विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में ८४ करोड़ महिलाएं अपने जीवन में कभी ना कभी यौन उत्पीड़न का शिकार हुई। आंकड़ों के अनुसार बीते १२ माह में दुनियाभर में ३१.०६ करोड़ महिलाएं हुई यौन हिंसा का शिकार। देखने में लगता है कि इस बारे में काफी कदम उठाए जा रहे हैं मगर इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में स्थिति बहुत ही खराब है। क्योंकि इनसे पता चलता है कि देश में लगभग ३० प्रतिशत महिलाओं ने पति या साथी द्वारा शारीरिक या यौन ङ्क्षहसा का अनुभव किया है। इस हिसाब से जो दर्शाया गया है उससे पता चलता है कि हर तीसरी महिला ने कम से कम एक बार यौन हिंसा का सामना किया। इससे संबंध एक खबर के अनुसार दुनियाभर में सरकारों की तमाम सख्तियों और महिला उत्थान की कोशिशों के बावजूद महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा की स्थिति चिंताजनक है। विश्व में हर तीन में से एक महिला ने अपने जीवन में कभी न कभी यौन हिंसा का सामना किया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में करीब 31.6 करोड़ महिलाएं अपने पति या साथी से और 1.25 करोड़ किशोरियों ने पिछले 12 महीनों में यौन हिंसा का सामना किया। 84 करोड़ महिलाएं अपने जीवन में कभी न कभी यौन हिंसा का सामना कर चुकी हैं।
प्रगति भी अत्यंत धीमी रू महिलाओं के खिलाफ हिंसा को कम करने की प्रगति भी अत्यंत ही धीमी रही है। पिछले दो दशकों में इसमें प्रति वर्ष केवल 0.2 प्रतिशत की कमी आई है।
परिवार या समाज का डर रू ज्यादातर महिलाएं या किशोरियां परिवार या समाज के दबाव में ऐसे मामलों की शिकायत करने से कतराती हैं। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, जब तक आधी आबादी डर में जी रही हो तो कोई समाज न्यायपूर्ण, सुरक्षित या स्वस्थ नहीं हो सकता।भारत में भी स्थिति खराब
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के आंकड़े भी काफी चिंताजनक हैं। देश में लगभग 30श् महिलाओं ने अपने जीवन में पति या साथी द्वारा शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव किया है। वहीं, 22.4 महिलाएं पिछले 12 महीनों में ऐसी हिंसा का झेल चुकी हैं। करीब 4.1 भारतीय महिलाओं ने 15 वर्ष की उम्र के बाद से किसी गैर-पार्टनर द्वारा यौन हिंसा का जीवन में कभी ने कभी सामना किया है। 1.2 महिलाएं पिछले 12 महीनों में गैर पार्टनर द्वारा हिंसा का शिकार बन चुकी हैं।
रोकथाम के उपायों पर बहुत ही कम खर्च
महिलाओं के खिलाफ हिंसा रोकने वाले कार्यक्रमों पर दुनियाभर में बहुत ही कम पैसा खर्च किया जा रहा है। दूसरी ओर, युद्ध तकनीक से जुड़े नए खतरे, गरीबी और असमानता सभी महिलाओं के लिए जोखिम को और बढ़ा रहे हैं।
जहां तक मुझे लगता है कि उपाय इस बारे में बहुत हो रहे हैं मगर ग्रामीण कहावत ज्यों ज्यो दवा कि मर्ज बढ़ता ही गया के समान इस मामले में उतना सुधार नहीं हो रहा जितना होना चाहिए। हमारी सरकारें दावा कर रही हैं कि महिला उत्पीड़न में अभूतपूर्व कमी आई है और डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के हिसाब से स्थिति खराब है। मेरा मानना है कि अगर डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के आंकड़ें सही नहीं है तो केंद्र सरकार को इस पर विरोध जताना चाहिए क्योंकि इससे देश की छवि तो खराब हो ही रही है महिलाओं में एक प्रकार का खौफ पैदा होने से भी इनकार नहीं किया जा सकता। हो सकता है कि मेरी सोच ठीक ना हो लेकिन महिलाएं समाज के हर क्षेत्र में कंधा से कंधा मिलाकर चल रही हैं। उनका सम्मान और आत्मविश्वास और उनकी तरफ कोई गलत निगाह से ना देख पाए इसके लिए ऐसी रिपोर्टों पर रोक लगनी चाहिए क्योंकि इससे किसी का फायदा नहीं होने वाला। शंका के बादल जरूर उत्पन्न हो सकते हैं। जबकि सरकार इस प्रकार की हिंसा रोकने लिए प्रभावी प्रयास कर रही है। पीड़िताओं को बेहतर सामाजिक मदद और स्वावलंबी बनाने के साथ ही सुरक्षा के लिए कानून लागू करने में भी पीछे नहीं है।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
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