asd फर्जी ‘पत्रकारो’ की बढ़ती भीड़ चिंता का विषय – tazzakhabar.com
Date: 28/03/2025, Time:

फर्जी ‘पत्रकारो’ की बढ़ती भीड़ चिंता का विषय

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देश में क्या दुनिया में पत्रकारिता की आड़ में पूर्व में कई बड़ी दुर्घटनाएं और प्रमुख नेताओं के जीवन से खिलवाड़ हो चुका है। यह किसी से छिपा नहीं है। वर्तमान में देशभर में जिस प्रकार से विभिन्न चैनलों के पत्रकारों के नाम पर भीड़ बढ़ रही है तो इनको ध्यान में रखते हुए यह संख्या बहुत चिंता का विषय है। यह भी पक्का है कि जिस मीडिया की भीड़ को लेकर केंद्र सरकार से जिला पुलिस प्रशासन व नेता परेशान है कि इनको बैठाने और अन्य व्यवस्थाएं कैसे की जाए क्योंकि सब जगह सुनने को मिलता है कि बुलाए तो 20 पत्रकार थे और आ गए 100। यह भी पक्का है कि इनमें से 50 प्रतिशत तो किसी भी मीडिया बैनर को लेकर बनाई गई नीति पर खरे नहीं उतरते हों। इसमें भ्ी कोई दो राय नहीं है कि इनमें से आधे भी जिस सम्मेलन में वो जाते हैं उसकी एक लाइन की खबर भी शायद कहीं नहीं छपती। ऐसा कहने वालों से मैं भी सहमत हूं।
कुछ वर्ष पूर्व जब अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रधानमंत्री थे तो लखनउ के एक पत्रकार ने शिकायत की कि मुझे आपके सम्मेलन में नहीं बुलाया गया। जांच हुई तो सूचना निदेशक ने कहा कि आपको जिनमें बुलाया गया था उनके समाचार पत्रों की कटिंग उपलबध करा दें। बाद में पता चला कि वह किसी भी समाचार पत्र के पैनल में नहीं हैं।
मेरठ के डीएम रामकृष्ण मिश्रा ने एक बार मीडिया की भीड़ से पूछा कि खबर तो दो तीन चार जगह से ही मिलती है आप इतनी मेहनत क्यों कर रहे हो। यह बिंदु यहां रखने का मतलब इतना था कि हर स्तर पर सामान्य भाषाओं में चर्चित फर्जी मीडिया को लेकर बहुत परेशान है। इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी को चाय खाना या उपहार मिल रहे हैं। लेकिन पूर्व में बड़े बैनरों के नाम से जुड़ने वाले कुछ मीडियाकर्मियों को लेकर बातें हुई वह चिंताजनक है। वर्तमान में लोकसभा चुनाव चल रहे हैं। दिल्ली से लेकर गांव व आदिवासी क्षेत्रों तक नेताओं और पत्रकारों का समागम होना पक्का है। मैं किसी को गलत या सही नहीं बता रहा हूं लेकिन पूर्व को देखकर जो पत्रकार मेहनत कर अपनी व्यवस्था चला रहे हैं सारी कार्रवाई चाहे वह उत्पीड़न की हो उन्हीं पर लाद दी जाती है ऐसे में अपने अधिकारों की सुरक्षा और अपने सम्मान की रक्षा के लिए यह जरूर कहा जा सकता है कि राजनेता अधिकारी और मंत्री मीडिया की भीड़ के लिए किसी भी पत्रकार अथवा संगठन या मीडिया घराने को दोषी नहीं ठहरा सकते। उन्हें जिन्हें बुलाया गया है उनकी पहचान करने और किन्हें बुलाना है यह खुद तय करना है अगर भीड़ आती है तो यह उनकी गलती है किसी मीडिया कर्मी की नहीं। पुलिस प्रशासन के अफसरों से एक बात कहना चाहता हूं कि सबकुछ शांति से निपटे पूर्व जैसी घटना ना हो पत्रकारों का सम्मान बचा रहे इसके लिए वो सूचना अधिकारी को जिम्मेदारी दे कि जो वाकई में पत्रकार है और समाचार पत्र निकालते हैं और जिन्होंने डोमेन लेकर पोर्टल चला रहे हैं और किसी पैनल से है या समझते हैं कि इन्हें बुलाना जरूरी है वो ही आए यह ध्यान सूचना विभाग जिला पुलिस प्रशासन को रखना होगा।
अब कोई कहे कि पत्रकार कौन है तो शासन की नीति के तहत यह स्पष्ट है कि कोई समाचार पत्र निकालता है चैनल या वेबसाइट चला रहा है अथवा उसके पैनल पर है तो वह पत्रकार है इसमें छोटे बड़े में भेदभाव का अधिकार संविधान में किसी को नहीं है। इस बात को ध्यान में रखते हुए जो पत्रकार सही है उन्हें सभी जानते हैं जो गलत है उन्हें रोकना जिम्मेदारों का काम है पत्रकारों का नहीं। मगर अब किसी की गलती किसी पर थोपने के समान यह कहना बंद होना चाहिए कि मीडियाकर्मियों की संख्या निरंतर बढ़ रही हैं
प्रधानमंत्री गृहमंत्री और सभी प्रदेशों के सीएम इस बात पर ध्यान दें कि देश के कई सौ अधिवक्ताओं ने जो पत्र लिखकर चिंता व्यक्त की गई उस पर ध्यान देने की जरूरत है। खबर के अनुसार देश के जाने-माने 500 से ज्यादा वकीलों ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को चिट्ठी लिखी है। पत्र लिखने वालों में वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे से लेकर बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा समेत तमाम प्रमुख नाम शामिल हैं। इन वकीलों ने चिट्ठी में न्यापालिका की अखंडता पर खतरे को लेकर चिंता जताई है। इन वकीलों का कहना है कि कुछ श्खास समूहश् न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं और कोर्ट के फैसलों पर असर डाल रहे हैं।
पत्र में कहा गया है कि यह समूह राजनीतिक एजेडों के साथ आधारहीन आरोप लगा रहे हैं और न्यायपालिका की छवि के साथ खिलवाड़ करने की कोशिश कर रहे हैं। चिट्ठी में कहा गया है कि भ्रष्टाचार के मामलों में घिरे राजनीतिक चेहरों से जुड़े केसों में यह हथकंडे जाहिर तौर पर दिखते हैं। ऐसे मामलों में अदालती फैसलों को प्रभावित करने और न्यायपालिका को बदनाम करने के प्रयास सबसे अधिक स्पष्ट होते हैं। मुझे लगता है कि कुछ ऐसा ही मीडिया में हो रहा है।

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