नई दिल्ली 19 सितंबर। वैवाहिक विवाद से जुड़े मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते कहा कि पति के परिवार से संबंध तोड़ने के लिए पत्नी का लगातार और दबावपूर्ण व्यवहार निश्चित रूप से क्रूरता है और तलाक का आधार है। न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल व न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने कहा कि पति को सार्वजनिक रूप से डांटना, बार-बार अपमानित करना और मौखिक दुर्व्यवहार करना भी मानसिक क्रूरता है।
अदालत ने कहा कि कुल मिलाकर ये सभी कृत्य विवाहित जीवन के सामान्य उतार-चढ़ाव से कहीं आगे का मामला है। ऐसे में इतनी गंभीर मानसिक क्रूरता को सहन करने की प्रतिवादी पति से अपेक्षा नहीं की जा सकती।
अदालत ने कहा कि आधिकारिक समारोह में पति के वरिष्ठ के प्रति अशिष्ट व्यवहार किया था। इसके कारण प्रतिवादी पति को न सिर्फ बेहद शर्मिंदगी उठानी पड़ी, बल्कि वह असहज स्थिति में पड़ गए थे। अदालत ने पाया कि अपीलकर्ता महिलिा लगातार यह कहती रही कि वह संयुक्त परिवार में नहीं रहना चाहती थी। वह अपने पति पर पारिवारिक संपत्ति का बंटवारा करने और अपनी विधवा मां व तलाकशुदा बहन से अलग रहने का दबाव बना रही थी।
मामले पर दोनों पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद अदालत ने माना कि पत्नी द्वारा बार-बार धमकी देना और पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराना भी क्रूरता है जो तलाक का आधार बनेगा। उक्त टिप्पणी के साथ अदलात ने महिला द्वारा पारिवारिक अदालत के निर्णय को चुनौती देन वाली याचिका खारिज कर दी।
महिला ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(एक)(आइए) के तहत पति द्वारा क्रूरता के आधार पर उसके साथ विवाह विच्छेद करने के पारिवारिक न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी। हालांकि, पीठ ने कहा कि पुष्ट साक्ष्यों के माध्यम से पत्नी द्वारा किए गए क्रूरतापूर्ण कृत्यों को स्थापित करने में प्रतिवादी प्रति सफल रहा।