केंद्र हो या प्रदेश सभी सरकारें देश के हर नागरिक को साक्षर और बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने का प्रयास कर रही है। इस बारे में यूपी और अन्य प्रदेशों के एडेड कॉलेजों को अरबो रूपया शिक्षकों और प्राचार्य के वेतन के लिए दे रही है। इसके पीछे उददेश्य सिर्फ यह है कि शिक्षित समाज हो और हर व्यक्ति साक्षर हो।
लेकिन जितना देखने में आ रहा है कुछ स्कूलों में मैनेजमेंट कमेटी और कई जगह प्रधानाचार्य या शिक्षकों के बीच की खींचतान और एक दूसरे पर दबाव बनाने के लिए कॉलेजों में हंगामें तथा मैनेजमेंट कमेटी और प्राचार्य में शीतयुद्ध की खबरें खूब पढ़ने सुनने को मिलती है। इस कड़ी में छोटे स्कूलों से लेकन डिग्री कॉलेजों तक का हाल एक जैसा ही है। फिलहाल हम मेरठ के शारदा रोड स्थित कनोहर लाल महिला डिग्री कॉलेज की प्राचार्या अलका चौधरी और मैनेजमेंट के बीच काफी समय से जारी अघोषित युद्ध को देख सकते हैं। द कनोहर लाल फाइल्स द अनमॉक्सड शीर्षक से उनके द्वारा लिखी गई किताब में कालेज के मैनेजमेंट में भ्रष्टाचार को उजागर करने की बात सामने आ रही है। पिछले कई माह से निलंबित चल रही प्राचार्या को एक जांच के बाद मिले आदेशों पर चौधरी चरण सिंह विवि की कुलपति प्रो. संगीता शुक्ला आदि की रिपोर्ट के बाद उन्हें चार्ज दिलाया गया। बताते हैं कि इधर अलका चौधरी को चार्ज मिला और उधर कुछ मिनटों के बाद ही उन्हें पुनः बर्खास्त कर दिया गया। चर्चा है कि अलका चौधरी ने प्रबंध कमेटी की अनुचित वित्तीय प्रशासनिक कार्यप्रणाली को कई माध्यमों से उजागर किया। जिससे नाराज चल रहे कनोहर लाल कॉलेज ट्रस्ट के अध्यक्ष दिनेश सिंघल मौखिक चर्चा अनुसार प्राचार्या को परेशान करने का कोई मौका नहीं चूक रहे हैं। महिला आयोग शिक्षा विभाग और अन्य न्याय मिलने के स्थानों पर प्राचार्या न्याय पाने का प्रयास कर रही हैं। मगर जैसा अखबारों में छपी खबरों से पता चलता है कालेज संचालक ट्रस्ट किसी की भी मानने को तैयार नजर नहीं आता है। उसके बिल्कुल निरंकुश होने की बातें सुनने को मिल रही है।
शिक्षा संस्थान कोई सा भी हो मगर इनमें प्रबंध कमेटी के नाम पर अध्यक्ष और मंत्री व अन्य पदाधिकारी और प्राचार्य व प्रोफेसरों के बीच जारी युद्ध में स्कूल मैनेजमेंट के मुकाबले शिक्षक और प्राचार्य को इनके द्वारा कमजोर किए जाने का विरोध करने और शिक्षा संस्थानों में सरकार की मंशा के तहत पढ़ाई का माहौल तैयार करने हेतु अब देशभर के प्राचार्याे की संस्था प्रोफेसरों का संगठन और इनमें कार्यरत कर्मचारियों की यूनियनें जैसा कि मौखिक रूप से पता चलता है। अगर व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ तो मैनेजमेंट कमेटी के खिलाफ मोर्चा खोल सकते हैं प्राचार्य और शिक्षकों के समर्थन में। इनका कहना है कि ज्यादातर स्कूल कॉलेज प्रबंधकों द्वारा अपने द्वारा बनाए गए संविधान और उदेदश्यों का भी पालन नहीं किया जाता। सिर्फ अपने अहम की संतुष्टि के लिए यह कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं।
प्रधानमंत्री जी यूपी के सीएम साहब अगर ऐसा चलता रहा तो आपकी जो बच्चों को उच्च स्तरीय शिक्षा दिलाने और हर व्यक्ति को साक्षर बनाने की महत्वकांक्षी योजनाएं हैं उनमें प्रतिरोध उत्पन्न हो सकता है। इसलिए मेरा मानना है कि शिक्षा मंत्रालय सभी स्कूल कॉलेजों के लिए अलग अलग नियम बनाएं कि प्रबंध कमेटी को क्या करना है तथा प्रधानाचार्य और शिक्षकों के क्या अधिकार है। फिर तय किया जाए कि फिर कोई भी एक दूसरे के अधिकारों पर कुठाराघात करने की बजाय छात्रों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए आपस में खींचतान नहीं करेंगे। अगर कोई करता पाया जाए तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। लेकिन फिलहाल जो प्रधानाचार्य और शिक्षकों व कर्मचारियों में संगठित होने की सुगबुगाहट है वो खुलकर सामने आए उससे पहले जिन कॉलेजों में प्रबंध कमेटी और प्राधानाचार्या का विवाद है वो समाप्त कराया जाए। क्योंकि व्यवस्था खराब हुई तो आसानी से सिमट नहीं पाएगी।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
एडेड कॉलेजों की मैनेजमेंट कमेटी और प्रधानाचार्य और शिक्षकों का टकराव शिक्षा प्रणाली को कर रहा है प्रभावित सरकार दोनों पर अंकुश लगाए, और प्रधानाचार्यों को उनका हक दिलाए
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