asd बेटियों के जन्म पर पेड़ लगाने वाला पिपलांत्री गांव मिसाल, पवित्र वनों के लिए बनाई नीति

बेटियों के जन्म पर पेड़ लगाने वाला पिपलांत्री गांव मिसाल, पवित्र वनों के लिए बनाई नीति

0

नई दिल्ली 19 दिसंबर। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) को देशभर में वनों के प्रशासन और प्रबंधन के लिए एक व्यापक नीति बनाने, इनके संरक्षण में स्थानीय समुदायों को शामिल करने और उनके अधिकारों की रक्षा वाली नीतियां और कार्यक्रम बनाने की सलाह दी। कोर्ट ने इस दौरान राजस्थान के पिपलांत्री को एक मिसाल बताया, जहां बेटी के जन्म पर 111 पेड़ लगाने की परंपरा है।

जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एसवीएन भट्टी और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि भारत में हजारों समुदाय-संरक्षित वन हैं जिन्हें पवित्र वन कहा जाता है। व्यापक नीति के तहत पर्यावरण मंत्रालय को प्रत्येक राज्य में पवित्र वनों के राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के लिए एक योजना विकसित करनी चाहिए। पीठ ने कहा, सर्वेक्षण में उनके क्षेत्र, स्थान और सीमा की पहचान होनी चाहिए। वहीं कृषि गतिविधियों, मानव निवास, वनों की कटाई या अन्य कारणों से इसके आकार में कोई कमी न आने देना सुनिश्चित करना चाहिए। पीठ ने कहा कि राजस्थान के पिपलांत्री गांव जैसे मॉडल दर्शाते हैं कि समुदाय संचालित पहल किस तरह सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने में कारगर साबित हो सकती है। यह मॉडल पूरे देश में लागू करने की जरूरत है।

राष्ट्रीय वन नीति, 1988 का उल्लेख करते हुए पीठ ने बताया कि यह वनों में प्रथागत अधिकार रखने वाले लोगों को वन पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा और सुधार में मदद के लिए प्रोत्साहित करने के महत्व को रेखांकित करती है, क्योंकि वे अपनी जरूरतों के लिए इन वनों पर निर्भर हैं।

पवित्र वनों को विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न नामों से जाना जाता है: हिमाचल प्रदेश में देवबन, कर्नाटक में देवरकाडु, केरल में कावु, मध्य प्रदेश में सरना, राजस्थान में ओरन, महाराष्ट्र में देवराई, मणिपुर में उमंगलाई, मेघालय में लॉ किनतांग/लॉ लिंगदोह, उत्तराखंड में देवन/देवभूमि, पश्चिम बंगाल में ग्रामथान और आंध्र प्रदेश में पवित्रवन। सुनवाई के दौरान न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता के परमेश्वर ने कहा था कि विभिन्न राज्यों में पवित्र उपवनों का प्रबंधन विभिन्न तरीकों से किया जाता है। कुछ की देखरेख ग्राम पंचायतों या इस उद्देश्य के लिए बनाए गए स्थानीय निकायों द्वारा की जाती है, जबकि अन्य बिना किसी औपचारिक शासन के केवल सामुदायिक परंपराओं पर निर्भर हैं।

शुरुआत गांव के सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल की एक बच्ची की मौत के बाद हुई। संगमरमर के अत्यधिक खनन के कारण यह क्षेत्र पानी की कमी, वनों की कटाई से प्रभावित था। पालीवाल के नेतृत्व में समुदाय ने हर लड़की के जन्म पर 111 पेड़ लगाने की प्रथा शुरू की। पीठ ने पालीवाल की गई पहल की सराहना करते हुए कहा, इसने महिलाओं के खिलाफ सामाजिक पूर्वाग्रहों को कम करने के प्रयासों को भी सकारात्मक गति दी है। 40 लाख से अधिक पेड़ लगाए गए हैं, जिससे भूजल स्तर लगभग 800-900 फुट ऊपर उठा है और जलवायु 3-4 डिग्री तक ठंडी हुई है। स्थानीय जैव विविधता में भी सुधार आया है। देशी प्रजातियों के रोपण ने स्थायी रोजगार भी उत्पन्न किए हैं, खासकर महिलाओं के लिए काम उपलब्ध कराया है। वहीं, कन्या भ्रूण हत्या जैसी घटनाओं में भी कमी लाने में कारगर साबित हो रहा है।

अमन सिंह की तरफ से ओरांस, देववन और रुंध के संरक्षण के लिए दायर आवेदन पर शीर्ष कोर्ट ने उनके पारिस्थितिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व को देखते हुए वन (संरक्षण) अधिनियम के तहत वन का कानूनी दर्जा देने का निर्देश दिया। न्यायालय ने प्रत्येक पवित्र उपवन की विस्तृत ऑन-ग्राउंड और सैटेलाइट मैपिंग के लिए कहा।

पीठ ने कहा कि पिपलांत्री गांव जैसी पहल को अन्य हिस्सों में सतत विकास और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए सरकारी स्तर पर सक्रिय उपायों की आवश्यकता है। पीठ ने कहा, केंद्र और राज्य सरकारों को सक्षम नीतियां बनाकर इन मॉडलों का समर्थन करना चाहिए।

Share.

Leave A Reply

sgmwin daftar slot gacor sgmwin sgmwin sgm234 sgm188 login sgm188 login sgm188 asia680 slot bet 200 asia680 asia680 sgm234 login sgm234 sgmwin sgmwin sgmwin sgmwin asia680 sgmwin sgmwin sgmwin asia680 sgmwin sgmwin sgmwin sgmwin sgmwin sgmwin sgm234 sgmwin sgmwin sgmwin sgmwin sgmwin ASIA680 ASIA680