लखनऊ 03 दिसंबर। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कैबिनेट ने जेल मैनुअल में प्रथम संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान कर दी, जिसके तहत जेलों में बंदियों से अब जाति आधारित काम नहीं लिया जा सकेगा। साथ ही, बंदियों से जुड़े अभिलेखों में जाति का उल्लेख नहीं होगा। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सुकन्या शांथा बनाम भारत संघ एवं अन्य रिट याचिका पर सुनवाई के दौरान जेल मैनुअल में बदलाव करने का आदेश दिया था।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में आया था कि कई राज्यों के जेल मैनुअल में अब भी ऐसे प्रावधान और शब्दावली शामिल हैं, जो कैदी वर्गीकरण, श्रम आवंटन और जेल अनुशासन जैसे मामलों में जाति-आधारित विभाजन, वंशानुगत पूर्वाग्रह आदि रेखांकित करते हैं।
कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे ऐसे सभी संदर्भों को हटाएं जो जाति, समुदाय, धर्म या सामाजिक स्थिति के आधार पर भेदभाव को बढ़ावा देते हैं। साथ ही यह सुनिश्चित करने को कहा था कि जेल की व्यवस्था संविधान में निहित समानता, गरिमा और भेदभाव-रहितता के संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप हो। कैबिनेट ने जेल अभिलेखों और वारंटों से जाति के कॉलम हटाने तथा वर्गीकरण, कार्य आवंटन और सजा में छूट से संबंधित नीतियों को केवल वस्तुनिष्ठ, विधिसम्मत और सुधारात्मक मानकों पर आधारित करने के लिए मैनुअल में संशोधन किया है।
प्रदेश की जेलों में जाति के आधार पर काम का बंटवारा नहीं होता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इस पर पूरी तरह पाबंदी का आदेश विभाग द्वारा पहले ही जारी किया जा चुका है। केवल रजिस्टर में जाति का उल्लेख किया जाता है। अब रजिस्टर में जाति का उल्लेख नहीं होने से नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो में भेजे जाने वाले डेटा में बदलाव सामने आ सकता है। सूत्रों की मानें तो जेल में सफाई का कार्य करने वाले अनुसूचित जाति के बंदियों को अधिक पारिश्रमिक के साथ सजा में छूट भी मिलती है। जानकारों के मुताबिक केवल हरियाणा और राजस्थान में बावरिया जाति से जुड़े बंदियों को लेकर अंग्रेजों के बनाए जेल मैनुअल में कुछ नियम बनाए गए थे। सभी राज्यों में लागू अंग्रेजों के बनाए जेल मैनुअल में बंदी को जिस कार्य में महारत हासिल है, वह कार्य कराने का प्रावधान किया गया था।

