लोकसभा के सात चरणों में संपन्न होने वाले चुनावों में से छह चरणों का मतदान हो चुका है। सातवें चरण का मतदान एक जून को होगा। पिछले लगभग दो माह से चुनावी घमासान पूरे देश में जारी है लेकिन यह कितने अफसोस की बात है कि पक्ष हो या विपक्ष सभी दलों के नेता अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग अलापने के साथ साथ कोई आरोप लगा रहा है कि फला आयां तो संविधान खत्म कर देगा। आरक्षण खत्म कर देगा। राम मंदिर प्रभावित होगा के साथ साथ गंभीर आरोप व एक दूसरे की कमियां निकालने का कोई मौका नहीं चूक रहे हैं।
मगर लोकतंत्र के इस सबसे बड़े महायज्ञ के रण में अपना मुकददर आजमाने उतरे नेताओं की बात छोड़े तो प्रत्याशी भी जनमानस की समस्याओं को उठाने हेतु तैयार नहीं है। और सबसे बड़ी बात की कल को हमारी रहनुमाई करने वाले प्रतिनिधि आए दिन जगह जगह लग रही आग हो रही ठगी की घटनाओं छेड़छाड़ फर्जी कॉल कागजों पर बन रही योजनाएं और भ्रष्टाचार तथा महंगाई व रेप जैसी वारदातों को रोकने के लिए क्या करेंगे और अब तक संबंधित अधिकारियों द्वारा क्या किया गया और जो असफल रहे उनके खिलाफ क्या कार्रवाई कराई जाएगी यह सवाल पूछने को मतदाता भी तैयार नहीं है। कहीं ऐसा पढ़ने को नहीं मिला कि फलां क्षेत्र के मतदाताओं ने अपने प्रतिनिधि से यह पूछा हो कि देश में एक जगह भयंकर तापमान बढ़ रहा है तो दूसरी जगह बाढ़ आ रही है। तीसरी तरफ ठंड जहां पहले कम थी अब खूब पड़ रही है। इसके लिए बिगड़ती व्यवस्था और पानी की बर्बादी करने वालों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जाएगी और भविष्य में आग बाढ़ ठंड और गर्मी से जो सैंकड़ों लोग मारे जाते हैं उन्हें बचाने और बिगड़ते मौसम को सही स्थिति में लाने और बाढ़ सूखे से आम न मरे इसके लिए क्या योजनाएं बनाई जाएगी इसके लिए नेता और प्रत्याशी ना कुछ बताने को तैयार है और ना ही नेताओं को कोसने वाले कुछ मतदाता मुखर होकर यह पूछने को आगे नहीं आ रहे हैं कि आप लोग संसद में जाकर जनहित के लिए क्या करेंगे और समस्याओं के समाधान के लिए क्या किया जाएगा।
क्योंकि यह सब जानते हैं कि जिन बिंदुओं को लेकर जनता परेशान रहती है उन सबके समाधान के लिए ज्यादातर योजनाएं बनी हुई है और जो आम आदमी से टैक्स वसूला जाता है उसका बड़ा हिस्सा इन्हें लागू करवाने के लिए बने विभागों के अधिकारियों पर खर्च हो रहा है। जहां तक पता चलता है काफी प्रतिशत सरकारी नौकर अपनी जिम्मेदारियों का पालन तो नहीं कर रहे हैं लेकिन भ्रष्टाचारियों को बचाने और संरक्षण देने और जो धन जनहित के लिए आता है उसे अपनी सुविधाओं पर खर्च करने वाले सरकारी बाबुओं के खिलाफ कार्रवाई कर आम आदमी को राहत दिलाने और उनकी समस्याओं के समाधान हेतु तैयार करने हेतु अफसरों पर क्या कार्रवाई करेंगे। आश्चर्य तो इस बात का है कि सरकार चलाने वाले दल के बारे में तो यह कह दें कि उसकी यह सब जिम्मेदारी है इसलिए वो इस बारे में नहीं