इंटरनेट और स्मार्टफोन के आने के बाद सोशल मीडिया हर उम्र के लोगों की जिंदगी का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। अब यह सिर्फ एक मनोरंजन का साधन नहीं रहा, बल्कि लोगों की दिनचर्या, व्यवहार और सोच को गहराई से प्रभावित कर रहा है। एक स्टडी में सामने आया कि यह प्रभाव बच्चों के लिए बेहद नुकसानदायक है। रिसर्च कहती है कि सोशल मीडिया एप्स बच्चों के दिमागी विकास को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहे हैं।
आज के समय में स्कूल, कॉलेज, व्यवसायिक और अव्यवसायिक सब कोई सोशल मीडिया से जुड़ा है। यूजर्स फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट पर हर समय सक्रिय रहते है। यह एक एल्गोरिदम है जो यूजर्स को बार-बार एप खाेलने के लिए मजबूर करता है। जिससे वे अपने वास्तविक कार्यों पर फोकस नहीं कर पाते हैं। नई स्टडी में इस तरह की डिजिटल आदतों को हानिकारक बताया गया है।
सोशल मीडिया से दिमाग पर क्या प्रभाव पड़ता है? इसे लेकर अमेरिका में एक रिसर्च की गई। जिसमें हजारों बच्चों को शामिल किया गया। रिपोर्ट में सोशल मीडिया पर ज्यादा वक्त बिताने वाले बच्चों में ध्यान कम होने, बेचैनी और उतावलेपन जैसे लक्षण सामने आए। जोकि ADHD का संकेत हो सकता है। शोधकर्ता बताते हैं कि छोटी उम्र में बच्चों के दिमाग का विकास चल रहा होता है। ऐसे में डिजिटल डिस्ट्रैक्शन का असर और गंभीर हो जाता है।
ADHD यानी Attention Deficit Hyperactivity Disorder। यह एक न्यूरो-डेवलपमेंटल डिसऑर्डर है जिसमें बच्चा एक जगह बैठ नहीं पाता है। किसी चीज पर फोकस नहीं कर पाता और लगातार बेचैन रहता है। छोटे-छोटे कामों पर भी उसका ध्यान जल्दी भटक जाता है। स्टडी में सामने आया कि सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग इन लक्षणों को बढ़ाने में भूमिका निभा रहा है।
रिसर्च टीम ने बच्चों की रोजाना डिजिटल एक्टिविटी का मूल्यांकन भी किया है। जिसमें पाया कि जो बच्चे दो से तीन घंटे टीवी या वीडियो देखते हैं, घंटो सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं और घंटो तक वीडियो गेम खेलते हैं, उनमें एडीएसडी जैसे लक्षण ट्रिगर करते हैं।
नोटिफिकेशंस सबसे बड़ा खतरा
स्वीडन के Karolinska Institute और Oregon Health & Science University ने मिलकर शोध किया। रिसर्चर्स ने बताया कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के नोटिफिकेशंस बच्चों के दिमाग की फोकस करने की क्षमता को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। अचानक आने वाले एक नोटिफिकेशन बच्चे के दिमाग को उसके काम के फोकस से हटाता है और दूसरे एप की ओर ले जाता हे। प्रोफेसर टॉर्केल क्लिंगबर्ग के अनुसार, सोशल मीडिया बाकी डिजिटल मीडिया से बिल्कुल अलग तरह दिमाग में हस्तक्षेप पैदा करता है।
स्टडी के अनुसार, नौ साल की उम्र में बच्चे सोशल मीडिया पर लगभग 30 मिनट बिताते हैं, लेकिन 13 साल की उम्र तक यह समय बढ़कर 2.5 घंटे हो जाता है। यह इसलिए भी चिंताजनक है क्याेंकि ज्यादातर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अकाउंट बनाने की न्यूनतम उम्र 13 साल निर्धारित की गई है। जबकि बच्चे पहले ही इससे प्रभावित हो रहे हैं।
रिसर्च का कहना है कि यह सिर्फ स्क्रीन टाइम नहीं है। यह एप्स का डिजाइन, नोटिफिकेशन, अपडेट्स और अनंत स्क्रॉलिंग बच्चों के दिमाग पर दबाव बनाते है। यह संरचनात्मक प्रभाव बच्चे की क्षमता, ध्यान और मानसिक संतुलन पर सीधा असर डालता है।

