जैसे हिंसक कुत्ते, बंदर, और अन्य जानवरों से आम आदमी को छ़ुटकारा दिलाने के लिए सरकार के साथ साथ अदालत द्वारा भी हर स्तर पर प्रयास के साथ साथ सख्त निर्देश और बजट भी दिया जा रहा है। इसी प्रकार जगह जगह गंदगी कूड़े के पहाड़ और उससे उत्पन्न प्रदूषण, शहर हो या गांव अनियोजित विकास के चलते जाम की समस्या, महिला उत्पीड़न, शिक्षा आवास और विकास प्राधिकरणों में फैले भ्रष्टाचार कुछ ऐसे विषय है कि सभी प्रयासों के बाद भी भविष्य में क्या होगा यह अलग बात है फिलहाल सुधार की गुंजाइश नजर नहीं आ रही है। अब स्थिति यह हो गई है कि इनसे संबंध विभागों के अफसरों की लापरवाही और उदासनीता का यह हाल है कि भले ही मीडिया में यह विषय सुर्खियों में रहते हो लेकिन आम आदमी अब इनके बारे में बात करना और पत्रकार लिखने से बचने की भी कोशिश करते हैं लेकिन यह ऐसी जनसमस्याएं हैं जिनसे हर किसी को दो चार होना पड़ रहा है। इनसे होने वाले नुकसान से सरकार अनभिज्ञ हो ऐसा भी नहीें है मगर पता नहीं वो क्या कारण है कि भरपूर पैसा सुविधाएं तथा जनता का साथ होने के बाद भी विभागीय अफसर इन समस्याओं से छुटकारा दिलाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं।
बताते चलें कि यह कुछ ऐसे विषय हैं जिनसे नागरिकों को छुटकारों और इनके समाधान के लिए सरकार ने नियम बनाएं हैं। अभियान भी चलाए जा रहे हैं और बजट भी बढ़ गया है। मगर परिणाम वही ढाक के तीन पात। आखिर होगा क्या। अब तो ज्यादातर नागरिक ऐसी चर्चा चलने पर यही दोहराते नजर आते हैं।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
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