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    Home»देश»वंदे मातरम गीत राष्ट्र के सम्मान और आम आदमी की भावनाओं से जुड़ा है, आरोप प्रत्यारोप की बजाय इसे सर्वमान्य बनाने का हो प्रयास
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    वंदे मातरम गीत राष्ट्र के सम्मान और आम आदमी की भावनाओं से जुड़ा है, आरोप प्रत्यारोप की बजाय इसे सर्वमान्य बनाने का हो प्रयास

    adminBy adminDecember 9, 2025No Comments14 Views
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    राष्ट्रगीत वंदेमातरम को लेकर लोकसभा में हुई चर्चा में सबने अपने विचार और सुझाव रखे। लोकतंत्र में किसी को अपनी भावना व्यक्त करने से नहीं रोका जा सकता लेकिन हमारे खून और मन में प्रमुखता से समाए वंदे मातरम शब्द हमारी भावनाओं से जुड़ा है। अब १५० साल बाद इस पर चर्चा की जरूरत क्यों पड़ी। संसद में वंदेमातरम को लेकर हुए वाकयुद्ध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि तुष्टिकरण की राजनीति के दबाव में कांग्रेस ने वंदे मातरम के टुकड़े किए। नेहरु के बाद राहुल भी वंदे मातरम का विरोध कर रहे हैं। कांग्रेस इस पर झुकी इसलिए देश का बंटवारा हुआ। मुस्लिम लीग के सामने नेहरु को अपना सिंहासन डोलता दिखाई दिया। पीएम ने चर्चा के दौरान आपातकाल की याद भी दिलाई और कहा कि जिन्ना के विरोध के बाद नेहरु ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस को चिटटी लिखकर जिन्ना से अपनी सहमति जताते हुए लिखा कि वंदेमातरम की आनंद मठ वाली प्रवृति मुसलमानों को परेशान कर सकती है। उन्होंने कहा कि नेहरू ने लिखा कि इससे मुस्लिम भड़केंगे। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने वंदे मातरम को राष्ट्रगान जैसा सम्मान मिलने की बात उठाई। तो ममता बनर्जी ने कहा कि राष्ट्रीय गीत को लेकर अनावश्यक राजनीति कर रही है भाजपा। सांसद प्रियंका गांधी बोली कि वंदे मातरम देश की आत्मा का महामंत्र है। सरकार बड़ा पाप कर रही है। चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री द्वारा जब राष्ट्रीय गीत के निर्माता बंकिमचंद्र चटर्जी को बंकिम दा कहने पर टीएमसी सांसद ने बाबू शब्द उपयोग करने का आग्रह किया। इसके बाद उन्होंने कहा कि क्या मैं आपको दादा कह सकता हूं। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि राष्ट्रीय गीत गाएं निभाएं नहीं। वंदे मातरम ने सबको जोड़ा। आज के दरारवादी लोग देश को तोड़ना चाहते हैं। वंदेमातरम शब्द को लेकर पक्ष विपक्ष में चले तीखे तीरों के बीच यूपी के कैराना से सांसद इकरा हसन ने अपने संबोधन में वंदेमातरम का अर्थ जब समझाया गया तो संसद में खूब तालिया बजी। उनका संबोधन इस प्रकार रहा वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर कैराना सांसद इकरा हसन ने संसद में विशेष संबोधन दिया। जैसे ही उन्होंने सदन में राष्ट्रगीत वंदे मातरम का शाब्दिक अर्थ समझाया, कई सदस्य हैरान रह गए। उनके भाषण की वीडियो तेजी से वायरल हो रही है।
    इकरा हसन ने अपने भाषण में बताया कि राष्ट्रगीत को लेकर कभी भी अनिवार्यता नहीं रखी गई, बल्कि इसे सम्मान और स्वैच्छिकता के साथ अपनाया गया। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने श्राजधर्म्य का पालन करते हुए यह सुनिश्चित किया था कि वंदे मातरम किसी पर थोपा न जाए, बल्कि लोग इसे सम्मानपूर्वक गाएं। सांसद इकरा हसन द्वारा वंदे मातरम का अर्थ व संदर्भ समझाए जाने पर कई सदस्यों ने आश्चर्य व्यक्त किया। उनके तार्किक और शांत अंदाज वाले भाषण की चर्चा सदन से लेकर सोशल मीडिया तक हो रही है। उनका यह भाषण सोशल मीडिया पर लगातार ट्रेंड कर रहा है, जहां लोग इसे श्संतुलित्य, श्तथ्यात्मक्य और श्शांतिपूर्ण संदेश्य वाला बताकर सराह रहे हैं।
    मुझे लगता है वंदे मातरम को लेकर आरोप प्रत्यारोप करने की बजाय इस गीत का सम्मान कैसे कायम और सर्वमान्य बना रहे यह जरूरी है क्योंकि देश ने हर चुनौती का सामना यह गीत गाकर किया। आगे भी किया जाए। कहने का आश्य सिर्फ इतना है कि जिस प्रकार हम अपने पूर्वजों को नहीं नकार सकते और उनके कार्यों को अपनाते चले आ रहे हैं उसी प्रकार यह भूलकर कि नेहरू ने क्या और अब नेता क्या कर रहे हैं सिर्फ एक भावना को आत्मसात कर काम करना चाहिए कि कि वंदे मातरम सिर्फ गीत नहीं बल्कि देश की एकता बनाए रखने का मूलमंत्र है। इसे लेकर किसी को भी तुष्टिकरण की राजनीति नहीं करनी चाहिए। जो चर्चा हुई और आज भी इस पर जारी रही मुझे लगता है कि पीएम मोदी को इस बिंदु पर एक सर्वदलीय समिति का गठन कर सैद्धांतिक चर्चा करानी चाहिए क्योंकि यह चेतना भी है जिसे गाकर हम अपने दिन की शुरूआत कर सकते हैं।
    (प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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