चित्रकूट 26 अगस्त। संत प्रेमानंद महाराज पर टिप्पणी के बाद मथुरा के संतों में उबाल है। विवाद बढ़ता देख तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने कहा- मैंने प्रेमानंद पर कोई अभद्र टिप्पणी नहीं की है। वह मेरे बालक के समान हैं। वह जब भी मेरे पास मिलने आएंगे। मैं उनको गले से लगाऊंगा, उन्हें आशीर्वाद दूंगा। साथ ही भगवान रामचंद्र से उनकी दीर्घायु की कामना करूंगा।
मैंने किसी तंत्र के खिलाफ टिप्पणी नहीं की है और न करता हूं। मैं आचार्य होने के नाते सबको यह कहता हूं कि संस्कृत पढ़ना चाहिए। चोला पहनकर जो लोग कथा कहते हैं, उनको कुछ आता-जाता नहीं है। उनको पढ़ना सीखना चाहिए।
इससे पहले रामभद्राचार्य के उत्तराधिकारी आचार्य रामचंद्र दास ने भी सफाई दी थी। उन्होंने कहा था, जगद्गुरु सबके गुरु होते हैं। सारी प्रजा उनके पुत्र के समान होती है। जगद्गुरु की बातों को इस तरह से प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए। प्रेमानंद जी से गुरुदेव (जगद्गुरु रामभद्राचार्य) को किसी प्रकार की ईर्ष्या नहीं है।
प्रेमानंद महाराज या बाकी कथावाचक पिछले काफी समय से मंच से तमाम तरह की बातें बोल रहे थे। कभी बच्चियों के बारे में कभी माताओं के बारे में, इसे लेकर मीडिया में डिबेट चल रही थी। इसी बात को लेकर जगद्गुरु रामभद्राचार्य के मन में पीड़ा थी।
अगर प्रेमानंद महाराज में चमत्कार है, तो वे उनके सामने एक अक्षर संस्कृत का बोलकर दिखाएं। मेरे द्वारा कहे गए किसी भी श्लोक का अर्थ समझाएं। उनकी लोकप्रियता क्षणभंगुर है। प्रेमानंद ‘बालक के समान’ हैं।”
तुलसी पीठाधीश्वर पद्म विभूषण जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज ने यह बातें एक इंटरव्यू में कहीं थीं, जो सोशल मीडिया पर वायरल है। इस बयान पर ब्रज के साधु-संतों में नाराजगी है।
रामभद्राचार्य ने कहा- ‘मैंने प्रेमानंद के लिए कोई भी अभद्र टिप्पणी नहीं की है, मेरी दृष्टि में वह बालक व पुत्रवत हैं. एक आचार्य होने के नाते मैं सबको कहता हूं, संस्कृत का अध्ययन करना चाहिए और प्रत्येक हिंदू को संस्कृत पढ़नी चाहिए. आज भी मैं पढ़ता हूं. 18-18 घंटे पढ़ता हूं. कई लोग चोला पहन कर आ जाते हैं और बयानबाजी करते हैं. मैंने अपने उत्तराधिकारी रामचंद्र दास को भी कहा है कि संस्कृत का अध्ययन करें. प्रेमानंद जी पर मैंने कोई टिप्पणी नहीं की है. मैं चमत्कार को नमस्कार नहीं करता हूं. मैंने अपने शिष्य धीरेंद्र शास्त्री को भी कहा, बेटे पढ़ो-लिखो. भारत की दो प्रतिष्ठाएं हैं. संस्कृति और समस्कृति. संस्कृति को पढ़ने के लिए संस्कृत की नितांत आवश्यकता है. विधर्मी शक्तियां सनातन धर्म को निर्बल बनाने के लिए तोड़ मरोड़ कर पेश करती हैं, संतों में भेद डालती हैं. सभी संतों को एक हो जाना चाहिए. मेरे लिए जो भ्रम फैलाया जा रहा है, वह गलत है. मैंने कोई टिप्पणी नहीं की. जब भी प्रेमानंद जी मुझसे मिलने आएंगे, मैं उन्हें आशीर्वाद दूंगा, हृदय से लगाऊंगा.उनके स्वास्थ के लिए भगवान श्री राम से प्रार्थना भी करता हूं.’
