Date: 10/02/2025, Time:

कुंभ मेला आस्था के साथ सांप्रदायिक सौहार्द्र का भी दे रहा है संदेश

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हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई सब हैं आपस में भाई का जो नारा किसी जमाने में युद्ध के दौरान लगा था वो आज भी तमाम प्रकार के व्यंग्य आरोप-प्रत्यारोप के बाद भी निरंतर साकार हो रहा है। कांवड़ मेले के दौरान दुकानों पर व्यापारी और कर्मचारियों का नाम लिखे जाने और फिर कुंभ मेले में काम करना है तो गंगा स्नान करो आदि मांग करने वाले कुछ नेताओं के बयानों के बावजूद प्रयागराज कुंभ का मेला धार्मिक और सांप्रदायिक सौहार्द्र का प्रतीक बन रहा है। क्योंकि ना तो कहीं से यह खबर पढ़ने को मिली कि किसी मुस्लिम ने नेताओं की मांग के अनुसार व्यवस्था की हो मगर कुंभी में साधु संतों महामंडलेश्वरों के इस कार्य जैसा उन्हें अपने रथ आदि पर स्नान हेतु ले जाने का काम तो मुस्लिम समाज के लोग कर ही रहे हैं। जगह जगह मौनी अमावस्या और बसंत पंचमी के दौरान इस समाज के लोगों ने कुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं के प्रति सदभाव और सहयोग दिखाने में कोई कमी छोड़ी नहीं नजर आती है। एक समाचार से पता चलता है कि कहीं रज्जाक के रथ पर संत जाते दिखे तो कुछ मौकों पर इकबाल और नौशाद का बैंड अमृत स्नान के जोश को दोगुना करता नजर आया। अखाड़ों की शोभा यात्रा में कई बैंड पार्टी मुस्लिम समुदाय की थी बताते हैं। मो. इकबाल अहमद का आजाद बैंड, नौशाद और शमशाद का ग्रेट मास्टर बैंड समेत दूसरी बैंड पार्टियां रथों के आगे धार्मिक गीत बजाते चल रही थीं। ढोल, ताशे स्नान को उत्साहपूर्ण बना रहे थे। और जयकारों के साथ मधुर धुनों में माहौल को धार्मिक बना रखा था।
दूसरी ओर एक खबर के अनुसार महाकुंभ में “अमृत स्नान के दूसरे सबसे बड़े पर्व मौनी अमावस्या पर हादसे के बाद श्रद्धालुओं के लिए मुस्लिम समुदाय ने अपने घरों के दरवाजे खोल दिए थे, उसी प्रकार अब बसंत पंचमी पर श्रद्धालुओं के लिए आवश्यकता अनुसार मस्जिदों, इमामबाड़ों के दरवाजे खुले रहे बताए जा रहे हैं।
मौनी अमावस्या स्नान पर्व पर शहर में गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल देखने को मिली थी। रेलवे स्टेशन जाने वाले रास्ते जब बंद हो गए तो पुराने शहर में मुस्लिम समुदाय ने श्रद्धालुओं के लिए अपने घरों के दरवाजों के साथ मस्जिदों और इमामबाड़ों के दरवाजे खोल दिए ऐसा बताया जा रहा है।
अशरफ का कहना है कि मौनी अमावस्या की घटना के बाद चौक स्थित जामा मस्जिद भी दर्जनों लोगों की पनाहगार बनी। मुस्लिम बहुल इलाके में रात भर लंगर चला। दूसरी ओर ठंड से बचाने के लिए कंबल भी बांटे गए। अमावस्या पर भीड़ को देखते हुए ऐसा बताया जा रहा है कि मुस्लिम समुदाय के लोगों ने बसंत पंचमी पर भी सेवा भाव दिखाया। मुस्लिम समुदाय के लोगों ने श्रद्धालुओं की सेवा और मदद कर भाईचारे का संदेश दिया। स्कूल परिसर में अब वसंत पंचमी पर भी श्रद्धालुओं के लिए व्यवस्था की गई।
युवा नेता अदील हमजा ने भी पैदल चलने वाले श्रद्धालुओं को अपने वाहन उपलब्ध कराए थे। अदील का कहना है कि मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिंदी हैं हम वतन है, हिंदोस्तां हमारा। इस निशुल्क सेवा में जैद, अरीब, अजय त्रिपाठी, सुहेल, आहद, आजम ने भी योगदान दिया था।
अहमद अंसारी का कहना है कि इलाहाबाद हमारा शहर गंगा-जमुनी तहजीब का शहर है। हम हिन्दुओं के त्यौहार में बढ़चढ़ कर आगे रहते हैं। उन्होंने अपने लोगों को तैयार रखा है कि बाहर से भी मेहमान (श्रद्धालु ) आ रहे हैं, उनके खान-पान और किसी भी जरूरत के लिए सभी को तैयार रहना होगा। उन्होंने बताया कि अल्लाह का आदेश है कि भूखे को खाना खिलायें और जरूरतमंदों की हर संभव मदद करे। हम लोग उसी पर अमल करते हुए भाईचारा मजबूत करने के लिए प्रयासरत हैं।
भले ही ऐसे सौहाद्रपूर्ण समाचार कम पढ़ने को मिलते हों लेकिन इससे यह तो महसूस होता है कि आम आदमी चाहे हिंदू हो या मुस्लिम उसके मन में एक दूसरे के प्रति सम्मान और धर्मों के प्रति श्रद्धाभाव है। इसलिए कुंभ मेले में किसी ने भी मुस्लिम समाज द्वारा दी जा रही सेवाओं का विरोध किया हो ऐसा पता नहीं चला। मुस्लिमों के द्वारा की जा रही सेवाओं का नागरिकों ने विरोध किया ऐसा भी कहीं खुलकर सामने नहीं आया। कुल मिलाकर कुंभ मेला जहां आस्था और भक्ति का प्रतीक बन गया है वहीं सांप्रदायिक सौहार्द्र और भाईचारे की फसल भी इसमें लहरा रही है। जिससे दोनों संप्रदायों के नागरिकों को साधुवाद तो दिया ही जाना चाहिए। इस सौहार्द्रपूर्ण वातावरण बनाए रखने के लिए।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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