Date: 27/07/2024, Time:

केंद्रीय गृहमंत्री जी ध्यान दीजिए, परेशान है जनता! पूर्व की घटनाओं से नैनीताल के अधिकारियों ने क्यों नहीं लिया सबक, हल्द्वानी जैसी हिंसा की पुनरावृति ना हो, मदरसे और धार्मिक स्थल के निर्माण के लिए जिम्मेदार अफसरों ?

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हल्द्वानी में बनभूलपुरा के मलिक के बगीचे क्षेत्र में नजूल भूमि घेरकर बनाए गए मदरसे और धार्मिक स्थल को तोड़ने पहंुचे नगर निगम प्रशासन और पुलिस के अमले के बाद जो तांडव हिंसा का वहां हुआ उससे पूरा देश अवगत है क्योंकि मीडिया पर सिर्फ यही मुददा सुर्खियां बना रहा। नैनीताल की डीएम वंदना सिंह ने तत्काल कर्फ्यू लगा दिए और स्कूल कॉलेज के साथ ही इंटरनेट सेवाएं बंद करा दिए गए। आयुक्त पंकज उपाध्याय का कहना है कि अराजक तत्वों को चिहिन्त कर कार्रवाई की जाएगी।
सवाल यह उठता है कि कुछ वर्ष पूर्व हल्द्वानी में ऐसे ही अवैध निर्माण और अतिक्रमण रेलवे द्वारा हटाए जाने के दौरान जो हंगामा और हिंसा हुई थी अभी लोग उसे ही नहीं भूला पाए थे कि जिम्मेदार अधिकारियों ने गलत फहमी का शिकार होेकर बिना पूरी तैयारी के यहां यह अभियान चलाया। जिसमें छह लोगों के मरने एक थाना और नगर निगम की जेसीबी सहित सौ अधिक वाहन फूंकने और 300 के अधिक लोगों को घायल करने के बाद भी गुस्साई भीड़ तब काबू हुई जब रूद्रपुर से पीएसी पहुंची और उसने मोर्चा संभाला। भीड़ कितनी गुस्साई थी इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि अमर उजाला के फोटोग्राफर राजेंद्र सिंह बिष्ट का कैमरा तोड़ दिया गया और भीड़ उन्हें मारे पर उतारू थी। वो तो अच्छा हुआ उन दो युवकों का जिन्होंने उन्हें एक धर्मस्थल में बंद कर दिया।
सवाल यह उठता है कि लगभग तीन एकड़ सरकारी भूमि में मदरसा और धार्मिक स्थल कोई एक दिन में तो नहीं बन गया होगा और यह भी पक्का है कि इसकी जानकारी नगर निगम और पुलिस प्रशासन के अधिकारियों को रही होगी। तब उन्होंने इसे बनने से क्यों नहीं रोका और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की।
मेरा मानना है कि आए दिन देशभर में कुछ सरकारी विभागों के नौकरों की लापरवाही और भ्रष्टाचार के चलते ऐसे होने वाले निर्माणों के विरूद्ध जब कार्रवाई होती है तो उसमें सरकारी संपत्ति नष्ट होने के साथ साथ नागरिकों का आर्थिक मानसिक सामाजिक उत्पीड़न होता है। इसके लिए दोषी वह अफसर होते हैं जो निर्माण व अतिक्रमण होने देते है। उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी ने सभी से संयम और शांति बनाए रखने की अपील की है। आम आदमी में अपने सदकार्यो से मजबूत पैठ रखने वाले अफसर भी स्थिति को शांत करने हेतु प्रयासरत है। सवाल यह उठता है कि इस क्षेत्र का ज्ञान जब जनता को है तो मदरसा और धार्मिक स्थल को तोड़ने के लिए समाज के प्रमुख लोगों को विश्वास में लिए बिना और बिना पूरी तैयारी के अपनी तीसमारखाई दिखाने के लिए हुक्मरान कैसे पहंुच गए। मुझे लगता है कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने हेतु इन अफसरों से जनता और सरकार के नुकसान की भरपाई करानी चाहिए। इस बात के लिए जिम्मेदार नगर निगम विकास प्राधिकरणों और आवास विकास के अफसरों को चेतावनी दी जाए कि अगर किसी के भी क्षेत्र में सरकारी भूमि पर अवैध निर्माण हुआ तो उसकी जिम्मेदारी इन अफसरों की होगी और जो भी नुकसान जनता या सरकार का होगा उसकी भरपाई इनके वेतन और निजी संपत्ति से भी कराया जाएगा। कई क्षेत्रो की पुलिस और एसडीएम तथा भारी अमला अभियान को सफलता से अंजाम नहीं दे पाया और जो फोटो मीडिया में दिखाई दे रहे हैं उनको देखकर आम आदमी की रूह कांप रही है। तो फिर जो नागरिक घटनास्थल के आसपास रह रहे होंगे उनकी क्या स्थिति होगी व हिंसा में शामिल युवाओ द्वारा तीन घंटे तक जो पथराव और तांडव किया गया उससे स्थानीय नागरिकों पर क्या असर पड़ा होगा यह तो वहीं जान सकते हैं। इस प्रकरण में 200 से अधिक पुलिसकर्मियों के साथ ही कई एसडीएम भी घायल हुए। मुझे लगता है कि मानवीय दृष्टिकोण के साथ साथ जनहित को भी कार्रवाई करते समय ध्यान रखा जाना चाहिए और जो घायल व मरने वाले हिंसा में शामिल रहे हों उनकी कोई भी मदद नहीं होनी चाहिए ऐसा नागरिकों के मत में लगभग सभी सहमत होंगे।
वर्तमान समय में बेरोजगारी बीमारी आम आदमी के लिए काफी कष्टदायक है। ऐसे में इस प्रकार की हिंसा लोगों को तोड़कर रख देती है। इस बात का ध्यान रखते हुए मेरा मानना है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और उत्तराखंड सरकार कुछ ऐसा निर्णय ले जो इस प्रकार की संभावनाओं पर रोक लगाई जा सके। हल्द्वानी प्रकरण के बाद यूपी में भी अलर्ट कर दिया गया है जो एक अच्छी पुलिस की सोच का परिणाम है। खासकर अफसरों को मिश्रित वाले इलाकों में उत्तराखंड के क्षेत्रों में विशेष ध्यान दिया जाना वक्त की सबसे बड़ी मांग कही जा सकती है।

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