asd राजनीति में पारदर्शिता हेतु चुनावी बॉन्ड योजना पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय है उचित

राजनीति में पारदर्शिता हेतु चुनावी बॉन्ड योजना पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय है उचित

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चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता के विरूद्ध दायर याचिकाओं पर अलग अलग विचार होने के बावजूद चीफ जस्ट्सि डीवाई चन्द्रचूड़ जस्टिस संजीव खन्ना जस्टिस बीआर गवई जस्टिस जेबी पारदीवाला जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने सर्वसम्मति से फैंसला सुनाते हुए कहा कि राजनीतिक पार्टियों को हो रही फडिंग की जानकारी मिलना बेहद जरूरी है। इसी क्रम में एसबीआई बैंक को 2019 से अब तक चुनावी बांड की पूरी जानकारी देने का निर्देश देते हुए कहा कि राजनीति में पारदर्शिता हेतु लगाई गई रोक सही। सरकार को इस बारे में किसी अन्य बिक्लप पर विचार करना चाहिए।
क्या है योजना?
इस योजना को सरकार ने दो जनवरी 2018 को अधिसूचित किया गया था। चुनावी बॉन्ड एक तरह का वचन पत्र है। इसकी खरीदारी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं पर किसी भी भारतीय नागरिक या कंपनी की ओर से की जा सकती है। यह बॉन्ड नागरिक या कॉरपोरेट कंपनियों की ओर से अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को दान करने जरिया है। चुनावी बॉन्ड हर तिमाही की शुरुआत में सरकार की ओर से 10 दिनों की अवधि के लिए बिकी के लिए उपलब्ध कराए जाते रहे हैं। इसी बीच उनकी खरीदारी की जाती थी। सरकार की ओर से चुनावी बॉन्ड की खरीद के लिए जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के पहले 10 दिन तय किए गए हैं। लोकसभा चुनाव के वर्ष में सरकार की ओर से 30 दिनों की अतिरिक्त अवधि तय किए जाने का प्लान था। जिसके तहत कोई भी भारतीय नागरिक, कॉरपोरेट और अन्य संस्थाएं चुनावी बॉन्ड खरीद सकते थे और राजनीतिक पार्टियां इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर रकम हासिल कर लेते थे। बैंक चुनावी बॉन्ड उसी ग्राहक को बेचते थे, जिनका केवाईसी वेरिफाइड होता था। बॉन्ड पर चंदा देने वाले के नाम का जिक्र नहीं होता था।
मेरा मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीशों के द्वारा लिया गया ये फैंसला न्याय उचित है और इससे राजनीतिक दलों को दिये जाने वाले चंदे में पारदर्शिता और संतुलन बने रहने की संभावनाऐं बढ़ेगी। और भारत निवार्चन आयोग के चुनाव खर्च से संबंध दिये गये आदेशों का भी पालन होने की संभावनाऐं बढ़ जाएंगी। क्योंकि अगर एक पार्टी को चंदा ज्यादा मिलेगा तो दूसरी आर्थिक रूप से कमजोर होने के चलते अपना चुनाव अभियान बड़े दलों के उम्मीदवारों के समान नहीं चला पाएंगे और इससे जो निवार्चन के कार्य में सुधार के निर्देश समय समय पर दिये जाते है वो भी प्रभावित होंगे। इसमें कितनी सत्यता है ये तो कहने वाले ही जाने मगर कुछ लोगों का कहना था कि अन्य दलों के मुकाबले सत्ताधारी दल को कई गुना ज्यादा चंदा इस योजना में मिलने की संभावनाऐं बढ़ जाती है।

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