asd मम्मी अभी सोने दो बेटे उठो स्कूल जाना है, बच्चों व अभिभावकों का आर्थिक मानसिक उत्पीड़न रोकने हेतु सुबह 9 से 10 और शाम 4 से 5 के बीच स्कूल खुलने व बंद करने की सरकार तय करे नीति

मम्मी अभी सोने दो बेटे उठो स्कूल जाना है, बच्चों व अभिभावकों का आर्थिक मानसिक उत्पीड़न रोकने हेतु सुबह 9 से 10 और शाम 4 से 5 के बीच स्कूल खुलने व बंद करने की सरकार तय करे नीति

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बेटा उठो स्कूल जाना है मम्मी थोड़ी देर और सो जाने दो जैसे शब्द समाज के ज्यादातर घरों में जहां पढ़ने की उम्र वाले बच्चे है रोज ही सुनने को मिलते है। क्योंकि कच्ची नींद में उठने से मानसिक रूप से परेशान बच्चे और उन्हें उठाने की प्रताड़ना से मजबूर अभिभावक दोनों का ही स्कूल संचालकों की कार्यप्रणाली के चलते उत्पीड़न तो हो ही रहा है। समय की बर्वादी भी अभिभावकों की हो रही है और उन्हें आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ रहा है।
अब आप सोचेंगे कि यह कैसे हो रहा है तो समझिए। शाम को ज्यादातर परिवार बच्चों को ट्यूशन पढ़ने भेज देते है अच्छे नंबर आये इस आशा में रात को कई अभिभावक बच्चों को पढ़ाने बैठ जाते है ऐसे में ना तो मानसिक विकास और शारीरिक विकास होता है और न ही उन्हें पूरी तरह खेलने व सोने का मौका मिल पाता है। दूसरी तरफ सुबह 7 और8 बजे बच्चों को स्कूल पहुंचाने और दोपहर को लाने अथवा उनकी खबर रखने के लिए काम काजी अभिभावक परेशान रहते है। क्योंकि उन्हें भी दफ्तर जाना होता है और बच्चों को तैयार करने की आपाधापी में समय कब निकल गया और दफ्तर जाने का हो गया इसका अंदाजा भी नहीं लग पाता है। इसी प्रकार घरेलू महिलाओं को भी समय से पहले उठने और पति व बच्चों को नाश्ता व खाना बनाना है पहले सुबह बच्चों को भेजने की तैयारी करों और बाद में पति व कामकाजी बेटों के लिए व्यवस्था बनाओ उसमें ही वो घिरकर रह जाती है। और बाद में घर की सफाई बर्तन कपड़े धोने में समय कब बीता पता नहीं चलता और जैसे ही थोड़ा समय मिला बच्चों के आने का समय हो गया। तो पहले उन्हें खाना खिलाओ और हालचाल पूछो इतने परिवार के कामकाजी पुरूषों का आवगमन हो जाता है। कहने का मतलब यह है कि सुबह सवेरे उठी महिला रात तक दो मिनट चैन की सास लेने का भी मौका नहीं निकाल पाती है।
आज सुबह योगा करते और पैदल घूमते बच्चों को स्कूल जाते हुए तो देखा तो दिमाग में आया यह तो स्कूल संचालकों के कारण पूरा परिवार ही आर्थिक व मानसिक उत्पीड़न झेल रहा है। पाठक खुद ही सोचे की क्या यह उचित है। तो मेरी तो यह सोच है कि देश भर के सभी जिलों में केन्द्र व प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग के मंत्री और अधिकारियों को बच्चों और अभिभावकों की इस समस्या को ध्यान में रखते हुए स्कूल खुलने का समय सुबह साढ़े नौ बजे और बंद होने का शाम साढ़े चार बजे होना चाहिए। क्योंकि स्कूल संचालक कोई मिशनरी काम तो कर नहीं रहे है। शिक्षा के मंदिरों को ज्यादातर ने दुकान बना दिया है। प्राईवेट स्कूलों की तो फीस इतनी है कि उसे जुटाने के लिए कुछ परिवारों को छोड़ दे तो बाकी को इसे जुटाने के लिए एड़ी से चोटी तक जोर लगाना पड़ता है।
मेरा मानना है कि अगर स्कूल का समय ऊपर दिये गये तथ्य के हिसाब से निर्धारित किया जाए तो एक तो बच्चों को सुबह आराम से उठने और घर की महिलाओं को तसल्ली से उनका नाश्ता और कामकाजी सदस्यों के लिए खाना और टिफिन पैक करने का समय आराम से मिल जाएगा और यह काम आसानी से निपटा सकती हैं। दूसरी ओर बच्चों को छोड़ने और लेने के लिए अलग से जाना पड़ता है अगर सुबह साढ़े नौ बजे और शाम चार व पांच बजे के बीच स्कूल खुलने व बंद करने का समय हो तो कामकाजी अभिभावक महिला हो या पुरूष बच्चों को सुबह स्कूल छोड़ने और शाम को लेते हुए आ जा सकते है। एक तो उससे पेट्रोल डीजल और समय बचेगा और सभी को सुबह शाम आपस में बैठकर बात करने व बच्चों को खेलने का मौक आसानी से मिल सकता है। इसलिए रही बात स्कूल वालों की तो उन्हें तो जब फीस मिलती है तो समय आने जाने का बच्चों व अभिभावकों के हिसाब से करना होगा। हां यह जरूर है कि जल्दी स्कूल बंद कर उसके बाद जो शिक्षकों से कार्य लिया जाता है वो स्कूल संचालक नहीं ले पाएंगे। मगर शिक्षकों को कोई समस्या नहीं होगी क्योंकि उन्हें अब भी चार बजे तक रूकना पड़ता है। मेरा साफ कहना है कि बच्चों की शिक्षा के लिए व्यवस्था ऐसी हो जो स्कूलों के संचालकों के हिसाब से न हो बच्चों के हिसाब से हो। यही वक्त की मांग और समय की आवश्यकता है।
जिस प्रकार पूर्व मेें सरकार ने बच्चों के बस्तों का बोझ कम करने सहित बच्चों के विकास के लिए नीतियां बनाई उसी प्रकार सुबह दस बजे के आसपास स्कूल खुलने व शाम चार व पांच बजे के आसपास की नीति निर्धारित की जाए और इस अवधि में बच्चों को स्कूल में सभी विषयों की पढ़ाई कराने के अतिरिक्त बीच में एक घंटे खेलने का मौका और स्पोर्टस की गतिविधियों में शामिल होने का मौका मिलेगा। तथा खेलने कूदने व स्कूल का काम भी घर में निपटाने का मौका आसानी से मिलेगा। कुल मिलाकर कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि शिक्षा नीति छोटे से लेकर बड़े छात्रों व अभिभावकों के हिसाब से बनाई जाए न की व्यापारी बने कुछ स्कूल संचालको का बैंक बैंलेस बढ़ाने और उनकी सुविधाओं का ध्यान में रखकर हो।

(प्रस्तुतिः अंकित बिश्नोई संपादक पत्रकार पूर्व सदस्य मजीठिया बोर्ड यूपी संस्थापक सोशल मीडिया एसोसिएशन एसएमए)

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