येरुशलम 13 दिसंबर। जरूरत से ज्यादा गुस्से का एहसास आपके शरीर में लंबे समय से चल रहे (क्रोनिक) दर्द को और भी अधिक बढ़ा सकता है। हाल ही में येरुशलम के हिब्रू विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने इस संबंध में एक अध्ययन किया है।
उन्होंने पता लगाया कि गुस्सा, जब अन्याय महसूस करने की भावनाओं के साथ मिल जाता है, तो यह लोगों को शारीरिक और भावनात्मक पीड़ा के एक खतरनाक चक्र में फंसा सकता है। विशेषज्ञों ने पुराने दर्द से पीड़िक 700 से ज्यादा लोगों पर अध्ययन किया, जिन्हें मस्कुलोस्केलेटल और न्यूरोपैथिक दर्द जैसी कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं थीं। सवाल और एक सांख्यिकीय तरीके (लेटेंट प्रोफाइल एनालिसिस) का उपयोग करके लोगों को चार अलग-अलग ‘गुस्से की प्रोफाइल’ में बांटा। इनमें यह देखा गया कि लोग कितनी बार गुस्सा महसूस करते हैं, वे इसे कैसे जाहिर करते हैं या नियंत्रित करते हैं।
विशेषज्ञों ने पाया कि जिन मरीजों ने गुस्सा और नाइंसाफी की भावना का स्तर सबसे अधिक था, उनकी हालत सबसे खराब थी। ये लोग तेज दर्द, विकलांगता और भावनात्मक परेशानी का सामना कर रहे थे। यह स्थिति केवल मूल्यांकन के समय नहीं थी, बल्कि कई महीनों बाद भी बनी रही। वहीं, जिन लोगों ने अपने गुस्से को बेहतर तरीके से नियंत्रित किया और जिन्होंने अपनी स्थिति को कम गुस्से से देखा, उनके परिणाम बेहतर रहे।
विशेषज्ञों ने देखा कि कुछ लोग जो अक्सर गुस्से में रहते हैं और सोचते हैं कि उनके साथ अन्याय हुआ है, उनका दर्द महीनों बाद भी ज्यादा रहता है। हमें समझना होगा कि गुस्सा हमेशा बुरा नहीं होता। यह हमें बताता है कि कुछ सही नहीं है और अगर हम इसे संभालें, तो यह मदद और बदलाव के लिए प्रेरणा बन सकता है। लेकिन अगर गुस्सा लगातार बना रहे और लोगों को लगे कि उनकी बीमारी या तकलीफ की वजह कुछ और है तो यह स्थिति और कठिन हो जाती है।
लंबे समय से दर्द झेल रहे लोगों के लिए यह अध्ययन यह बताता है कि सिर्फ दवा या इलाज काफी नहीं है। भावनात्मक समर्थन भी बहुत जरूरी है। इसका मतलब है कि अपने गुस्से और दुख को समझना, उनके बारे में बात करना और सही तरीके से व्यक्त करना बहुत जरूरी। ऐसा करने से दर्द और परेशानी को कम करने में मदद मिल सकती है और लोग ज्यादा बेहतर महसूस कर सकते हैं।
मनोवैज्ञानिक मदद लेना भी जरूरी
विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर लोग अपने गुस्से और अन्याय की भावनाओं को समझें और सही तरीके से व्यक्त करें (जैसे भावनाओं को जानने और जताने की थेरेपी) तो यह प्रयास दवा के साथ मिलकर लंबे समय तक रहने वाले दर्द को कम कर सकता है। अगर आप गुस्सैल स्वभाव के हैं और अपनी बीमारी या इलाज को लेकर अक्सर परेशान रहते हैं, तो आपके लिए मनोवैज्ञानिक मदद लेना भी उतना ही जरूरी है, जितना दवाइयां लेना।

