कोच्चि 07 मई। केरल हाई कोर्ट ने कहा है कि दुष्कर्म पीड़िता को उस आदमी के बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, जिसने उसके साथ दुष्कर्म किया था। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट की धारा 3(2) में प्रविधान है कि यदि गर्भावस्था जारी रहने से गर्भवती महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान होगा, तो गर्भपात किया जा सकता है।
धारा 3(2) के स्पष्टीकरण 2 में कहा गया है कि यदि महिला दुष्कर्म के चलते गर्भवती हुई है, तो गर्भावस्था के कारण होने वाली पीड़ा को महिला के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर आघात माना जाएगा। इसलिए किसी दुष्कर्म पीड़ित महिला को उस पुरुष के बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, जिसने उसका यौन उत्पीड़न किया। अदालत ने यह निर्देश 16 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता द्वारा अपनी मां के माध्यम से दायर याचिका पर दिया।
मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद अदालत ने किशोरी को गर्भपात कराने की अनुमति दे दी। हाई कोर्ट ने कहा कि दुष्कर्म पीड़िता को उसके अवांछित गर्भ को समाप्त करने की अनुमति नहीं देना उस पर मातृत्व की जिम्मेदारी थोपने और सम्मान के साथ जीने के उसके मानवाधिकार से इनकार करने जैसा होगा। जीवन के अधिकार का यह एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसकी गारंटी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दी गई है।
हाई कोर्ट ने आगे कहा कि ज्यादातर मामलों में शादी के बाहर खासकर यौन शोषण के बाद गर्भावस्था हानिकारक होती है। यह गर्भवती महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों पर प्रतिकूल असर डालती है। अदालत ने कहा कि किसी महिला के साथ यौन उत्पीड़न या दुर्व्यवहार अपने आप में कष्टदायक होता है। इसके परिणामस्वरूप गर्भधारण से पीड़ा और बढ़ जाती है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि ऐसी गर्भावस्था स्वैच्छिक नहीं होती है।