asd बसपा के लिए लोकसभा चुनाव परिणाम वाकई में समयानुकूल नहीं कहे जा सकते, बहनजी आपका जनाधार आज भी मजबूत हैं, बस समयानुकुल निर्णय लेकर ताल ठोक दीजिए

बसपा के लिए लोकसभा चुनाव परिणाम वाकई में समयानुकूल नहीं कहे जा सकते, बहनजी आपका जनाधार आज भी मजबूत हैं, बस समयानुकुल निर्णय लेकर ताल ठोक दीजिए

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लोकसभा चुनाव के आए परिणामों में सबसे ज्यादा सांसद जीतने वाली भाजपा और इंडिया गठबंधन के नेता भी कम उम्मीदवारों को मिली जीत के लिए कमी कहां रही इसकी समीक्षा कर रहे हैं। ऐसे में इस बार दस की दहाई तक भी वोट प्राप्त करने में सफल नहीं रही बसपा के लिए तो समीक्षा किया जाना बहुत जरूरी है। आखिर कई बार प्रदेश में सीएम रहीं और मजबूत जनाधार वाली बसपा की मुखिया मायावती के द्वारा घोषित किए गए उम्मीदवारों की स्थिति इतनी खराब क्यों रही यह जानना पार्टी और नेताओं के लिए अत्यंत जरूरी है। क्योंकि अभी ज्यादा साल नहीं हुए जब सपा यूपी में सत्ता में रही हो या विपक्ष में उसके जीते उम्मीदवारों की संख्या अच्छी होती थी और मायावती की रैलियों में बेइंतहा भीड़ रहती थी जो हर मौसम में उनके देर से पहुंचने पर भी मैदान में डटी रहती थी। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने इस हार के लिए अपने नेताओं से चर्चा शुरू की है और उनका यह भी कहना है कि गर्मी से चुनाव प्रभावित रहा। वो कह रही है तो इसके पीछे कोई ना कोई कारण रहा होगा लेकिन गर्मी तो सभी पार्टियों के लिए थी फिर भी पांच हजार से लेकर लाखों के अंतर से उम्मीदवार जीते और हारे इसलिए समीक्षकों के अनुसार चुनावी रण में फिसडडी रही बसपा के नेताओं का यह कारण समझ से बाहर है। मायावती का कहना है कि अब मुस्लिमों को सोच समझकर टिकट दिए जाएंगे। क्योंकि इस बार 21 मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव में उतारे लेकिन वो भी कोई असर नहीं दिखा पाए। परिणामस्वरूप बड़े नाम वाले चेहरे भी अपना असर दिखाने में कामयाब नहीं रहे। हां यह कह सकते हैं कि इस बार सबसे ज्यादा वोट गौतमबुद्धनगर बांदा, लालगंज, और हाथरस तथा बिजनौर के प्रत्याशी को मिलने की चर्चा है। इस बात से यह आशा भी बनती है कि अभी बसपा और उसकी मुखिया का असर पूरी तौर पर समाप्त नहीं हुआ है। अगर पूर्व सीएम के नेतृत्व में बसपा नेता थोड़़ी मशक्कत करेंगे तो यूपी में काफी मजबूती से वापसी हो सकती है।
बसपा इस चुनाव में कमजोर क्यों रही इसको लेकर भी कई बिंदु विचारणीय है। सबसे पहले तो पिछले कुछ चुनावों से सभी सीटों पर इस पार्टी ने अपने उम्मीदवारों को नहीं उतारा। दूसरे मायावती ने उप्र विभाजन जैसे बिंदुओं को बहुत दिनों बाद मतदाताओं के समक्ष रखा। तीसरे अपने भतीजे और वारिस घोषित किए आकाश को चुनाव के बीच ब्रेक लगा दिया गया। जबकि बसपा के कुछ युवा उम्मीदवारों व मतदाताओं का मानना था कि आकाश की कार्यप्रणाली और अपनी बात रखने के तरीकों से युवा मतदाता आकर्षित हो रहा था। उनके चुप हो जाने और मायावती के कम दौरे करना भी इन परिणामों के लिए जिम्मेदार हैं जबकि नये दलित चेहरे के रूप में पिछले कुछ सालों