रामचंद्र दास ने जारी किया बयान: दूसरी तरफ रामचंद्र दास ने जो बयान जारी किया है. उसमें कहा है कि, वर्तमान समय में जगतगुरु के एक साक्षात्कार को लेकर जो विवाद खड़ा किया जा रहा है, वह नहीं किया जाना चाहिए था. गुरुदेव ने स्पष्ट रूप से यह कह दिया है कि प्रेमानंद से उन्हें किसी प्रकार की ईर्ष्या नहीं है. वे एक अच्छे नामजापक संत हैं और भगवान का नाम जपने वाला हर एक व्यक्ति गुरुदेव की दृष्टि में सम्मान के योग्य होता है. अपने प्रवचनों में गुरुदेव बार-बार यह बात कहते हैं कि जो राम-कृष्ण को भजता है, वह चाहे जिस धर्म, वर्ण, अवस्था अथवा लिंग का हो, आदर के योग्य है. हम सबको अपना मानते हैं, तो प्रेमानंद जैसे नामजापक संत को पराया कैसे मान सकते हैंं.
साक्षात्कार में जगतगुरु ने स्पष्ट कहा है कि अवस्था और धार्मिक व्यवस्था, दोनों प्रकार से प्रेमानंद उनके पुत्र के समान हैं. विचार कीजिए कि पिता के मुंह से निकला वाक्य कठोर प्रतीत होने पर भी हृदय का भाव कल्याणकारी ही होता है. जगतगुरु सबके गुरु होते हैं. सारी प्रजा उनके लिए पुत्र के समान होती है. अतः जिस प्रकार एक पिता अपनी संतान का अहित नहीं चाहता, उसी प्रकार किसी भी सनातनी का अहित जगतगुरु नहीं चाहते.
रामभद्राचार्य के कथन को तोड़ा-मरोड़ा गया
जारी बयान में कहा गया है कि रामभद्राचार्य वर्षों से कहते आ रहे हैं कि मैं चमत्कार में नहीं, बल्कि पुरुषार्थ पर विश्वास करता हूं. इतनी अवस्था होने पर भी गुरुदेव की दिनचर्या का अधिकांश समय पढ़ने और पढ़ाने में व्यतीत होता है. धर्मशास्त्रों के अध्ययन में जनता की रुचि कैसे उत्पन्न हो, इसके लिए गुरुदेव सदा प्रयत्नशील रहते हैं. जो लोग इसे ईर्ष्या का नाम दे रहे हैं, उन्हें पुनः विचार करने की आवश्यकता है.
साथ ही कहा कि रामभद्राचार्य की बातों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया जाता है, ताकि संतों पर लोगों की श्रद्धा समाप्त हो जाए. अतः, सचेत होने की आवश्यकता है. राम मंदिर के लिए गवाही देने की बात हो अथवा 200 से अधिक ग्रंथ लिखकर धर्म की महत्तम सेवा करने की बात, गुरुदेव हरेक प्रकार से सनातनियों के लिए उपकारी ही सिद्ध हुए हैं. घर के बड़े-बुजुर्ग कटु वाक्य कह भी दें, तो क्या बदले में उन्हें भी कटु वाक्य ही कहकर बदला लेना चाहिए?
प्रेमानंद के समर्थन में आए शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद
शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने मुंबई में चातुर्मास प्रवास के दौरान प्रेमानंद का समर्थन किया है. उन्होंने एक वीडियो जारी करते हुए रामभद्राचार्य को आत्ममुग्ध बताया है. कहा कि जो व्यक्ति सुबह-शाम सिर्फ राधा-कृष्ण का नाम लेता हो तो वह पूरा दिन संस्कृत ही तो बोलता है. ऐसे में संस्कृत बोलने ना बोलने को लेकर सवाल उठाया जाना गलत है.