नई दिल्ली 14 नवंबर। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि यदि किसी वस्तु या सेवा की खरीद लाभ कमाने के लिए की जाती है, तो खरीदार उपभोक्ता नहीं माना जा सकता। इसलिए वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत मामला आगे नहीं बढ़ा सकता।
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने मेसर्स पॉली मेडिक्योर लिमिटेड की एक अपील पर फैसला सुनाते हुए राज्य और राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोगों के निष्कर्षों को सही ठहराया।
कंपनी की शिकायत अधिनियम के तहत विचारणीय नहीं है। कहा कि अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने को सॉफ्टवेयर खरीदने वाली कंपनी को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत उपभोक्ता नहीं माना जा सकता, क्योंकि ऐसा लेनदेन वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए होता है।
इसलिए उस लेन-देन के आधार पर याचिकाकर्ता को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में परिभाषित उपभोक्ता नहीं माना जा सकता। कंपनी की अपील को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि यदि लेन-देन का संबंध मुनाफे से है, तो इसे वाणिज्यिक उद्देश्य से किया गया लेन-देन माना जाएगा।
वाणिज्यिक उद्देश्य हेतु सॉफ्टवेयर खरीद
यह अपील चिकित्सा उपकरणों के निर्माता और निर्यातक पाली मेडिक्योर लिमिटेड की 2019 में दिल्ली राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के समक्ष दायर शिकायत से जुड़ी हुई थी। कंपनी ने मेसर्स ब्रिलियो टेक्नोलाजीज प्राइवेट लिमिटेड पर सेवा में कमी का आरोप लगाया था।
कंपनी ने उससे अपने निर्यात-आयात से जुड़े दस्तावेज प्रणाली को व्यवस्थित करने के लिए एक साफ्टवेयर उत्पाद लाइसेंस खरीदा था। पाली मेडिक्योर ने दावा किया कि पूरा भुगतान करने के बावजूद साफ्टवेयर ठीक से काम नहीं कर रहा था और उसने 18 प्रतिशत ब्याज सहित लाइसेंस और लागत की वापसी की मांग की।
राज्य आयोग ने शिकायत खारिज की
हालांकि, राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने 19 अगस्त, 2019 के अपने आदेश में इस आधार पर शिकायत को खारिज कर दिया कि कंपनी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत उपभोक्ता नहीं मानी जाएगी, क्योंकि खरीद वाणिज्यिक उद्देश्य से की गई थी। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने जून 2020 में इस फैसले को बरकरार रखा, जिसके बाद याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया।

