कहते हैं कि नवजात बच्चे में मां का दूध ही वो सब गुण पैदा करता है जिससे वो जीवनभर अपने पैरों पर खड़ा होकर सोचने समझने की शक्ति होने से जीवन की मुख्यधारा में किस मार्ग पर चलना और क्या निर्णय लेना है यह तय करना सीखता है। कहते भी हैं कि मां के दूध का हक कोई अदा नहीं कर सकता। ऐसे में अगर मां का दूध बिकने लगे और इसके लिए लोग लाइसेंस मांगे तो मुझे लगता है कि इससे बड़ी शर्मनाक बात कोई नहीं हो सकती कि एक बच्चे के मुंह का दूध छीनकर आप दूसरे को पिलाने की कोशिश करें।
वर्तमान समय में सामने खड़े बेरोजगारी और आर्थिक तंगी के चलते जब मां बाप अपने कलेजे के टुकड़ों को किसी को बेचने के लिए मजबूर हो सकते हैं तो ऐेसे में कुछ धनवानों द्वारा अपने बच्चों के लिए मांओं का दूध खरीदना कोई कठिन नहीं होगा। इसलिए मेरा मानना है कि ना तो मां का दूध बेचने की अनुमति दी जाए और ना ही किसी को खरीदने की और इसके लिए लाइसेंस भी नहीं दिया जाना चाहिए वो इस काम को वैध घोषित करता हो। मानवीय दृष्टिकोण से किसी बच्चे को मां के दूध की आवश्यकता है तो इस दूध का कुछ हिस्सा अपने बच्चे की आवश्यकता से निकालकर उसको भी दिया जा सकता है उसमें कोई हर्ज नजर नहीं आता है। इससे संबंध एक खबर के अनुसार भारत खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने साफ कर दिया है कि देश में मां के दूध को बेचा नहीं जा सकता है। इस संबंध में जारी एक एडवाइजरी में कहा कि मानव दुग्ध प्रसंस्करण और बिक्री गलत है। इसके अलावा मां के दूध का व्यावसायिक इस्तेमाल अवैध है। एफएसएसएआई के अनुसार कुछ कंपनियां डेयरी प्रोडक्ट की आड़ में मानव दूध का व्यापार कर रही हैं। वहीं, ब्रेस्ट फीडिंग प्रमोशन नेटवर्क ऑफ इंडिया ने सरकार से ऐसी कंपनियों के खिलाफ कारवाई का अनुरोध किया है। 24 मई को जारी की एडवाइजरी में एफएसएसएआई ने राज्यों को निर्देश दिया है कि मानव दुग्ध के प्रसंस्करण व बिक्री का लाइसेंस देना बंद करें और मानव दुग्ध के व्यावसायीकरण को रोका जाए।
5 साल कैद और पांच लाख जुर्माने की सजा…
एडवाइजरी में कहा गया कि एफएसएसएआई ने एफएसएस अधिनियम, 2006 और उसके तहत बनाए गए नियमों के तहत मानव दूध के प्रसंस्करण व बिक्री की अनुमति नहीं दी है। इसलिए, यह सलाह दी जाती है कि मानव दूध और उसके उत्पादों के व्यावसायीकरण तुरंत रोका जाए। नियमों के किसी भी उल्लंघन पर खाद्य व्यवसाय ऑपरेटरों (एफबीओ) के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इसके उल्लंघन पर 5 साल कैद और पांच लाख जुर्माने की सजा का प्रावधान है।
अगर आवश्यकता हो तो सरकार कुछ ऐसे नियम बना सकती है कि जो आर्थिक रूप से कमजोर महिलाएं भरपूर खानपान की व्यवस्था ना होने से अपने बच्चे लायक दूध भी शायद उपलब्ध नहीं करवा पाती है उन्हें इन बड़े परिवारों को अपने बच्चों के लिए यह अमृत चाहिए वह उन परिवारों को अच्छे रहन सहन और खाना उपलबध कराए जिससे पौष्टिक दूध बच्चों को मिल सके ऐसा करने से कोई व्यापार भी नहीं होगा ओर दोनों दोनों की जरूरतें होगी पूरी। एक प्रकार से देखें तो कुछ लोगों के समक्ष जो आर्थिक तंगी है उसका भी समाधान हो सकता है और यह काम हम हर क्षेत्र में जरूरतमंदों की मदद करते चले आ रहे हैं। और अगर ध्यान से देखें तो समाजवाद का भी उददेश्य रहा होगा तथा महाराजा अग्रसेन द्वारा अपने जमाने में एक रूपया एक ईट जरूरतमंदों को देकर उन्हें स्वालंबी बनाने की प्रथा चलाई थी तो एक दूसरे की मदद कर हम उसे अब भी आगे बढ़ा सकते हैं। मानवीय दृष्टिकोण से सबकी मदद करने का जो महापुरूषों से संदेश मिलता रहा है उसे भी पूरा कर सकते हैं। वैसे भी कहा जाता है कि हे परमात्मा मुझे इतना दे कि अतिथि भी भूखा ना जाए और मैं भी भूखा ना सोउ।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
मां के दूध की बिक्री की नहीं मिलनी चाहिए अनुमति, मानवीय दृष्टिकोण से एक दूसरे की मदद में नहीं है कोई बुराई
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