गंगानगर अब्दुल्लापुर गांव की २० से २५ बीघा जमीन जो ३० करोड़ की कीमत की जो देवकीनंदन, फकीर चंद, नवाब सिंह, अरविंद कुशवाहा, बाबूराम कुशवाहा, वीरेंद्र शर्मा, सुभाष कुशवाहा, देवेंद्र कुशवाहा और नरेश कुशवाहा की बताई जाती है। यह ओबीसी में आते हैं उनकी बेशकीमती जमीन पर डॉ नीरज कांबोज डॉ विनोद अरोड़ा डॉ वीपी सिंघल को कब्जा दिलाने की मेडा को इतनी जल्दी क्या है जो उसे लेकर महिलाओं का आंदोलन शुरू हो गया। बताते हैं कि एमडीए ने १९९२ में भी मुआवजा देने की बात कही थी मगर जमीन मालिकों को वो मंजूर नहीं। वो वर्तमान रेट पर मुआवजा मांग रहे हैं ऐसा जानकारों का मानना है। कुछ लोगों का यह मत सही नजर आता है कि मेडा की विकसित कितनी ही कॉलोनियों में जमीन अधिग्रहण, मुआवजा और आवंटन के मामले विचाराधीन है तो फिर डॉ नीरज कांबोज एंड कंपनी के लिए इतनी सहृदयता क्यों। इससे संबंध एक खबर पढ़कर शहर के नागरिकों का कहना है कि सही गलत तो डॉक्टर साहब ही जान सकते हैं लेकिन उनके पिछलग्गू उनकी पहुुंच के बारे में खूब प्रचारित करते हैं कुछ अधिकारियों की धमक के चलते सत्ता के गलियारों में उनकी अच्छी पहुंच है और बड़े लोगों के बच्चों को ड्रॉप पिलाकर जगह बना लेते हैं। यह उनका व्यक्तिगत मामला है लेकिन कई बातें ऐसी है तो सबके सामने आनी चाहिए और नौकरशाहों को भी इस बारे में पता होना चाहिए। एक बुजुर्ग का मौखिक रूप से कहना है कि ८० से ९० दशक के बीच डॉ नीरज कांबोज ने हापुड़ रोड का क्लीनिक वाली जमीन को किसी सैनी महिला से अनेक तरीकों से कब्जाकर उस पर अपना नर्सिंग होम बनाया जिसे लेकर उस समय के सीओ सिविल लाइन सौदान सिंह ने सर्किट हाउस के सामने काफी दूर तक दौड़ाया भी था। एक सज्जन का कहना था कि रूडकी रोड पर अंसल कॉलोनी में इनके द्वारा नर्सिंग होम का निर्माण किया गया था जो बाद में बंद करना पड़ा। कैंट क्षेत्र में हनुमान चौक के पास स्थित नैंसी रेस्टोरेंट में हो रहे अवैध निर्माण को लेकर भी डॉक्टर साहब के नाम की चर्चा होती है। कई सुगबुगाहट है कि गढ़ रोड पर सरकार की निर्माण नीतियों के खिलाफ निर्माण कर कुछ भवन बैंकों को लाखों रूपये महीना किराये पर दे रखा है। सही गलत तो डॉक्टर साहब ही जानते हैं या अधिकारी जांच कराकर दूध का दूध पानी का पानी करेंगे वो ही जाने लेकिन तथ्यों से पता चला है कि डॉक्टर नीरज कांबोज अवैध निर्माण करने और कराने का काम ज्यादा और अपना चिकित्सीय काम कम करना बताए जाते हैं। कुछ जागरूक नागरिकों का यह कथन सही है कि महिलाओं द्वारा आंदोलन किया जा रहा है। वो ठंड में बैठकर अपनी पीड़ा बता रही है। मेडा अधिकारियों द्वारा डॉ नीरज कांबोज से पहले महिलाहों की बात सुन कार्रवाई करनी चाहिए जो सरकारी नीति भी है। वर्तमान में शहर के कई डॉक्टर अपना डॉक्टरी का काम कम और अपना निर्माण कर मोटा किराया ज्यादा वसूल रहे हैं। सरकार हित में डॉक्टर नीरज कांबोज और उनके सरपरस्तों के दबाव में आकर किसान और महिलाओं का उत्पीड़न नहीं होना चाहिए। यही शासन और सरकार की नीति है। एक चर्चा है कि अभी पिछले वर्ष डॉक्टर नीरज कांबोज द्वारा पीएल शर्मा पर स्थित एक कंप्यूटर की दुकान गैलेक्सी के संचालक को भी यह कहकर कि थानेदार हमारी मर्जी से नियुक्त होता है धमकाने का प्रयास किया गया था। उससे पूर्व गढ़ रोड पर एक नागरिक से ऐसी ही बातों को लेकर इनकी हाथापाई हुई थी बताते हैं।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
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