मूल रूप से घोसीपुर निवासी बदायूं में तैनात महिला जज का अयोध्या धाम के सरयू तट पर गत रविवार को अंतिम संस्कार कर दिया गया। स्मरण रहे कि अयोध्या में पिता की तैनाती के चलते यहां से संबंध रही महिला जज की पहली नियुक्ति भी अयोध्या में हुई और वो तीन वर्षो तक यहां कार्यरत रहकर बदायूं स्थानांतरण हुआ। बीती 22 जनवरी को दिवंगत सिविल जज ने प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम देखा और खबरों के अनुसार वो अयोध्या में ही बसना भी चाहती थी। दिवंगत महिला जज के परिचितों का कहना है कि वो काफी समझदार और मजबूत इरादों की मालिक थी। तथा आसानी से आत्महत्या जैसा कदम नहीं उठा सकती। दूसरी तरफ महिला जज का सुसाइड नोट भी जो हिंदी और अंग्रेजी में लिखा है पुलिस को मिला। फिर भी उनके पिता का कहना है कि उनकी बेटी की हत्या की गई है। तथा उन्होंने अज्ञात लोगों के विरूद्ध मुकदमा भी दर्ज कराया है। अशोक राय मृतक के पिता को ऐसा क्यों लगता कि उनकी बेटी की हत्या की गई यह तो वो ही जाने लेकिन वह सहायक अभियोजन अधिकारी के रूप में काम कर चुके थे इसलिए उन्हें कहीं ना कहंीं ऐसा लगता होगा इसलिए उन्होंने अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई।
बेटा हो या बेटी मां बाप और परिवार के लिए दोनों ही बहुमूल्य होते हैं। और आत्मा का अंश औलाद को कहा जाता है इसलिए उनकी कमी किसी भी रूप में पूरी नहीं की जा सकती। महिला जज ज्योत्सना राय ने आत्महत्या की या उनकी हत्या हुई यह तो जांच के उपरांत ही पता चल जाएगा लेकिन एक बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि आएं दिन दिए जाने वाले फैसलों से बहुत से लोग नाराज हो सकते हैं और कुछ कारणों से अपनी आवाज बुलंद नहीं कर पाते। मगर आए दिन समाचार पत्रों में ऐसे लोगों के जो कारनामे पढ़ने को मिलते हैं उन्हें देख सोचा जाए तो कुछ भी हो सकता है। इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
न्यायाधीश किसी भी अदालत में तैनात हो वो आम आदमी के लिए आदरणीय और सम्मानित होते हैं इसी लिए हर कोई मन से भले ही नाराज हों उनके फैसले को स्वीकार कर लेता है। लेकिन एक बात जो मुझे काफी दिनों से महसूस होती है वो यह है कि पुलिस और प्रशासनिक अफसरोें के पास सुरक्षा के इंतजाम होते है क्योंकि वो भी व्यवस्था बनाने के काम में संलग्न होते हैं लेकिन जज को तो लंबी सुनवाई कर फैसला देना होता है उससे एक पक्ष का नाराज होना नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए केंद्र व प्रदेश सरकार को कानून मंत्रालय से विचार विमर्श कर प्रत्येक जज को कम से कम दो सुरक्षा गार्ड उपलब्ध कराएं जाएं। और हर जिले में जहां न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति होती है वहां उनकी कॉलोनियों में आवागमन एक गेट से हो और सभी जजों को आवास आवंटित कर वहां की सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता की जाए जिससे उन पर मानसिक दबाव या हमले की कोई गुंजाइश ना रहे।
वैसे तो हर व्यक्ति का जीवन बहुमूल्य है। और पुलिस प्रशासनिक अधिकारियों की बड़ी जिम्मेदारियां है मगर न्यायपालिका के लोगों की जिम्मेदारी कुछ अलग है। इसलिए उनकी सुरक्षा में भी कोई कमी नहीं आनी चाहिए।
जजों को उपलब्ध कराई जाए पूर्ण सुरक्षा, न्यायिक अधिकारियों को एक ही कॉलोनियों में मिले निवास
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