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    Home»देश»100 रुपये रिश्वत का 39 साल चला मुकदमा, कोर्ट ने दोषमुक्त किया 83 वर्षीय पूर्व कर्मचारी
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    100 रुपये रिश्वत का 39 साल चला मुकदमा, कोर्ट ने दोषमुक्त किया 83 वर्षीय पूर्व कर्मचारी

    adminBy adminSeptember 23, 2025No Comments9 Views
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    बिलासपुर 23 सितंबर। 83 साल की उम्र में चेहरे पर गहरी झुर्रियां, आंखों में न थमने वाला दर्द और 39 साल तक कोर्ट-कचहरी की थकावट। यही पहचान बन गई है जागेश्वर प्रसाद अवधिया की। रायपुर के इस बुजुर्ग ने अपनी पूरी जिंदगी केवल एक लड़ाई में गुजार दी। 100 रुपए की रिश्वत के झूठे केस में बेगुनाही साबित करने की लड़ाई।

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 39 साल पुराने 100 रुपए के रिश्वत मामले में जागेश्वर प्रसाद अवधिया को बरी कर दिया है। मध्यप्रदेश स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (MPSRTC) रायपुर के बिल सहायक रामेश्वर प्रसाद अवधिया दोषमुक्त हो गए हैं।

    लेकिन साल 1986 में जो दाग लगा, उसने जागेश्वर के पूरे परिवार का भविष्य निगल लिया। नौकरी में तरक्की रुक गई, वेतन आधा हो गया, बच्चों की पढ़ाई अधूरी रह गई और पत्नी का साथ भी छीन गया। अब 83 साल की उम्र में उनके पास बचा है तो बस थकान से झुका हुआ शरीर और आंखों में वो खालीपन, जो इंसाफ मिलने के बाद भी खत्म नहीं होता।

    10 मई 1943 को जन्मे जागेश्वर प्रसाद अवधिया आज 83 साल के हैं। लेकिन उनकी आंखों में अब भी वही दर्द साफ झलकता है, जो 39 साल पहले उनकी जिंदगी पर थोप दिया गया था।

    यह मामला 1986 में लोकायुक्त में दर्ज शिकायत के बाद शुरू हुआ था, जिसमें आरोप था कि अवधिया ने बकाया बिल पास करने के लिए रिश्वत मांगी थी। उन्हें 2004 में निचली अदालत ने दोषी ठहराया था।

    जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की एकल पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष रिश्वत की मांग को साबित करने में विफल रहा है। अवधिया ने बाद में पत्रकारों से कहा कि न्याय में देरी न्याय से वंचित होने के समान है। उन्होंने सरकार से पेंशन की मांग की है।

    साल था 1986। जागेश्वर प्रसाद उस समय मध्यप्रदेश स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (MPSRTC) रायपुर में बिल सहायक के पद पर पदस्थ थे। तभी एक दिन एक कर्मचारी अशोक कुमार वर्मा आया और बकाया बिल पास कराने का दबाव बनाया। जागेश्वर ने साफ कहा, जब तक ऊपर से ऑर्डर नहीं आएगा, मैं बिल पास नहीं कर सकता।

    अगले दिन वही कर्मचारी रिश्वत के तौर पर 20 रुपए लेकर पहुंचा। जागेश्वर ने गुस्से में नोट वापस कर दिए और उसे भगा दिया। लेकिन जागेश्वर को तब ये नहीं मालूम था कि यहीं से उनकी पूरी दुनिया ही बदल जाएगी।

    24 अक्टूबर 1986 सुबह का वक्त था। जागेश्वर घर से तैयार होकर ऑफिस निकल ही रहे थे कि पास की किराने की दुकान पर वही कर्मचारी फिर आ धमका। बात करते-करते उसने 50-50 के 2 नोट जबरदस्ती जेब में डाल दिए। जागेश्वर ने जेब से नोट निकालने की कोशिश ही की थी कि तभी लोकायुक्त की विजिलेंस टीम सामने आ गई।

    विजिलेंस की टीम ने जैसे ही जागेश्वर प्रसाद को पकड़ा, चारों तरफ भीड़ जमा हो गई। लोग कानाफूसी करने लगे कि रिश्वतखोरी करते पकड़ाया है। यही खाते हैं सरकारी कर्मचारी। किसी ने ताना मारा, तो किसी ने उंगली उठाई। सबके सामने उनसे हाथ धुलवाए गए, कैमिकल लगे नोटों को लहराकर दिखाया गया।

    उस वक्त जागेश्वर बार-बार कह रहे थे कि वो निर्दोष हैं, उन्होंने रिश्वत ली ही नहीं, लेकिन किसी ने उनकी एक नहीं सुनी।

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