केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पहली बार बैंक के उपभोक्ताओं और आम आदमी के कार्यों को आसानी से उपलब्ध कराए जाने व बैंकों के लॉकर में रखे धन व सामान की सुरक्षा के लिए एक जनवरी २०२६ से एक अप्रैल २०२६ के बीच आरबीआई सेे २३८ बैकिंग नियमों का ड्राफ्ट बनवाया है। उसे लागू करने की जो बातें सामने आ रही है वो आशाजनक है। बताते हैं कि दस नवंबर तक इस बारे में उपभोक्ताओं और जनता से सुझाव मांगे गए हैं। कहा जा रहा है कि लॉकर में रखा सामान गायब हुआ तो बैंकों को भुगतना होगा। खबर है कि २३८ नियमों का जो ड्राफ्ट तैयार किया जा रहा है उसके तहत साइबर ठगी के मामलों में अनदेखी किए जाने पर जुर्माना, बुजुर्गों को घर पर बैंकिंग सुविधा उपलब्ध कराना। केवाईसी के नियमों को सरल बनाना, ऋण के नियमों में सुधार की व्यवस्था होगी। बताते हैं कि लॉकर में रखे सामान का लॉकर शुल्क का सौ गुना तक का जुर्माना बैंक की तरफ से ग्राहक को दिया जाएगा। बता दें कि पूर्व में जनवरी २०२३ में लॉकर समझौते में बैंक पिछड़े क्योंकि आरबीआई ने बैंकों को बैंकों की लॉकर सुविधा के साथ समझौते के आदेश दिए थे जो २० प्रतिशत भी लागू नहीं कर पाए।
क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक के अफसरों द्वारा इस बारे में दस नवंबर तक सुझाव मांगे गए हैं तो मेरा कहना है कि बैंकों के लॉकर में रखे पूरे सामान की भरपाई बैंक करे और इसके लिए समयानुसार वो उपभोक्ता से सामान की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। क्योंकि लॉकर के शुल्क का सौ गुना कोई महत्व नहीं रखता। वर्तमान में सौ रूपये से २०० तक शुल्क बताते हैं अब इसका सौ गुना का अंदाजा लगा सकते हैं वो लॉकर धारक के लिए ऊंट के मुंह में जीरे के समान होगा।
सभी बैंक कर्मियों को हिन्दी आना और उसमें काम करना अनिवार्य हो।
अगर सुधार की बात है तो बैंकों का ज्यादातर कार्य से संबंध जो फार्म उपलबध कराए जाते हैं वो कम शब्दों में हिन्दी में हो।
उपभोक्ता से लोन देते समय जो फार्म भरवाए जाते हैं उसे कुछ जरूरी बिंदुओं को समाहित कर हिन्दी में छपा होना चाहिए ।
दस बजे से शाम पांच तक बैंककर्मी लंच को छोड़ अपनी सीट पर हो जिससे ग्राहको को कोई परेशानी ना हो।
साइबर ठगी के बढ़ रहे मामलों में कमी लाने हेतु बैंक खातों की गोपनीयता बढ़ाई जाए।
कोई भी बैंक कर्मी किसी प्रकार के घोटाले में पाया जाता है तो समय से पूर्व उसे सेवानिवृत किया जाए।
अगर रिजर्व बैंक ऐसे नियमों का पालन करता हे तो पीएम की आम आदमी के बारे में सोचने का लाभ आम नागरिकों को मिल सकता है।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
