प्रयागराज, 30 अक्टूबर। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रामपुर में सीआरपीएफ कैंप पर आतंकी हमले के मामले में दोषियों को फांसी की सजा सुनाए जाने का आदेश रद्द कर दिया है। मृत्युदंड के सत्र न्यायालय के निर्णय को रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने निर्णय में कहा कि हम अपराध की गंभीरता पर चिंतित हैं और साथ ही यह कहना चाहते हैं कि अभियोजन पक्ष दोषियों के खिलाफ मुख्य अपराध के लिए संदेह से परे मामला साबित करने में बुरी तरह विफल रहा जो आपराधिक न्यायशास्त्र के माध्यम से चलने वाला एक सुनहरा नियम है।
यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा एवं न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र की खंडपीठ ने बुधवार को दोषियों मोहम्मद शरीफ, सबाउद्दीन, इमरान, शाहजाद और मोहम्मद फारूक को बरी करते हुए दिया, जिन्हें 31 दिसंबर 2007 की मध्यरात्रि सीआरपीएफ कैंप पर आतंकी हमले के अपराध के लिए मृत्युदंड दिया गया था।
सेशन जज रामपुर ने 2 नवंबर, 2019 को सजा सुनाई थी. हमले के 4 आरोपियों मोहम्मद शरीफ, सबाउद्दीन, इमरान शहजाद और मोहम्मद फारूख को कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी, जबकि जंग बहादुर को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. कोर्ट ने मोहम्मद कौसर और गुलाब खान को बरी कर दिया था.
हालांकि हथियार रखने के आरोप में दस साल की सजा बरकरार रखी गई है. आरोपी दस साल से अधिक समय से जेल में हैं, ऐसे में सभी के रिहा होने की उम्मीद है. करीब आठ माह पहले पक्षकारों के वकीलों की बहस पूरी होने के बाद कोर्ट ने निर्णय सुरक्षित रख लिया था, जिसे आज सुनाया गया. आरोपियों को कानूनी सहायता जमीयत उलेमा महाराष्ट्र (अरशद मदनी) लीगल सहायता कमेटी द्वारा दी गई.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले पर संतोष व्यक्त किया है. मदनी ने कहा कि निचली अदालत ने तीन लोगों को फांसी और एक को उम्रकैद की सजा दी थी, मगर अब हाई कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि इन लोगों पर आतंकवाद का मामला बनता ही नहीं है. इसलिए निचली अदालत का फैसला खारिज कर दिया गया, हालांकि अवैध हथियार रखने के अपराध में दस साल की सजा दी गई है.
मौलाना मदनी ने कहा कि आज जो लोग आतंकवाद के आरोपों से बरी हुए हैं, उनके परिवारों के लिए यह बहुत बड़ा दिन है, क्योंकि उन्हें 18 साल तक इस दिन का इंतज़ार करना पड़ा.
मौलाना मदनी ने आगे कहा कि हालांकि इस फैसले में इन्हें आर्म्स एक्ट के तहत दस साल की सजा दी गई है, लेकिन चूंकि वे पहले ही 18 साल जेल में बिता चुके हैं, इसलिए अब वे सभी रिहा होंगे. उन्होंने कहा कि हम इस दस साल की सजा वाले फैसले को वरिष्ठ वकीलों से विचार विमर्श के बाद सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे. उन्होंने कहा कि हमें पूरा विश्वास है कि अन्य मामलों की तरह सुप्रीम कोर्ट से भी न्याय मिलेगा और उन पर से गैरकानूनी हथियार रखने का आरोप भी खत्म हो जाएगा.
31 दिसंबर 2007 की रात को रामपुर में स्थित सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) कैंप पर हमले के आरोप में निचली अदालत ने आरोपियों इमरान शहज़ाद, मोहम्मद फारूख, सबाउद्दीन, और मोहम्मद शरीफ को मौत की सजा और जंग बहादुर को उम्रकैद की सजा दी थी. आरोपियों की ओर से एडवोकेट एम.एस. खान ने बहस की, जबकि उनकी सहायता एडवोकेट अनिल बाजपेई और एडवोकेट सिकंदर खान ने की. अपील दाखिल करने से लेकर फैसला सुनाए जाने तक इलाहाबाद हाईकोर्ट में कुल 39 सुनवाइयां हुईं. दिल्ली से इलाहाबाद जाकर एम.एस. खान ने कई तारीखों पर बहस की.

