लखनऊ 14 नवंबर। उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद् में मानचित्र स्वीकृति के नाम पर चल रहे, रैकेट का पर्दाफाश हुआ है। परिषद का वास्तुविद् नियोजक मुकेश कुमार रुहेला को आवास आयुक्त डॉ. बलकार सिंह ने तत्काल प्रभाव से निलंबित कर विभागीय जांच के आदेश जारी किए हैं।
आरोप है कि वह केवल चुने हुए निजी आर्किटेक्टों से नक्शा बनवाने वालों के ही मानचित्र पास करता था, बाकी आवेदकों के नक्शे पर जानबूझकर आपत्तियां लगा देता था। उप आवास आयुक्त के नेतृत्व में गठित दो सदस्यीय टीम एक महीने में जांच कर आरोप पत्र तैयार करेगी। परिषद मुख्यालय को पिछले छह महीनों से लगातार शिकायतें मिल रही थीं कि वास्तुविद् नियोजक के कार्यालय में आम जनता के मकानों के नक्शे पास नहीं किए जा रहे।
शिकायतों में यह भी कहा गया कि संबंधित अधिकारी चुनिंदा आर्किटेक्टों से तैयार नक्शे ही पास करता है। दूसरे आर्किटेक्टों या आम आवेदकों द्वारा अपलोड किए गए नक्शों पर बार-बार अनावश्यक आपत्तियां लगा देता था। जांच में पाया गया कि अप्रैल से अब तक स्वीकृत 144 मानचित्रों में 50 प्रतिशत से अधिक केवल दो-तीन निजी आर्किटेक्टों से संबंधित हैं। कई मामलों में फाइलें बार-बार रिटर्न की गईं और बाद में उन्हीं आर्किटेक्टों से नक्शा तैयार कराकर दोबारा जमा किया गया तो फौरन मंजूरी दे दी गई।
परिषद को जनप्रतिनिधियों, विधायकों और सांसदों तक से इस मनमानी की शिकायतें प्राप्त हुईं। इनमें गाजियाबाद की वसुंधरा योजना के कई प्रकरण शामिल हैं, जैसे कि 3/977, 1/1037, 11/704, 3/413, 5/1335 और 12/501 वसुंधरा । इन सभी में एक ही पैटर्न सामने आया। निजी आर्किटेक्ट से नक्शा न बनवाने पर फाइल को बार-बार रोका गया। रिजेक्ट किया गया।
मेरठ क्षेत्र में चुनिंदा नक्शे ही पास करता था
सूत्रों के अनुसार, बीते कई वर्ष से गाजियाबाद, लखनऊ और मेरठ वृत्त में सैकड़ों लोग अपने मकान के नक्शे पास कराने के लिए चक्कर काट रहे थे। परिषद की वेबसाइट पर फाइल अपलोड होते ही आपत्तियों की झड़ी लगा दी जाती थी। जब वही नक्शा किसी खास आर्किटेक्ट के जरिए अपलोड होता तो 24 घंटे में मंजूरी मिल जाती थी। इस पूरे प्रकरण से न केवल आम जनता परेशान हुई बल्कि परिषद की साख पर भी बट्टा लगा। कई जनप्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री कार्यालय तक इसकी शिकायत की थी। अंततः आवास आयुक्त ने औचक जांच कर पूरे मामले का खुलासा किया और कार्रवाई का आदेश दिया।
फोन जमा करवाता था कार्यालय के बाहर
लखनऊ कार्यालय में आने वालों के फोन बाहर जमा करा कर मिलता था। आवास विकास के अधिकारियों ने बताया कि निलंबित वस्तुविद नियोजक किसी को अपने कक्ष में फोन नहीं ले जाने देता था। सबके फोन बाहर ही जमा करवा लेता था। इसके बाद ही मिलता था। लखनऊ के एक और नक्शा पास करने वाले अधिकारी के बारे में भी तमाम शिकायतें आ रही हैं।

