Date: 21/11/2024, Time:

उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने वाले छात्रों की संख्या में कमी लाने हेतु शिक्षा माफियाओं और इससे जुड़े भ्रष्ट मानसिकता वाले के विरूद्ध ?

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केंद्र व प्रदेश सरकार हर व्यक्ति को साक्षर और बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही हैं। इसके लिए बजट का बड़ा हिस्सा भी खर्च किया जा रहा है तो परीक्षा कराने के लिए नियम भी बनाएं जा रहे हैं। उसके बावजूद यह विषय सोचनीय है कि अपने देश से हर साल उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु काफी बड़ी तादात में नौजवान छात्र विदेश जा रहे हैं। इस संबंध में विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 13.35 लाख भारतीय छात्र 108 देशों में पढ़ाई कर रहे हैं तथा कनाडा अमेरिका और ब्रिटेन में इनकी पहली पसंद बन गई है। जहां तक कनाडा ब्रिटेन और अमेरिका की बात है तो यह भी कह सकते हैं वहां जाने के बाद छात्र पढ़ाई का खर्च खाली समय में काम कर निकाल लेते हैं और फिर और भी कई सुविधाएं तलाश ली जाती हैं शायद यही कारण है कि उच्च् शिक्षा के लिए विदेश जाने वाले छात्र दोगुना हो गए हैं।
लेकिन अपना घर और देश आसानी से कोई भी छोड़कर नहीं जाना चाहता फिर भी ऐसा क्यों हो रहा है सोचना होगा। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की समीक्षा करते हुए अफसरों को निर्देश दिए गए कि वो उच्च शिक्षा में नामांकन दर 50 फीसदी बढ़ाएं। अभी यूपी में 25 फीसदी नामांकन दर बताई जाती है। सीएम योगी ने यह भी आदेश दिया कि 15 मई तक स्कूल विश्वविद्यालयों में परीक्षा कराई जाएं और पाठयक्रम भी कम हो। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल जी की पीठ द्वारा दिए गए आदेश में कहा गया है कि नकल से कमजोर होते हैं योग्यता व समान अवसर के सिद्धांत पर हो काम। दूसरी तरफ स्कूल कॉलेज पुराने छात्रों का सम्मान कर उन्हें अपने पुराने कॉलेजों के प्रति आकर्षित करने का काम कर रहे हैं जिससे वो अपने बच्चों को अपने ही स्कूलों में पढ़ाएं।
इन सभी बातों से पता चलता है कि छात्रों को विदेश जाने से रोकने के लिए पारदर्शी परीक्षा कराने और स्कूल कॉलेजों में उन्हें परेशानी का सामना ना करना पड़े ऐसे प्रयास सरकार को कर रही है लेकिन इसके बाद भी विदेश जाने वालों की संख्या क्यों बढ़ रही है। मेरा मानना है कि बेसिक शिक्षा से ही इसके निजीकरण की कोशिश अफसरों से मिलीभगत कर अंग्रेजी माध्यमों के स्कूलों के संचालकों द्वारा की जा रही है। उससे बच्चों और अभिभावकों की मानसिक ऐसी हो जाती है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा अच्छी नहीं मिलेगी। बच्चों को परेशान ना किया जाए और अभिभावकों पर आर्थिक प्रभाव ज्यादा ना हो ऐसेे स्कूलों की संख्या कम नजर आती है जो है वो शिक्षा माफिया हो गए हैं। विभिन्न नामों पर मोटी फीस वसूल करते हैं और पढ़ाई में छात्रों के साथ भेदभाव इनके द्वारा किया जाता है। ऐसी चर्चा खूब सुनी जाती है। मुझे लगता है कि अपने देश में गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई हो तो शायद बच्चे विदेश जाना पसंद नहीं करेंगे और उन्हें शिक्षा प्राप्त करते ही नौकरी मिल जाए तो फिर तो कोई नहीं जाएगा लेकिन इसके लिए सरकार को सिर्फ बजट ही निर्धारित ना करके स्कूलों की व्यवस्था अभिभवकों की कमेटी को जाए और शिक्षा माफिया कॉलेज संचालकों की कार्यप्रणाली पर कसी जाए लगाम। विवि के खिलाफ शिकायत आए तो उसकी मान्यता रद की जाए तो मेरा मानना है कि विदेश जाने वाले छात्रों की संख्या में कमी आने लगेगी।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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