asd उल्लूओं को तंत्र-मंत्र का साधन ?

उल्लूओं को तंत्र-मंत्र का साधन ?

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छोटे कीड़ों जैसे कई प्रकार से आम आदमी को नुकसान पहुंचाने वाले चूहे मेढक छिपकली को अपना भोजन बनाकर समाजहित में सदियों से सक्रिय उल्लुओं को तंत्र मंत्र साधना के लिए अपना शिकार बनाना अब बंद करना चाहिए। आम दिनों में उल्लू के दर्शन करना कोई नहीं चाहता लेकिन दीपावली पर उल्लू को लेकर जो आस्था चली आ रही है उसके चलते दीपावली पर इनके शिकार और बंदी बनाने की घटनाएं के बारे में खूब सुनने पढ़ने को मिलता है। अब इस अंधविश्वास को समाप्त करने के लिए केंद्र और प्रदेश स्तर पर वन विभाग और पशु पक्षी संरक्षण में लगे लोगों द्वारा आवाज उठाई जाने लगी है। जिसके चलते देश में दीपावली के मौके पर तांत्रिकों की निगाह से इस प्रजाति को बचाने की कोशिश अब और तेज हो गई है। इस बारे में एक खबर के अनुसार दीपावली पर्व आते ही उल्लुओं की जान पर आफत आ जाती है। आफत की वजह कोई बीमारी या प्राकृतिक बदलाव नहीं, बल्कि, इंसानी अंधविश्वास है। इसी अंधविश्वास के चलते कुछ लोग दीवाली पर तंत्र-मंत्र, साधना या सिद्धि पाने के लालच में इन उल्लुओं की बलि देते हैं। ऐसे में वन महकमे ने कमर कस ली है। उल्लुओं के शिकार की संभावना को देखते हुए अलर्ट जारी कर दिया है। जिले की पांचों रेंज में डीएफओ राजेश कुमार ने जंगलों में उल्लुओं के शिकारियों, तस्करों और तांत्रिकों पर निगरानी बढ़ा दी है। टीमों को उल्लू की हिफाजत को लेकर गश्त बढ़ाने के साथ ही टीमों को सक्रिय कर दिया गया। टीमों ने कई स्थानों पर छापेमारी भी की।
पारिस्थितिकी तंत्र में उल्लू का अहम रोल
उल्लू को पारिस्थितिकी तंत्र का बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उल्लू तमाम कीटों और छोटे जीवों की संख्या को नियंत्रित करने का काम करता है। अपने इसी अहम रोल के कारण उल्लू किसानों का भी बेहद अहम हिस्सा या मित्र माना जाता है। एक शिकारी पक्षी है, जो छोटे जीवों और कीड़ों को खाकर जीवन बिताता है। इसमें चूहे, मेंढक, छिपकली और कीड़े शामिल हैं। उल्लू की औसत आयु 25 साल मानी जाती है। यह सभी जानते हैं कि जीव जंतु किसी ना किसी रूप में मानव जाति को प्रदूषण से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए जो पशु पक्षी हिंसक रूप धारण कर इंसानों को नुकसान नहीं पहुंचाते उनके शिकार और बंदी बनाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। इसके पीछे उददेश्य कुछ भी क्यों ना हो।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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