Date: 12/11/2024, Time:

कोई गिरगिट कहे या दल बदलू, आयाराम गयाराम या विश्वासघाती क्या फर्क पड़ता है, दल बदलने का रिकॉर्ड तोड़ने की ओर अग्रसर नौंवी बार बने नीतीश कुमार मुख्यमंत्री

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सबकुछ ठीक नहीं चला इसलिए छोड़ा गठबंधन कहते हुए लगभग कुछ माह में ही इंडिया गठबंधन के संभावित बिखराव के प्रेरणता बनने जा रहे नीतीश कुमार ने बीते दिनों सुबह लगभग 11 बजे राजभवन में जाकर इस्तीफा दिया। और शाम को पांच बजे नौंवी बार बिहार के मुख्यमंत्री के पद की शपथ ली। नौ में से छह बार एनडीए के मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार की इस ताजपोशी की रूपरेखा बताते हैं कि दिल्ली में लिखी गई और बिहार में चला सियासी खेल। अभी लोकसभा चुनाव दूर है। जिस प्रकार से नीतीश कुमार इस्तीफा देने और सरकार बनाने सीएम बनने का काम करते हैं उसे देखकर यह कहने में कोई हर्ज नहीं हो रहा है कि अभी कुछ भी संभव है। माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा नीतीश कुमार को बधाई दी गई है और अन्य नेता भी नीतीश कुमार के कदम को सही बताते हुए उन्हें शुभकामनाएं दे रहे हैं। मजे की बात यह है कि कुछ दिन पहले जो नीतीश को व्यंग्यबाणों से महिमामंडित कर रहे थे अब वो उन्हें मंझा हुआ नेता बताकर बधाई दे रहे हैं।
अभी तक नीतीश कुमार के साथ उपमुख्यमंत्री रहे तेजस्वी यादव का कहना है कि अभी तो खेल शुरू हुआ है। उन्होंने नीतीश कुमार को गिरगिट बताया तो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे ने आया राम गया राम के साथ ही खड़गे द्वारा उन्हें जनता के साथ विश्वासघात करने वाला नेता बताया और कहा कि वो उन्हें माफ नहीं करेगी। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव जिन्होंने पिछले दिनों कहा था कि अगर नीतीश हमारे साथ रहते तो प्रधानमंत्री बन सकते थे अब उनका कहना है कि नीतीश जी ने विश्वासघात का नया कीर्तिमान बनाया है। कुल मिलाकर विपक्षी एकता पर बिन बुलाई आफत ही आना इसे कह सकते हैं क्येांकि गठबंधन के मुख्य सूत्रधार नीतीश कुमार विभिन्न आरोप लगाकर जिनका साथ छोड़ गए थे उनसे गलबहियां कर सीएम बन गए हैं।
सत्ता दल हो या विपक्ष आजादी के बाद से अभी तक जो देखा उससे लगा कि कोई भी नेता आए जाए उससे दल खत्म नहीं होते। थोड़ी बहुत उथल पुथल जरूर मचती है मगर दलों का वजूद बना रहता है। भले ही कुछ दिनों बाद आने जाने वाले नेता जनता का विश्वास खो दें। जहां तक नीतीश कुमार की बात है वो नौवंी बार सीएम बने हैं लेकिन कभी भी अपने सहयोगियों के साथ सहज नहीं रह सके और मजे की बात यह है कि इतने लंबे समय तक लगातार मुख्यमंत्री रहने वाले नीतीश कुमार अपनी पार्टी के दम पर इतना समर्थन नहीं जुटा पाए कि सीएम बनते इसलिए समयानुकुल जहां भी गोटी फिट होती दिखाई दी वो उधर को खिसक गए। लेकिन पद पर बने रहे। एक बात जरूर कही जा सकती है कि धीरे धीरे दल बदलने का रिकॉर्ड अपने नाम कराने की और इस क्षेत्र में सम्मान पाने की ओर अग्रसर नीतीश कुमार राजनीतिक धारा को समझने और उसकी सुगबुगाहट को पहचानने में एक्सपर्ट है। पिछले दिनों भाजपा का साथ छोड़ इंडिया गठबंधन में गए तो लगा कि वो लोकसभा चुनाव तक वहां रहेंगे तो अब लगता है कि यह उनकी सोची समझी साजिश थी और वह राजनीति के कुछ महारथियों को यह समझाना चाहते थे कि केंद्र में सरकार किसी की भी हो बिहार में बादशाह वही रहेंगे। जहां तक बिहार की राजनीति के समीकरण देखें तो कुल मिलाकर वहां जातीय राजनीति की रोटी एक है और खाने के लिए कई तैयार बैठे रहते हैं। लेकिन इन सबसे आगे नीतीश कुमार अपनी चाल चल रोटी और वो भी घी के साथ खाने का जुगाड़ बैठा ही लेते हैं।
बिहार में होने वाली राजनीतिक उथल पुथल और दल बदलने की प्रक्रिया कब तक चलेगी और वहां के मतदाता कब तक अपनी अपनी पार्टी बताकर समयानुसार दल बदलने वालों को वोट देंगे यह तो समय ही बताएगा। लेकिन जो जीता वही सिकंदर हारने वालों को लोग दल बदलु की राजनीति के हिसाब से भूल जाते हैं और जीतने वालो को ही रखते हैं याद। इस मामले में वाकई में नीतीश कुमार राजनीति के सिकंदर ही कहे जा सकते हैं। भले ही कोई उन्हें विश्वासधाती कहे या आयाराम गयाराम गिरगिट या दल बदलू। इससे उनकी सेहत पर कोई फर्क पड़ता नजर नहीं आता है।

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