हिंदुओं के त्योहार दीपावली और मुस्लिमों के त्योहार शब ए बारात पर पटाखे छुड़ाने का सिलसिला बचपन से ही नजर आता रहा। वर्तमान समय में प्रदूषण के नाम पर इन पर प्रतिबंध लगाया जाने के आदेश जोरशोर से किए जाते हैं। यह सही है कि इसके धुएं से वायु प्रदूषण होता है और इसका आम आदमी के जीवन पर असर पड़ता है लेकिन सवाल यह है कि क्या प्रदूषण पटाखे और पराली जलाने से ही होता है तो मुझे लगता है कि इसके और भी बहुत से कारण है। जिन्हें रोकने का काम जिम्मेदारों को करना चाहिए। फिलहाल मीडिया की सुर्खियों में प्रदूषित वातावरण के लिए पटाखों की ही चर्चा जोर शोर से है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि आखिर प्रतिबंध के बावजूद यह आतिशबाजी आ कहां से रही है और बिक कैसे रही है। देश के जाने माने चिकित्सकों से लेकर समाजसेवी पर्यावरणविद एवं जागरूक नागरिक पटाखे जलाने और इसके प्रदूषण से दूर रहने का खूब आग्रह कर रहे हैं। अभी बीते दिवस केरल के मंदिर में हुए धमाके में 150 लोग घायल हो गए जिनमें दस की हालत गंभीर है। आए दिन पटाखा फैक्ट्रियों में धमाके में लोगों के मरने की खबरें पढ़ने सुनने को खूब मिलती है।
आश्चर्य इस बात का है कि हम पटाखों से दूरियां बनाने का संदेश दे रहे हैं। पुलिस आतिशबाजी बेचने वालों पर पैनी नजर बनाए है। छापों में पटाखें पकड़े जा रहे है। उसके बाद भी बिक रहे है। अब तो बड़ी कॉलोनियों में निवास करने वाले ऑर्डर देकर पटाखे मंगा रहे हैं। तो सवाल यह उठता है कि पुलिस कौन सी पैनी नजर रख रही है जो इतना दबाव होने पर भी दीपाली पर ज्यादा आतिशबाजी होती है और धमाकों की आवाज गूंजती है। त्योहार सबका अच्छे से मनाया जाए यह सब चाहते हैं लेकिन पटाखों पर प्रतिबंध का असर सबसे ज्यादा आम आदमी पर पड़ रहा है। क्योंकि चोरी छिपे महंगे दामो ंपर आतिशबाजी खरीदनी पड़ रही है और दूसरी ओर अगर प्रदूषण से बचाने के लिए कुछ जागरूक परिवार अपने बच्चों को आतिशबाजी से दूर रहने की बात समझा रहे हैं तो जब पड़ोसी के यहां जमकर आतिशबाजी होती है तो परिवारों में जो विद्रोह बच्चों द्वारा किया जाता है वो खुशियों की बजाय कलह का कारण ज्यादा बनता है। इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए मुझे लगता है कि पटाखे बेचने और पुलिस वाले तो फायदे में नजर आते हैं और आम आदमी हर प्रकार से परेशान। इसलिए प्रतिबंध के नाम पर कुछ पुलिसवालों की जेबें गरम होने और जो बच गया सो सिकंदर के समान जो भी सेटिंग से आतिशबाजी बेचने में सफल रहा वो मालामाल हो गया और आम आदमी ठगा सा भरे बाजार खड़ा नजर आता है।
सवाल यह उठता है कि जब सब जानते हैं आतिशबाजी नुकसान का कारण है। एक प्रकार से पटाखे छुड़ाना पैसों में आग लगाने के बराबर है। प्रदूषण को लेकर चारो तरफ बवाल मचा हैं और पुलिस प्रशासन पटाखों की बिक्री पर रोक लगाना चाहता है और एनजीटी और अदालत का भी आदेश है कि पटाखों की बिक्री ना हो तो वो कौन से कारण है कि सरकार पटाखों के उत्पादन पर रोक नहीं लगा पा रही। अगर साल भर आतिशबाजी बनने ही ना दी जाए और जिन थाना क्षेत्र में बनते पकड़ी जाए या जखीरा पकड़ा जाए तो थानेदार पर कार्रवाई की जाए तो मेरा मानना है कि आतिशबाजी से होने वाला प्रदूषण समाप्त हो सकता है और परिवार के मुखिया उस आर्थिक तंगी से बच सकते हैं जो बच्चों की खुशियों के लिए मजबूरी में की जाती है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
पुलिस की पैनी नजर, फिर भी बिक रहे हैं पटाखे, ना चलाने वाले परिवारों में बन रहे हैं कलह का कारण, सरकार क्यों नहीं लगाते इनके उत्पादन पर रोक
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