बीते लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली बड़ी सफलता के बाद विधानसभाओं के हो रहे चुनावों और उपचुनावों में जो आशा के अनुकूल परिणाम नहीं आ रहे इस पर सोचने की महागठबंधन के सहयोगी दलों को बड़ी आवश्यकता है। बिहार में हुए चुनाव के जो रूझान सामने आ रहे है उससे यह तो स्पष्ट हो गया है कि मुख्यमंत्री नीतिश कुमार बने या कोई और एनडीए के पूर्ण बहुमत वाला बिहार का सीएम होगा। एक फिल्मी गाना दिल के अरमां आंसुओं में बह गये महागठबंधनों के सहयोगियों की असफल कार्यनीति और बिना मतलब के मुद्दे और वोट चोर वोट चोर चिल्लाना जनता को उनके समर्थन में मतदान कराने में भूमिका नहीं निभा पाया। हमारा हमेशा मानना रहा है कि कुछ दल और उनके नेता जिन्हें अपनी पराजय मतदान से पहले ही दिखाई देने लगती है वो उल्टे सीधे आरोप सत्ताधारी पार्टी या चुनाव आयोग पर लगाने लगता है। इस पेशबंधी के तहत कि अगर चुनाव परिणाम उनकी सोच के अनुकूल नहीं आते है तो वो कह सके कि हमें पहले ही पता था कि गड़बड़ होगी। बिहार में यह सब जानते थे कि नीतिश कुमार के सहयोग से और कांग्रेस की रहमोकर्म पर एक दम राजनीति में उभरकर आये प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी का अभी कोई राजनीति भविष्य नहीं है। लेकिन कांग्रेस और लालू यादव व अन्य दलों का गठजोड़ महागठबंधन को भले ही मुख्यमंत्री बनने लायक समर्थन ना दिला पाए लेकिन ऐसी फजीहत होगी यह सोचना भी नहीं था।
यूपी के पूर्व सीएम समाजवार्दी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने वहां कितने उम्मीदवार खड़े किये वो एक अलग बात थी। लेकिन यह किसी से छिपा नहीं है बिहार में अगर गठबंधन जीतता तो उनका स्वर्णीम सहयोग तो हो सकता था जो कांग्रेस और लालू यादव जी की पार्टी की बयान और सौदे बाजी तथा वोट चोर वोट चोर के नारे के चलते सफल नहीं हो पाया। हमें लगता है कि अखिलेश यादव जी अपने दम पर ही यूपी में अच्छी संख्या में अपने उम्मीदवारों को जीताकर लाने में सफल है उन्हें लोकसभा चुनावों के दौरान विपक्ष की एकता हेतु महागठबंधन से जुड़े रहते हुए यूपी में विपक्षी नेता का दर्जा बचाये रखने और सीएम की कुर्सी तक आगे बढ़ने की कोशिश हेतु जन समस्याओं से संबंध रचनात्मक मुद्दे उठाने होंगे वर्ना जो हर्ष आरजेडी का बिहार में हुआ उसके आने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
अब बात करे राहुल गांधी जी की तो लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल जी अपने बड़े प्रयासों के बाद साकारात्मक सोच के चलते पद यात्रा की उसके परिणाम भी अच्छे आये आप लोकसभा में विपक्ष के नेता बन गये लेकिन 2029 में होने वाले लोकसभा चुनाव में महागठबंधन और कांग्रेस को मजबूत करने हेतु अपने दल में एक ऐसा ग्रुप बनाईये जो देश भर के नागरिकों के समक्ष आने वाली समस्याओं के आंकड़े इक्ट्ठे करें और आपको अवगत कराये। और आप प्रतिदिन वोट चोर वोट चोर करने की बजाए दुष्कर्म की घटनाऐं किस स्थिति में कौन कौन से अपराध बढ़े और किस किस चीज की महंगाई आम आदमी को परेशान कर रही है और देश का मतदाता किस कठिनाई के दौर से गुजर रहा है उन मुद्दो को लेकर जनता के बीच जाएंगे तो मुझे लगता है कि यूपी विधानसभा के 2027 में होने वाले चुनाव और लोकसभा निर्वाचन के दौरान आपको बिहार जैसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा और अभी भी जो कांग्रेस के नये पुराने मतदाता है और उनकी सोच सोनिया गांधी प्रियंका गांधी और आपके प्रति नतमस्तक है वो कांग्रेस को कम से कम लोकसभा में विपक्ष का नेता बनाने की स्थिति तो तय कर सकता है। इसलिए अब सिर्फ एक नीति निर्धारित कर महागठबंधन के सहयोगी माने तो ठीक ना माने तो ठीक कांग्रेस के हर नेता को आम आदमी की समस्याओं को उठाना होगा। वर्ना राहुल जी अगले चुनाव में स्थिति कांग्रेस की दयनीय हो सकती है।

(प्रस्तुतिः- अंकित बिश्नोई राष्ट्रीय महामंत्री सोशल मीडिया एसोसिएशन एसएमए व पूर्व सदस्य मजीठिया बोर्ड यूपी संपादक पत्रकार)

