दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा नाबालिग लड़की के होठों को छूना दबाना और पास में सोना पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न का मुकदमा चलाने का आधार नहीं माना गया है। हाईकोर्ट ने कहा कि यौन इच्छा के बगैर नाबालिग लड़की के होंठ दबाना और छूना पाक्सो अधिनियम के तहत अपराध नहीं हो सकता है और इसके तहत यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की धारा-10 के तहत आरोप तय नहीं हो सकता है। हालांकि, अदालत ने यह माना कि उक्त कृत्य आईपीसी के तहत छेड़छाड़ का अपराध हो सकता है और आईपीसी के तहत प्रथम दृष्टया नाबालिग की गरिमा का हनन कर सकते हैं। न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने उक्त निर्णय 12 वर्षीय नाबालिग लड़की के चाचा की अपील याचिका पर सुनाया। पीठ ने इस बारे में कहा कि यह कृत्य पीड़िता की गरिमा का उल्लंघन कर सकते हैं उसके शीलता को प्रभावित कर सकते हैं लेकिन यौन अपराधी से बच्चों के संरक्षण हेतु धारा 10 के तहस आवश्यक कानूनी धारा को पूरा नहीं करते हैं। न्यायाधीश का फैसला महत्वपूर्ण है और इससे कई कुरीतियां रूकने की संभावना है। सवाल यह उठाता है कि कानून मंत्रालय और न्यायपालिका पॉक्सो एक्ट में दोष का कारण कौन कौन सी बात बनती हैं क्या नहीं इसका खुलासा करें क्योंकि मीडिया में कभी कभी पढ़ने सुनने देखने को मिलता है घूरकर देखना और अंगुली टच करना यौन उत्पीड़न का कारण बन सकते हैं ओर पुलिस निर्दोष को दोषी बना सकते हैं। इसलिए यौन उत्पीड़न के कारणों का मीडिया में प्रकाशित कर उसे प्रचारित करें। और इस संदर्भ में जागरूकता हेतु स्कूलों में गोष्ठियां आयोजित की जाएं जिससे छात्र-छात्राओं को भी इसका सही ज्ञान हो सके।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
किस किस बात से यौन उत्पीड़न होता है और किससे नहीं विस्तार से हो प्रचारित
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