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    Home»देश»संविधान के प्रति विश्वास बना रहे जजों से दुर्व्यवहार की घटनाओ को रोकने के लिए हो पूर्ण इंतजाम
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    संविधान के प्रति विश्वास बना रहे जजों से दुर्व्यवहार की घटनाओ को रोकने के लिए हो पूर्ण इंतजाम

    adminBy adminNovember 13, 2025No Comments4 Views
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    वर्तमान समय में जब आम आदमी कभी कभी कई मामलों में हर ओर से हताश और निराश हो जाता है तो उसे इंसाफ मिलने और उसके मामले में न्याय होने का भरोसा सिर्फ अदालत और न्यायाधीशों पर ही बरकरार रहता है। कुछ वर्ष पूर्व मैंने लिखा था कि अगर कोई पुलिसवाला किसी व्यक्ति को एक थप्पड़ मार दे तो बवाल खड़ा हो जाता है और लोग सड़क पर उतरकर उसका विरोध तक करने लगते हैं। कुछ अन्य मामलों में भी फैसलों का विरोध जमकर होता है लेकिन किसी न्यायालय में जज जब कोई फैसला सुनाते हैं तो ज्यादातर लोग सिर झुकाकर उसे मानते हैं। कोई असंतोष भी होता है तो ऊपरी अदालत में जाकर अपनी बात कहने की कोशिश की जाती है लेकिन निर्णय का खुला विरोध कहीं नहंीं होता। क्योंकि लगभग सभी को मालूम होता है कि जो फैसला आया वो सही हो सकते हैं।
    लेकिन आजकल जो अदालत की गरिमा पर हमला और उसके मान सम्मान को ठेस पहुंचाने की कोशिश हो रही है जैसा कुछ माह पूर्व अधिवक्ता द्वारा जज पर जूता फेंकने जैसी घटना हुई। और अब कई बार अपशब्दों का उपयोग भी मौखिक रूप से करने के साथ ही कुछ लोग लिखित में भी गलत तरीके से अपनी बात को रखने जिससे न्यायालय और न्यायाधीश के खिलाफ किया जाता है उसे उचित नहीं कहा जा सकता। मेरा मानना है कि लोकतंत्र में संविधान के तहत हर व्यक्ति को अपनी बात कहने और अभिव्यक्ति का अधिकार प्राप्त है। लेकिन उसका तरीका न्यायाधीश या अदालत ही नहीं आम आदमी के प्रति सम्मानजनक होना चाहिए। बीते दिनों एक मामले में अदालत की गरिमा पर हमला करने की कोशिश की गई और बाद में माफी मांग ली गई। इससे कोई भी दोष मुक्त नहीं हो सकता। जस्टिस पर जूता उछालने के मामले में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने ऐसे मामलों की पुनरावृति रोकने के लिए सुझाव मांगे। वकील राकेश किशोर ने अनिच्छा दिखाए जाने के बाद भी ऐसे मामलों को गंभीरता से कार्रवाई करने दिल्ली हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय एवं जस्टिस तुषार राव की पीठ ने कहा कि हम याचिकाकर्ताओं की चिंता को समझते हैं। ऐसे मामलों में बार सदस्यों को नहीं सभी को ठेस पहुंचती है
    होश संभालने से अब तक कई बार यह शब्द सुनने को मिलते रहे हैं कि हर व्यक्ति को बहुत सोच समझकर बोलना चाहिए क्योंकि कमान से निकला तीर तो वापस आ सकता है दीवार का छेद भरा जा सकता है लेकिन जुबान से निकली बात वापस नहीं आती। इसलिए मेरा मानना है कि आम आदमी का संविधान में विश्वास बना रहे और न्यायाधीशों के प्रति जो सम्मान की भावना है वो बनी रहे और न्यायालय चाहे जिले की हो या सुप्रीम कोर्ट उसकी गरिमा से खेलने की कोशिश कोई ना कर पाए। इसलिए यह जरूरी है कि हर स्तर पर जूता फेंकने अपशब्द कहने या दुर्व्यवहार की कोशिश ना हो पाए इसके लिए ठोस प्रयास किए ही जाने चाहिए। राजनेता दुर्व्यवहार करने वाले को माफ करते हैं तो यह उनकी विन्रमता कही जा सकती है लेकिन अगर न्यायापालिका से जुड़े किसी विभूति का अपमान किया जाए तो वो संविधान पर हमला मेरी निगाह में है और इसके दोषियों को बख्शा नहीं जाना चाहिए क्योंकि ऐसी घटनाओं को अंजाम देने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती है तो दूसरों को भी ऐसा करने का प्रोत्साहन मिलेगा और न्यायालय से इंसाफ मिलने की भावना कमजोर पड़ सकती है। इस तथ्य को देखते हुए मेरा मानना है कि जूता फेंकने की घटना हो या अपमान करने की कोशिश उसे अंजाम देने वाले को कानूनी शिकंजे में कसा जाना चाहिए। यह जरूर है कि मामलों के जल्दी निस्तारण और जांच के बाद फैसलों की बात जो नागरिकों में होती रही है उस पर जिम्मेदारों को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता को भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
    (प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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