हर साल आज के दिन हम विश्व शौचालय दिवस मनाते हैं। इसके लिए जागरूकता अभियान भी चलाए जा सकते हैं लेकिन स्थिति में कोई ज्यादा सुधार नहीं आता है।
बताते चलें कि पीएम मोदी द्वारा खुले में शौच का प्रचलन समाप्त करने के लिए घरों और सार्वजनिक स्थानों पर शौचालय बनाने और मां बहनों को सम्मान देने की शुरूआत बहुत पहले की चुकी है। इस पर हर साल सैंकड़ों करोड़ रूपये खर्च होते है। लेकिन जितना दिखाई देता है उससे कहा जा सकता है कि ज्यादातर बजट आंकड़ेबाजी कर कहां खपाया जाता है। लेकिन जो सुविधाएं शौचालय की उपलब्ध होनी चाहिए थी वो नजर नहीं आती है। महिलाओं के लिए अलग शौचालय की मांग उठती रही है। सरकार इस बारे में दावे करती रही है लेकिन उसकी असल तस्वीर उस स्थिति में नजर नहीं आती जैसी घोषणा की जा रही है। अगर सड़क पर चलते हुए आपको शौचालय की जरूरत पड़ती है तो महिलाओं के लिए बड़ी समस्या होती है क्योंकि सरकार के आदेशों के बावजूद सिनेमा हॉल होटल वाले अपने यहां शौचालय की सुविधा नहीं देते। इसलिए इस समस्या का समाधान सरकार की मंशा के हिसाब से होता नजर नहीं आ रहा है।
मेरा सरकार मंत्रालय अधिकारियों से आग्रह है कि हर बाजार और मुख्य मार्गो पर थोड़ी थोड़ी दूर पर शौचालय का निर्माण कराया जाना चाहिए। बनाने वाली संस्था ध्यान रखे कि वो गंदे ना रहे और कर्मचारी उन्हें बंद ना करके जाए। वह 24 घंटे आम आदमी के लिए उपलब्ध हो। इसकी जिम्मेदारी और निगरानी डीएम के नेतृत्व में हो क्योंकि स्थानीय निकाय के लोग इस काम में सफल नहीं हो पा रहे है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
बाजारों और मुख्य मार्गो पर बनाए महिला पुरूष के शौचालय, निशुल्क और स्वच्छ हों
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