केंद्र और प्रदेश की सरकारें जितना सांप्रदायिक सौहार्द्र और भाईचारा मजबूत करने और हर व्यक्ति को भयमुक्त वातावरण में सांस देने और अपने हिसाब से संविधान के अनुसार अपने आराध्यों की पूजा अर्चना करने का मौका बिना किसी लाग लपेट के उपलब्ध कराने की कोशिश कर रही है। लेकिन कुछ लोग कभी धार्मिक स्थानों पर चोरी कर तो कभी महापुरूषों की मूर्तियां खंडित कर तो कभी एक दूसरे के धर्म का अपमान करने की कोशिश तथा धर्म भ्रष्ट करने का जो प्रयास कहे अनकहे रूप से हो रहा है वो सही नहीं है। क्योंकि जब इस प्रकार के कार्यो को अंजाम देने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई शुरू होती है तो बिना मतलब का बवाल यह कहकर मचाया जाता है कि कमजोरों या अल्पसंख्यकों के संग दुर्व्यवहार हो रहा है और दोहरी नीति अपनाई जा रही है। जबकि इसे सही नहीं कहा जा सकता।
पिछले कुछ दिनों से समय असमय मीडिया में ऐसी खबरें पढ़़ने सुनने को मिल रही है कि फलां व्यक्ति ने जूस में थूककर लोगों को परोसा या थूक लगाकर रोटी बनाई जा रही थी। तो अब एक नई खबर पढ़ने को मिली कि यूपी के जनपद बागपत के ग्राम ढिकौली के सरकारी स्कूल में कक्षा दो में पढ़ने वाले कुछ मुस्लिम बच्चों ने अपने साथ पढ़ने वाले हिंदू बच्चे को पानी में पेशाब मिलाकर पिला दिया। दुर्गध आने पर जब पता किया गया तो जो सच सामने आया वो बड़ा ही घिनौना और ऐसा करने वालों के प्रति घृणा पैदा करने वाला है क्योंकि दोषी बच्चे ने बताया कि उसके पिता ने उसे ऐसा करने के लिए कहा। जिस पर उसने अपने कुछ और साथियों को मिलाकर इस घटना को अंजाम दिया। जिसे मूत्र जेहाद का नाम खबरों मे दिया जा रहा है। पुलिस मामले की छानबीन कर रही है। क्योंकि नाम सामने आ चुके हैं तो खुलासा भी होगा ही। मगर सवाल यह उठता है कि कुणााल और गौरी नामक बच्चों के पानी में पेशाब मिलाने की घटना को अंजाम देने वाले बच्चों और उनके अभिभावकों को सिर्फ जांच पड़ताल पर नहीं छोड़ा जा सकता। देश में किसी भी प्रकार का ऐसे मामलों को लेकर वैमनस्य पैदा ना हो और यह छोटी छोटी घटनाएं कोई विकराल रूप ना ले या आगे चलकर यह बच्चे अन्य जेहादी घटनाओं से ना जुड़े इसके लिए जरूरी है कि दोषी बच्चों और उन्हें प्रोत्साहित करने वालों को सार्वजनिक रूप से समाज के सामने नंगा किया जाना चाहिए जिससे अन्य ऐसी घटनाओं को अंजाम देने की कोशिश ना करें और अच्छा तो यह है कि खुद मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति जो भाईचारा बनाने के लिए प्रयासरत रहते हैं उन्हें ऐसी घटनाअेां को रोकने के लिए काम करना चाहिए। क्योंकि कांवड़ मेले के दौरान यूपी के कुछ जिलों में कांवड़ियों के रास्तों में पड़ने वाले होटलों ढाबों व दुकानों पर संचालकों के नाम लिखने की जो आवश्यकता पड़ी थी शायद वो ऐसे ही कारणों से महसूस की गई हो और कुछ भी ना हो तो ऐसी घटनाओं से वैमनस्य की भावना बढ़ती और विश्वास की समाप्ति का कारण बनती है। मेरा मानना है कि संविधान के तहत मुस्लिम समाज के प्रमुख लोगों को विश्वास में लेकर सरकार को खाने पीने की चीजों में थूक या मूत्र आदि के प्रयोग की रोकथाम के लिए समय से सकारात्मक कदम उठाने की बहुत बड़ी आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता। देश को एक डोर में बांधे रखने तथा सांप्रदायिक सौहार्द बनाने हेतु ऐसे मुददों को किसी भी रूप में नजरअंदाज किया जाना ठीक नहीं है।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
Trending
- 77वें गणतंत्र दिवस परेड 2026 में शामिल नहीं होंगी दिल्ली और हरियाणा की झांकियां
- डिजिटल अरेस्ट ठगी तो रोकी जानी चाहिए मगर मुआवजा सही नहीं
- किसी भी मुददे पर सहमति हो या असहमति अपशब्दों का उपयोग ठीक नहीं, जबान से निकले बोल कभी वापस नहीं होते
- यूपी के प्रशांत वीर बने सबसे महंगे अनकैप्ड खिलाड़ी
- 600 अरब डालर की संपत्ति वाले दुनिया के पहले व्यक्ति बने मस्क
- दिल्ली में प्रदूषण को देखते हुए मजदूरों को 10-10 हजार रुपये, सरकारी और प्राइवेट दफ्तरों में 50% वर्क फ्रॉम होम
- यूपी के 40 जिलों में विजिबिलिटी शून्य के करीब रहने का IMD अलर्ट
- डिजिटल अरेस्ट पीड़ितों को मुआवजे के सुझाव पर विचार करें: सुप्रीम कोर्ट
