उच्च शिक्षा संस्थानों और नैक निरीक्षण संस्था के कुछ पदाधिकारियों की मिलीभगत से उनका स्तर बढ़ाने के लिए मिलने वाले ए प्लस रैटिंग का सच अब लगभग सबके सामने खुलकर आ गया है। क्येांकि इस बारे में घूसखोरी में पकड़े गए इसके प्रमुख राजीव सिजारिया और कुछ विवि और कॉलेजों से संबंध लोगों की गिरफ्तारी के बाद अब यह स्पष्ट हो चुका है कि ए प्लस मिलने से भले ही शिक्षा संस्थान के लोग खुश हो जाते हों लेकिन बच्चों का कोई भला इससे नहीं होने वाला था। मेरा मानना है कि शिक्षा संस्थानों के संचालक पढ़ाई का स्तर और नाम चमकाना चाहते हैं तो अच्छे शिक्षकों के माध्यम से बढ़िया पढ़ाई कराएं। 40 से 50 प्रतिशत वाले बच्चों के दाखिला कर उन्हें 70 से 80 प्रतिशत ले जाएं। इससे उनके कॉलेज का नाम भी खूब चमकेगा। कुछ लोगों का यह कहना बिल्कुल सही है कि नैक निरीक्षण शिक्षा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार तथा छात्र छात्राओं के हित में खर्च होने वाले पैसों को हड़पने का माध्यम बनता जा रहा है। मैं भी इससे पूरी तौर पर सहमत हूं कि जब यह इतना बड़ा प्रकरण खुलकर सामने आ गया है तो सरकार को नैक निरीक्षण पर प्रतिबंध लगाकर स्कूलों के लिए रिजल्ट लाने की सीमा निर्धारित करें कि जिसका रिजल्ट अच्छा होगा उन्हें सरकार द्वारा पुरस्कृत किया जाएगा। और ए प्लस वाले कॉलेजों से ज्यादा उनका नाम होगा इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
छात्र-छात्राओं के हितों पर कुठाराघात कर भ्रष्टाचार कर रही नैक निरीक्षण जैसी संस्थाओं पर लगे रोक
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