में उभरे नगीना से चुनाव जीते चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण हमेशा आम आदमी और अपनों के लिए उपलब्ध रहते हैं। अपने समर्थकों के लिए संघर्ष करने में वो कभी भी पीछे नजर नहीं आए। शायद यही कारण है कि चंद्रशेखर की जीत के बाद डुमरियागंज में आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी अमरजीत चौधरी को काफी अच्छे मत मिले जो इस बात का प्रतीक कह सकते हैं चंद्रशेखर दलितों का नया चेहरा बनकर उभर रहे हैं। अगर बसपा ने अपनी गलतियों की समीक्षा समय से नहीं की तो इस पार्टी के सामने समर्थक व मतदाता जुटाने का संकट पैदा हो सकता है।
लेकिन क्योंकि जब से मायावती चुनावी राजनीति में सक्रिय हुई तब से उनके निर्णयों ने बसपा को काफी आगे बढ़ाया था और अभी भी उनके तेवर वही नजर आते हैं लेकिन चुनावी राजनीति से दूरी बनाने के पीछे कौन से कारण रहे यह वही जान सकती है। लेकिन यह कहा जा सकता है कि इमरजेंसी के बाद जब जनता पार्टी चुनाव लड़ी तो कांग्रेस का लगभग सफाया हो चुका था मगर उससे अगले चुनाव में वो पूर्ण बहुमत से कांग्रेस को आगे बढ़ाने और सरकार बनाने में सफल रही थी। तो बहनजी आपके पास तो अभी जनाधार भी है और यूपी का कोई जिला ऐसा नहीं है जहां आपके समर्थक ना हो इसलिए इस हार को गंभीरता से लेना चाहिए लेकिन परिणामों से हताश होने की जरूरत नहीं है। यह जो दहाई का आंकड़ा आपके उम्मीदवार प्राप्त नहीं कर पाए और एक भी सीट बसपा को नहीं मिली यह नुकसान तो कह सकते हैं लेकिन जनता का अंतिम निर्णय नहीं। इसलिए अपने उम्मीदवारों को मजबूती से आगे लाईए और आकाश आनंद को कुछ बातें समझाकर खुली छूट दीजिए। अभी बसपा का भविष्य इतना खराब नहीं है जितने खराब चुनाव परिणाम आए हैं। बस थोड़ा सा संयम और पूर्व के हिसाब से कार्यकर्ताओं को प्रोतत्साहन देने और अपनी पार्टी की नीति के अनुसार चुनावों में योद्धा तैयार करने के लिए कार्यप्रणाली को धार दीजिए। आगे भी बसपा लहरा सकती है अपना परमच लेकिन इसके लिए अपनी ताकत का आकलन करने के साथ साथ समयानुकुल समकक्ष विचारों वाले दलों या विपक्षी गठबंधन में अपनी सक्रियता भी बढ़़ानी होगी। मायावती जी आप लीडर हैं लीडर रहेंगी। उंच नीच और हारजीत राजनीति में चलती रही है चलती रहेगी। मेरा मानना है कि राजनीति एक खेल का मैदान है कि इसे खेल भावना से ही लड़़ना चाहिए और इस क्षेत्र में कभी किसी को जानी दुश्मन और बहुत घनिष्ठ दोस्त समझने की बजाय निर्णय लेने की आवश्यकता है और यह काम जबसे बसपा ने साकार रूप लिया है मायावती में नजर आया है इसलिए पार्टी के बड़े दिग्गज किनारे होते चले गए और बसपा सुप्रीमो एकछत्र लीडर कार्यकर्ताओं और मतदाताओं में स्थापित हो गई।
आजाद समाज पार्टी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद रावण को कमजोर ना समझकर अभी से आने वाले विधानसभा चुनावों और 2029 के लोकसभा निर्वाचन और इस बीच होने वाले विधानसभा व अन्य चुनावों में अपनी सहभागिता तय करने हेतु बहन जी आपको आकाश को आगे लाकर ताल ठोकनी होगी।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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