कई बार महिलाओं को हर क्षेत्र में बराबर की हिस्सेदारी दिये जाने की मांग कई मंचों से उठती रही है। पूर्व में सपा मुखिया स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव जी द्वारा 20 प्रतिशत महिलाओं को आरक्षण की बात भी की गई थी तो कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी द्वारा भी महिलाओं को 40 प्रतिशत आरक्षण दिलाने की बात कहीं गई थी वर्तमान में जहां जहां कांग्रेस की सरकारें है वहां इसका पालन हो रहा है या नहीं तथा समय समय पर होने वाले चुनावों में कांग्रेस इतने प्रतिशत महिलाओं को टिकट दे रही है या नहीं यह तो एक अलग विषय है। लेकिन मेरा मानना है कि बसपा सुप्रीमो मायावती जी द्वारा हमेशा जो मांग की जाती है जिसकी जितनी हिस्सेदारी उतनी उसकी साझेदारी और अब यह नारा और राजनीतिक संगठन और उनकी विभिन्न ईकाईयां भी जातिगत आधार पर उठाने लगी है जो इस बात का प्रतीक है कि हमेशा पूजनीय रही और हर परिस्थिति में अपनी सूझबूझ से सही निर्णय लेने में सक्षम और मैं तो हमेशा कहता रहा हूं कि किसी भी बड़े से बड़े मैनेजमेंट कालेज से डिग्री प्राप्त व्यक्तियों से काम काजी महिलाऐं ही नहीं घरेलू महिलाऐं भी निर्णय लेने में अग्रणी रहती है। ऐसी सफल सुलझे विचारों की समय से निर्णय लेने में सक्षम महिलाओं को सरकारी पदों पर उनकी काबलियत और काम के अनुसार पद दिये जाने चाहिए।
अभी तक देश के सात राज्यों में ही मात्र महिलाऐं की मुख्य सचिव है अगर हिसाब लगाये तो 31 राज्यों के मुख्य सचिवों के पदों के हिसाब से सात महिलाओं को मात्र 24 फीसदी पदों पर ही मुख्य सचिव बनाया गया है। इस हिसाब से 24 राज्यों में पुरूष ही इस पदों पर विराजमान कहे जा सकते है।
शीर्ष नौकरशाही में एक चौथाई तक पहुंची महिलाओं की हिस्सेदारी शीर्षक से छपी एक खबर इस संदर्भ में सोचने के लिए मजबूर कर रही है आखिर हम महिलाओं को अगर आवश्यकता है तो बढ़ावा देकर नीतियों में कुछ बदलाव कर मुख्य सचिव के पदों पर पुरूषों के बराबर स्थान क्यों नहीं दे रहे है।
इससे संबंध दैनिक हिन्दुस्तान में छपी एक खबर के अनुसार नौकरशाही में शीर्ष पदों पर महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ रही है। इस समय केंद्रीय महकमों में एक चौथाई सचिव महिलाएं हैं। यह पहला मौका है जब केंद्र सरकार में 22 महिला सचिव एक साथ काम कर रही हों। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सचिव और मुख्य सचिव जैसे पदों पर बैठे लोग निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
केंद्र सरकार में इस समय 92 सचिव कार्यरत हैं। इनमें राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के सचिव तथा सभी महकमों के सचिव शामिल हैं। इनमें से 22 महिला सचिव हैं। इनमें एक डाक सेवा, एक वन सेवा तथा एक वैज्ञानिक हैं, शेष सभी आईएएस अधिकारी हैं। इस प्रकार सचिवों के रूप में उनकी हिस्सेदारी करीब 24 फीसदी है। यह कम जरूर है, लेकिन एक सम्मानजनक स्थिति है। पिछले महीने सरकार ने जब डेढ़ दर्जन सचिवों की नियुक्ति की थी तो उनमें सात महिला अधिकारी थीं। देश की राष्ट्रपति महिला हैं तथा उनकी सचिव भी इस समय महिला आईएएस अफसर दीप्ति उमाशंकर हैं।
मौजूदा समय में महिला सचिवों में वंदना गुरनानी (सचिव समन्वय, कैबिनेट), नीलम शम्मी राव (राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग), पुण्य सलीला श्रीवास्तव (स्वास्थ्य), दीप्ति गौर मुखर्जी (कॉरपोरेट मामले), सुकृति लिखी (चेयरमैन, रासायनिक हथियार संधि प्राधिकरण ), ए. नीरजा (पिछड़ा वर्ग आयोग (वन सेवा), देबार्शी मुखर्जी (जल संसाधन), निधि खरे (उपभोक्ता मामले), अल्का उपाध्याय ( पशुपालन विभाग), निवेदिता शुक्ला (रसायन एवं उर्वरक मामले) की सचिव हैं। खेल एवं युवा मामले मंत्रालय में दो विभाग हैं तथा दोनों की कमान महिला सचिवों के हाथ में है।
युवा मामलों की सचिव मीता राजीव लोचन हैं जबकि खेल सचिव सुजाता चतुर्वेदी हैं। इस विभाग के मंत्री मनसुख मंडाविया हैं। उनके पास श्रम एवं रोजगार मंत्रालय भी है, जिसकी सचिव भी एक महिला अधिकारी सुमित्रा डावरा हैं।
डाक विभाग की सचिव वंदिता कौल हैं, जो गैर आईएएस हैं। वह डाक सेवा से हैं। जबकि वैज्ञानिक शामिल हैं।
सात राज्यों में महिला मुख्य सचिव
राज्यों के मुख्य सचिवों के रूप में भी महिलाओं की हिस्सेदारी 24 फीसदी के ही करीब है। मौजूदा समय में 31 राज्यों में मुख्य सचिव हैं, जिनमें सात महिलाएं हैं। इनमें उत्तराखंड में राधा रतूड़ी, मध्य प्रदेश में वीरा राणा, महाराष्ट्र में सुजाता सौनिक, मिजोरम में रेणु शर्मा, तेलंगाना में ए, शांति कुमारी, केरल में शारदा मुरलीधरन तथा कर्नाटक में डा. शालिनी रजनीश है। अनुसंधान विभाग की सचिव एम. क्लाईसेल्वी वैज्ञानिक हैं। अन्य महकमों में वन एवं पर्यावरण सचिव लीना नंदन, खाद्य प्रसंस्करण सचिवा अनीता प्रवीन, राजभाषा सचिव अनशुली आर्य, पेयजल एवं स्वच्छता विभाग की सचिव विनी महाजन, कपड़ा सचिव रचना शाह एवं पर्यटन सचिव वी. विद्यावती
जब केन्द्र हो या प्रदेश सभी की सरकारें महिलाओं को परिवारिक संपत्ति में बराबर की हिस्सेदारी देने की वकालते कर रही है तो फिर सरकारी पदों में उन्हें बराबर की हिस्सेदारी क्यों नहीं। मेरा मानना है कि आवश्यकता हो तो आरक्षण देकर महिलाओं को मुख्य पदों पर बैठाया जाए। आजकल हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जंयती मनाये जाने की तैयारी कर रहे है यह समय भी है कि हम राष्ट्रपिता के महिलाओं के प्रति सम्मान और हर प्रकार की अच्छी भावनाऐं रखी जाने की सोच को साकार करने के लिए भी महिलाओं को हर क्षेत्र में आगे बढ़ाने का निर्णय ले सकते है चाहे उसके लिए नियमों में बदलाव करना पड़ा या नियमों में लागू हो आरक्षण।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)