Date: 27/07/2024, Time:

एनजीओ दिवस पर विशेष! आज का युवा भ्रष्टाचार में नहीं सेवा भाव में विश्वास रखता है, सरकार चाहती है कि ईमानदारी से एनजीओ करे काम तो उन्हें आर्थिक सहायता देने के साथ ही बाबूशाही की निरंकुशता पर लगानी होगी रोक

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सरकार जब जनहित में कोई योजना बनाती है और सेवाभाव से काम करने वाले नागरिकों से उसमें अकेले या दोस्तों के साथ सहयोग सेवा का आहवान करती है तो परसेवा के दृष्टिकोण से ज्यादातर नागरिक एनजीओ या संस्थाएं गठित कर सहयोग का मार्ग तलाशती हैं। यहां तक तो सबकुछ सही है क्योंकि सरकार की मंशा और आम आदमी की सोच दोनों ही निस्वार्थ नजर आती हैं। मगर आजकल एक चर्चा सुनाई देती है कि ग्रामीण कहावत कुकुरमुत्तों की तरह या जिस प्रकार से एक जमाने में गली गली फाइनेंस कंपनियां खुलनी शुरू हुई थी उसी तरह पिछले कुछ वर्षा में एनजीओ और सामाजिक संस्थाएं बढ़ी और इनका पंजीकरण शुरू हुआ। हम जिन एनअीओ और संस्थाओं को भ्रष्ट और नकारा बताते हैं और जांच में उनके घपलों को लेकर काली सूची में डालते हैं या उनका नवीनीकरण नहीं किया जाता और कहा जाता है कि इस संस्था ने घोटाला किया।
सवाल यह उठता है कि आखिर उत्साह से भरे सेवा करने की इच्छा लेकर एनजीओ और संस्थाएं बनाने वाले भ्रष्ट और घपलेबाज कैसे हो जाते हैं। इस बारे में जहां तक मेरा अनुभव है इनसे संबंध हर विभाग सहित डिप्टी रजिस्टार चिट फंड सोसायटी आदि में जैसे ही पंजीकरण की कार्रवाई शुरू की जाती है वैसे ही कहे अनकहे हर व्यक्ति को घपला या घोटाला करने की ट्रेनिंग एक प्रकार से मिलने लगती है क्योंकि वो सोसायटी रजिस्टेशन एक्ट के तहत पूरी तैयारी के साथ कागज तैयार कर ले जाता है। लेकिन वहां कई वर्षों से एक सीट पर बैठे मठाधीश और भ्रष्टाचार में जेल जा चुके कुछ लोग या सलाहकार कागजों में कमी बताकर बिचौलियों के यहां सही कराने भेज देते हैं। यह मध्यस्थता करने वाले एक सी ही नियमावली नाम बदलकर उददेश्यों सहित पत्रावली तैयार कर जमा कराने के तो काफी पैसे लेते ही है आवेदक को यह भी समझा देते हैं कि पंजीकरण या नवीनीकरण के इतने पैसे लगेंगे। जिसने दे दिए उसका तो रजिस्ट्रेशन तुरंत हो जाता है आनाकानी करने वाले का काम आसानी से नहीं हो पाता है। मजबूर होकर ज्यादातर को भेंट चढ़ानी ही पड़ती है। और लेनदेन की यह ट्रेनिंग यही खत्म नहीं होती। आगे चलकर भी इसका काम पड़ता ही रहता है।
अगर सरकार किसी ईमानदार एजेंसी से जांच कराए तो पता चलेगा कि एक एक जनपद में 50 हजार के आसपास तक सोसाटियां और एनजीओ रजिस्टर्ड हैं लेकिन इनमें से चलते कुछ ही है क्योंकि विभाग द्वारा उत्पन्न की जाने वाली परेशानियां और सरकार व नागरिकों का सहयोग ना मिलना इसमें बड़ी बाधा पैदा करते हैं।
खबर तो यह भी है कि जो सोसाटियां रजिस्टर्ड होती है उनमें से 70 प्रतिशत कागज नियमावली और उददेश्यों से संबंध लगाए जाते हैं उनमें संस्था का नाम और पता छोड़कर सबकुछ एक सा ही होता है क्योंकि बिचौलियों द्वारा कंम्प्यूटर से उठाकर कागज तैयार कर दिए जाते हैं और अधिकारी से उनकी सांठगांठ होती है इसलिए काम भी रजिस्ट्रेशन का तुरंत हो जाता है।
देश के हर गांव में चार से पांच संस्थाएं तो कम से कम रजिस्टर्ड होगी ही लेकिन एनजीओ काम करने के नाम पर कागज के शेर ही बनकर रह जाते हैं क्योंकि नागरिकों को नीति नियम से सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए जो आर्थिक सहायता मिलती है उनमें से ज्यादातर तो पहले ही बाबूशाही की भेंट चढ़ जाती है इसलिए यह आगे कामयाब नहीं हो पाते मगर दोष एनजीओ संचालक का हो जाता है जबकि असल में दोषी अफसर और बाबू ही होते बताए जाते हैं। खबर तो यह भी है कि कुछ विभागों में दलाल घूमते हैं और वो एनजीओ को सहायता दिलवाने के नाम पर जो धनराशि दिलवाते हैं उसका आधा तक वसूल लेते हैं जो सबमे बंटता है जो आधा बचा उसमें काम एनजीओ कैसे करे क्योंकि आने जाने और पीड़ितों को सहायता दिलाने में भी पैसा लगता है। इसलिए या तो यह एनजीओ ठप हो जाते हैं या बाबूशाही के रंग में रंगकर अपनी दुकान चलाते रहते हैं। सरकार भी हर साल काफी एनजीओ को काली सूची में डालती हैं और कुछ की जांच कराई जाती है। जिसकी जांच होती है उसको तो थोड़ा बहुत मिला होता है उससे ज्यादा खर्च हो जाता है।
कुछ मीडियावालों को ना तो असलियत की जानकारी होती है ना वो करना चाहते हैं इसलिए वो अधकचरी जानकारी उठाकर पाठकों के सामने परोसते हैं परिणामस्वरूप एनजीओ संचालक बेचारे बिना किसी कसूर के दागदार बन बैठते हैं।
मेरा मानना है कि सरकारी चाहती है कि जो योजना नीति जनहित में उसके द्वारा बनाए जा रहे हैं उनका लाभ पात्र व्यक्ति तक सीधा पहुंचे और आम आदमी भी इसमें भरपूर सहयोग दे सके तो उसे इन एनजीओ के लिए कुछ आर्थिक सहायता तय करनी चाहिए जिससे यह अपनी पत्रावलियां तैयार कराकर पात्रों तक आने जाने में परेशानी महसूस ना करे। क्योंकि किसी योजना को लेकर कही जाना होता है तो खर्च तो होता ही है। तथा बाबूशाही की कार्यप्रणाली पर अंकुश लगाया जाए। और ऐसी व्यवस्था की जाए कि एनजीओ बिना किसी बिचौलियों के रजिस्टर्ड हो जाए तो इस एनजीओ दिवस पर कहा जा सकता है कि नागरिक सेवाभाव से सरकार की योजनाओं का लाभ पात्रों तक पहुंचान का प्रयास करेंगे क्योंकि जो नई पीढ़ी आ रही है वो भ्रष्टाचार में कम हर क्षेत्र में सेवाभाव में ज्यादा विश्वास रखती है। अगर उसे भरपेट रोटी और सम्मान मिलने की व्यवस्था हो तो वह अपने एनजीओ को कलंकित नहीं होने देंगे।

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