देश में संविधान का राज है और हर कोई इसका सम्मान और गौरव बढ़ाने के लिए तैयार रहता है। भले ही कभी कभी उसका नुकसान क्यों ना हो पाए। सरकार और अदालत समय समय पर संविधान में आम आदमी को दिए गए अधिकारों के तहत सुविधाएं दिलाने के साथ वैमन्स्य की भावना पैदा ना हो इसके लिए प्रयास होते रहे हैं और इसी संदर्भ में जातिवादी किसी भी रूप में बढ़ावा देने का अंकुश लगाने की कार्रवाई हो रही है। जातिसूचक शब्दों के इस्तेमाल पर रोक लगाई जा रही है।
डा भीमराव अंबेडकर द्वारा रचित संविधान में हर व्यक्ति की जिम्मेदारी तय करने और आरक्षण की व्यवस्था की गई है। उसके अनुसार इसके लागू होने पर भी किसी को बड़ा ऐतराज नहीं है। अगर फिर भी कोई बात है तो वो जिम्मेदारों के सामने रख उसका समाधान खोजने की व्यवस्था भी है लेकिन उसका पालन करने की बजाय कुछ संगठन और व्यक्ति अपने बिगड़े बोलों से समाज की समरसता भाईचारा व सदभाव को प्रभावित करने से नहीं चूक रहे हैं। ऐसा करने वालों में जब शिक्षित लोग गलत बात करें तो उसका संदेश कोई ठीक नहीं जाता।
बीते दिनों मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति एवं जनजाति अधिकारी एवं कर्मचारी संघ अजाक्स के एक प्रांतीय सम्मेलन में इसके नए अध्यक्ष बने प्रदेश के कृषि विभाग के उपसचिव आईएएस संतोष वर्मा ने खबरों के अनुसार कहा कि ब्राह्मण समाज जब तक अपनी बेटियां दान न करें और उनसे संबंध ना बनाएं तब तक आरक्षण जारी रहेगा। ब्राह्मण समाज मेरे बेटे को बेटी दान कर दे। दूसरी तरफ उनके इस बयान से बढ़े विरोध के चलते इस बारे में एक वीडियो वायरल होने के बाद अब संतोष वर्मा कह रहे हैं कि उनकी बात को गलत रूप से प्रस्तुत किया गया है। मेरे बयान से किसी व्यक्ति या वर्ग की भावनाएं आहत हुई हैं तो मैं खेद व्यक्त करता हूं। मेरा भाषण समरसता के लिए था जिसे गलत तरीके से पेश किया गया।
सवाल यह है कि जब वीडियो में वह बोलते नजर आ रहे हैं तो तोड़मरोड़ कर उनकी बात कहां से प्रस्तुत की गई। मैं किसी व्यक्ति या आरक्षण का विरोधी नहीं हूं लेकिन ब्राह्मण समाज हो या कोई और समाज किसी की बेटियों के बारे में इस तरह का बयान दिया जाना उचित नहीं है। कुछ संगठनों द्वारा जो उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग उठ रही है वो सही है क्येंकि ऐसे मामलों में अनपढ़ गरीबों को ही अब तक जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है लेकिन आईएएस संतोष वर्मा जैसे लोग साफ बचकर निकल जाते हैं। समाजहित और संविधान में दी गई स्वतंत्रता की रक्षा के लिए मुझे लगता है कि संतोष वर्मा को उनके पद से हटाकर समाज में बदअमनी फैलने की संभावना पर रोक लगाने हेतु उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए। क्योंकि सरकार ऐसा नहीं करती है तो उनके बयान को लेकर पनप रहा रोष कानून व्यवस्था प्रभावित करे ऐसी व्यवस्थाएं नहीं बननी चाहिए।
२०१७ में सेना में सेमुअल कमीशंड हुए सेना के अधिकारी को सिख स्कवाड्रन में तैनात किया गया था। सेना के अनुसार परेड के दौरान उनके लिए मंदिर और गुरूद्वारे में जाकर श्रद्धा प्रदर्शित करना सेवा का हिस्सा था। जिसे उन्होंने नहीं निभाया। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने फैसले में सेमुअल की बर्खास्तगी को सही ठहराते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी और कहा कि सेना में धर्मनिरपेक्ष और धार्मिक भावनाएं आहत करने वाले अफसर की बर्खास्ती सही है। ऐसा अधिकारी सेना के लिए अयोग्य है। सवाल उठता है कि जब सेमुअल सेना में रहने लायक नहीं है तो फिर मध्य प्रदेश के आईएएस अधिकारी संतोष वर्मा भी सरकारी सेवा में रहने लायक नहीं है क्योंकि उन्होंने भी जो आचरण किया उसे सही नहीं कहा जा सकता। केंद्र और मध्य प्रदेश जनहित में ध्यान दें।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
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