कहते है कि जो धर्म के मार्ग पर नहीं चलता और उसे नहीं मानता वो समाज के लिए भी कुछ नहीं कर सकता और उसका कोई बजूद भी कहीं नहीं होता चाहे वो अपने को कितना ही तीरमारखां समझ लें। शायद यहीं कारण है कि वर्तमान समय में भरपूर महंगाई और समय का आभाव होने के बाद भी देशभर में पहले तो यह व्यवस्था शहरों में ही नजर आती थी लेकिन अब गांव देहातों में भी भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण जी के जीवन से जुड़ी राम कथा व श्रीमदभागवद् कथा के आयोजन आये दिन होने लगे है। पहले यह धार्मिक कार्यक्रम कुछ पैसे खर्च कर और लोगों को जोड़कर सम्पन्न हो जाते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है। इन पर करोड़ों खर्च होते है। भव्य पंडाल बनाये जाते है और व्यवस्था की जाती है और भक्तों को जोड़ने के लिए किया जाता भरपूर प्रचार प्रसार। इसलिए कुछ लोगों का कहना यह सही है कि जो ऐसे धार्मिक आयोजन करते है वो सम्मान और आदर के पात्र है। क्योंकि अगर कुछ लोगों के लिए वीआईपी और अति वीआईपी व्यवस्थाऐं होती है तो आम धार्मिक जन को भी कथा सुनने और भगवान का स्मरण करने का मौका मिलता है। समाज में बहुत से लोग ऐसे होते है जो धर्म को मानने का दिखावा नहीं करते और धार्मिक स्थलों पर भी नहीं जाते। लेकिन कई बार देखा है कि ऐसे लोग भी मन से धर्म को बहुत मानते है। और इसका प्रचार करने वालों का सम्मान भी देते है। क्योंकि समाज को सही मार्ग दिखाने का ऐसे आयोजन अत्यंत महत्वपूर्ण है।
देखने में आया है कि आयोजक पूरी दुनिया में शोहरत हासिल करने में सफल साधु संतों व प्रमुख नागरिकों को तो भरपूर तरीके से आमंत्रित करते है और चाहते है कि वो उनके कार्यक्रमों में आये और आने पर उनका सम्मान व सत्कार भी किया जाता है। मगर कई मौकों पर सुना और देखा है कि ऐसा भूलवश होता हो या इतजाम की व्यवस्थाओं में दिमाग से उतर जाता हो मगर जो भी हो जाने अजाने में आयोजक और उनके सहयोगी स्थानीय मंदिरों के पुजारियों अपने शहर के बड़े संत महात्माओं महामंडलेश्वरों व प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों के संस्थापकों को बुलाना भूल जाते है जो शायद सही नहीं है। क्योंकि कोई कह कुछ भी लें भले ही वो दो समय की रोटी जुटाने के लिए प्रयासरत रहते हो लेकिन जिसमें वो कार्यरत रहते है वो धार्मिक स्थल छोटा हो या बड़ा गली मौहल्ले में हो या प्रमुख स्थान पर उसके पुजारी तक भगवान की आराधना धर्म का प्रचार भक्तों को सही मार्ग दिखाने का काम बाखूबी करते है।
इसलिए कुछ लोगों के कथन से हम भी सहमत है कि हर आयोजन में बड़े संत महात्माओं के साथ ही अपने यहां के धार्मिक क्षेत्रों में सक्रिय पुजारियों से लेकर महामंडलेश्वरों को सहसम्मान आमंत्रित कर कथा स्थल पर उनके बैठने और निमंत्रण देने की पूर्ण सम्मानजनक व्यवस्था की जाए तो वो भागवत कथा हो या राम कथा शिव पुराण हो या सुन्दरकांड जो भी हो उसकी सफलता की गांरटी तो हो ही जाती है आये विद्वान अपने यहां जाकर आने वाले भक्तों से आयोजन पर चर्चा और वहां हुई कथा की महत्ता पर विचार खूब करते है। ऐसे में आये कथावाचक और उनके द्वारा दिखाये गये सद्मार्ग का संदेश घर घर तक पहुंचता है। और आयोजकों की चर्चा भी कुछ लोगों से निकलकर पूरे समाज में पहुंची है।
(प्रस्तुतिः- अंकित बिश्नोई राष्ट्रीय महामंत्री सोशल मीडिया एसोसिएशन एसएमए व पूर्व सदस्य मजीठिया बोर्ड यूपी संपादक पत्रकार)