बोल रहे लेकिन विपक्षी दलों के लिए तो यह मुददे आम आदमी से जुड़ने और जनमानस से अपनी पैठ बनाने के लिए पर्याप्त है फिर भ्ीा वो इस बारे में ना बोलकर एक प्रकार से सरकार चलाने वाले हैं उन्हीं से संबंध मुददों में उलझकर रह गए हैं। सरकार कोई भी बनाएं विपक्ष में कोई भी बैठे अब सबको एक बात समझनी होगी कि 2024 के चुनाव तो निपटते जा रहे हैं। नरेंद्र मोदी और उनके कुछ नेता व मुख्यमंत्रियों का जादू जनता के सिर चढ़कर बोल रहा है तो विपक्ष के नेताओं के भी कई मुददों के कारण बढ़ी लोकप्रियता के चलते जनता का रूझान उनके प्रति कम या ज्यादा है लेकिन अगर राजनेताओं और जनप्रतिनिधियों का रवैया जनसमस्याओं को लेकर यही बना रहा तो यह बात कही जा सकती है कि 2029 के लोकसभा चुनाव में ज्वलंत मुददों की ओर से आंख मीचे रहने वाले दल और नेताओं को लोहे के चने चबाने के समान परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। यह भी कह सकते हैंं कि जो कमाएगा वही खाएगा जिसकी जितनी हिस्सेदारी उतनी भागेदारी के समान जो जनता का जितना काम करेगा और मतदाताओं के निकट जाएगा उन्हीं को ज्यादा भागीदारी और खाने कमाने का मौका मिल पाएगा।
आग लगने, छेड़छाड़, बढ़ते भ्रष्टाचार, फर्जी कॉल ठगी की बढ़ रही घटनाओं महंगाई को रोकने के लिए क्या करेंगे नेता जी बताने को तैयार नहीं, क्यों, यह सबको सोचना होगा
लोकसभा के सात चरणों में संपन्न होने वाले चुनावों में से छह चरणों का मतदान हो चुका है। सातवें चरण का मतदान एक जून को होगा। पिछले लगभग दो माह से चुनावी घमासान पूरे देश में जारी है लेकिन यह कितने अफसोस की बात है कि पक्ष हो या विपक्ष सभी दलों के नेता अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग अलापने के साथ साथ कोई आरोप लगा रहा है कि फला आयां तो संविधान खत्म कर देगा। आरक्षण खत्म कर देगा। राम मंदिर प्रभावित होगा के साथ साथ गंभीर आरोप व एक दूसरे की कमियां निकालने का कोई मौका नहीं चूक रहे हैं।
मगर लोकतंत्र के इस सबसे बड़े महायज्ञ के रण में अपना मुकददर आजमाने उतरे नेताओं की बात छोड़े तो प्रत्याशी भी जनमानस की समस्याओं को उठाने हेतु तैयार नहीं है। और सबसे बड़ी बात की कल को हमारी रहनुमाई करने वाले प्रतिनिधि आए दिन जगह जगह लग रही आग हो रही ठगी की घटनाओं छेड़छाड़ फर्जी कॉल कागजों पर बन रही योजनाएं और भ्रष्टाचार तथा महंगाई व रेप जैसी वारदातों को रोकने के लिए क्या करेंगे और अब तक संबंधित अधिकारियों द्वारा क्या किया गया और जो असफल रहे उनके खिलाफ क्या कार्रवाई कराई जाएगी यह सवाल पूछने को मतदाता भी तैयार नहीं है। कहीं ऐसा पढ़ने को नहीं मिला कि फलां क्षेत्र के मतदाताओं ने अपने प्रतिनिधि से यह पूछा हो कि देश में एक जगह भयंकर तापमान बढ़ रहा है तो दूसरी जगह बाढ़ आ रही है। तीसरी तरफ ठंड जहां पहले कम थी अब खूब पड़ रही है। इसके लिए बिगड़ती व्यवस्था और पानी की बर्बादी करने