण कर तिलों को कढ़ाई में भूना और ओखली और सिलबट्टा में पिसाकर तेल निकाला।

बताते चले कि विशाल बद्री या बद्रीनाथ में भगवान विष्णु ध्यान मुद्रा में विराजमान हैं। जिस कारण माना जाता है कि यहां भगवान विष्णु छह महीने निद्रा में रहते हैं और छह महीने जागते हैं। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक एक बार यहां भगवान विष्णु घोर तपस्या में लीन थे। तभी इस जगह पर हिमपात शुरु हो गया। जिसे देख कर माता लक्ष्मी विचलित हो गईं।

भगवान विष्णु की तपस्या में कोई बाधा उत्पन्न ना हो ये सोचकर बेर जिसे बद्री भी कहते हैं, उसके वृक्ष में परिवर्तित हो गई। भगवान विष्णु को कठोर मौसम से बचाने के लिए उन्हें अपनी शाखाओं से ढक लिया। तपस्या खत्म होने के बाद जब भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी को बेर के वृक्ष रूप में देखा तो उन्होंने माता लक्ष्मी से कहा कि देवी आपने मुझसे अधिक तप किया है इसलिए मुझसे पहले आप पूज्य हैं। तभी से इस मंदिर को बद्रीनाथ नाम से जाना जाने लगा।

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