Date: 23/10/2024, Time:

आरोपी के फरार होने पर उसे दोषी नहीं ठहरा सकतेः हाईकोर्ट

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प्रयागराज, 21 जून। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि रात में हुई हत्या के बाद फरार होने के आधार पर किसी को हत्या का दोषी करार नहीं दिया जा सकता, जब तक कि उसकी संलिप्तता के ठोस सबूत न हो ।
कोर्ट ने फरार होने पर संदेह के कारण हत्या का दोषी ठहराकर सजा देने को सही व वैध नहीं माना और उम्रकैद की सजा रद्द करते हुए आरोपित को बरी कर दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता तथा न्यायमूर्ति शिव शंकर प्रसाद की खंडपीठ ने राजवीर सिंह की सजा के खिलाफ अपील को स्वीकार करते हुए दिया है।

मालूम हो कि 4 अगस्त 1999 की रात बिजली न होने के कारण घर के बाहर चबूतरे पर सोते समय कानूनगो नेम सिंह की हत्या कर दी गई। अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या के आरोप में दौकी थाने में एफआईआर दर्ज की गई। पुलिस ने चार्जशीट दायर की और सत्र अदालत आगरा ने उम्रकैद व 25 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। जिसे अपील में चुनौती दी गई थी।

कोर्ट ने कहा कि अभियोजन अपराध साबित करने में विफल रहा है। घटना के समय घर में दो पुरुष सदस्य भी घर में मौजूद थे। मृतक की पत्नी जमीरा देवी सुबह 5 बजे जब घर के भीतर से बाहर आई तो चारपाई के नीचे खून बहते देखा। पता चला किसी ने नेम सिंह की हत्या कर दी थी। बेटे सुरेंद्र कुमार ने घटना की एफआईआर दर्ज कराई और पुलिस ने गांव से फरार होने के संदिग्ध आचरण को लेकर अपीलार्थी को आरोपित किया।

कोर्ट ने कहा केवल किसी के संदिग्ध आचरण पर दोषी नहीं माना जा सकता। वह भी हत्या जैसे मामलों में। साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 के तहत कानून की नजर में सजा सही नहीं है। अभियोजन सबूत जुटाने में विफल रहा। कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है।

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