वालों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जाएगी और भविष्य में आग बाढ़ ठंड और गर्मी से जो सैंकड़ों लोग मारे जाते हैं उन्हें बचाने और बिगड़ते मौसम को सही स्थिति में लाने और बाढ़ सूखे से आम न मरे इसके लिए क्या योजनाएं बनाई जाएगी इसके लिए नेता और प्रत्याशी ना कुछ बताने को तैयार है और ना ही नेताओं को कोसने वाले कुछ मतदाता मुखर होकर यह पूछने को आगे नहीं आ रहे हैं कि आप लोग संसद में जाकर जनहित के लिए क्या करेंगे और समस्याओं के समाधान के लिए क्या किया जाएगा।
क्योंकि यह सब जानते हैं कि जिन बिंदुओं को लेकर जनता परेशान रहती है उन सबके समाधान के लिए ज्यादातर योजनाएं बनी हुई है और जो आम आदमी से टैक्स वसूला जाता है उसका बड़ा हिस्सा इन्हें लागू करवाने के लिए बने विभागों के अधिकारियों पर खर्च हो रहा है। जहां तक पता चलता है काफी प्रतिशत सरकारी नौकर अपनी जिम्मेदारियों का पालन तो नहीं कर रहे हैं लेकिन भ्रष्टाचारियों को बचाने और संरक्षण देने और जो धन जनहित के लिए आता है उसे अपनी सुविधाओं पर खर्च करने वाले सरकारी बाबुओं के खिलाफ कार्रवाई कर आम आदमी को राहत दिलाने और उनकी समस्याओं के समाधान हेतु तैयार करने हेतु अफसरों पर क्या कार्रवाई करेंगे। आश्चर्य तो इस बात का है कि सरकार चलाने वाले दल के बारे में तो यह कह दें कि उसकी यह सब जिम्मेदारी है इसलिए वो इस बारे में नहीं बोल रहे लेकिन विपक्षी दलों के लिए तो यह मुददे आम आदमी से जुड़ने और जनमानस से अपनी पैठ बनाने के लिए पर्याप्त है फिर भ्ीा वो इस बारे में ना बोलकर एक प्रकार से सरकार चलाने वाले हैं उन्हीं से संबंध मुददों में उलझकर रह गए हैं। सरकार कोई भी बनाएं विपक्ष में कोई भी बैठे अब सबको एक बात समझनी होगी कि 2024 के चुनाव तो निपटते जा रहे हैं। नरेंद्र मोदी और उनके कुछ नेता व मुख्यमंत्रियों का जादू जनता के सिर चढ़कर बोल रहा है तो विपक्ष के नेताओं के भी कई मुददों के कारण बढ़ी लोकप्रियता के चलते जनता का रूझान उनके प्रति कम या ज्यादा है लेकिन अगर राजनेताओं और जनप्रतिनिधियों का रवैया जनसमस्याओं को लेकर यही बना रहा तो यह बात कही जा सकती है कि 2029 के लोकसभा चुनाव में ज्वलंत मुददों की ओर से आंख मीचे रहने वाले दल और नेताओं को लोहे के चने चबाने के समान परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। यह भी कह सकते हैंं कि जो कमाएगा वही खाएगा जिसकी जितनी हिस्सेदारी उतनी भागेदारी के समान जो जनता का जितना काम करेगा और मतदाताओं के निकट जाएगा उन्हीं को ज्यादा भागीदारी और खाने कमाने का मौका मिल पाएगा।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
लोकसभा चुनाव 2024: खामोश क्यों रहे मतदाता! आग लगने, छेड़छाड़, बढ़ते भ्रष्टाचार, फर्जी कॉल ठगी की बढ़ रही घटनाओं महंगाई को रोकने के लिए क्या करेंगे नेता जी बताने को तैयार नहीं, क्यों, यह सबको सोचना होगा
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