Date: 27/07/2024, Time:

तनख्वाह जमीन दान की या सरकार की, शिक्षा संस्थानों पर कुछ परिवारों का कब्जा क्यो? मैनेजमेंट कमेटी हो समाप्त या सदस्यता अभियान हो ओपन!

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केन्द्र और प्रदेश की सरकारें और कुछ समाजिक संगठन गरीब अमीर महिला पुरूष सबकी हर उम्र के नागरिक को साक्षर बनाने और शिक्षा दिलाने के लिए भरपूर प्रयास कर रही है। लेकिन तनख्वाह जमीन सरकार की या दान की मगर मैनेजमेंट के नाम पर कब्जा कुछ घरानों का से जुड़े पदाधिकारी स्कूल हो या कालेज शिक्षक शिक्षिकाओं व प्रधानाचार्यां की नियुक्ति और कई मामलों में एडमिशन दिये जाने में भी इनके प्रकार से अड़गे अटकाने का काम करते बताये जाते है। इस संदर्भ में कुछ पीड़ितों का मौखिक रूप से कहना है कि अरबो रूपयों की सरकार की या दान की जमीन और करोड़ों रूपये साल की दी जाने वाली तनख्वाह की भरपाई तो करे सरकार अथवा दानदाता और अपने हिटलरशाही आदेश लगाने की कोशिश करे इन स्कूल कालेज की कमेटियों के कुछ पदाधिकारी आखिर क्यों?
कितने ही जागरूक नागरिकों का कहना है कि सरकार या तो ऐसे कालेज और स्कूलों से मैनेजमेंट के दिये खत्म करे और जनपदों में जिलाधिकारी के मार्गदर्शन में इनका संचालन कराये या फिर मैनेजमेंट कमेटियां कालेज संस्थान की जमीन अगर सरकार की है तो सर्किल रेड से सरकार को पैसा दे और हर महीने टीचर व प्रिसींपल आदि की तनख्वाह की अदायगी ये कमेटियां अपने श्रोत्रों से धन अर्जित करके जिस प्रकार से अन्य प्राईवेट कालेज और स्कूल के संचालक कर रहे है। स्मरण रहे कि कई नामचीन कालेज व स्कूल तो ऐसे है जिनमें शुरूआती दौर में कुछ अच्छी सोच और मानवीय दृष्टिकोण रखने वाले निस्वार्थसेवाभावी लोगों ने इन संस्थानों को अच्छी प्रकार से चलाने और उसमें जागरूक लोगों के सुझाव मिलते रहे और समय पड़ने पर आर्थिक सहायता भी प्राप्त की जा सके मैंबर बनाये बाद में जो पदाधिकारी आने शुरू हुए उनके द्वारा लगभग हर कमेटी के कार्यकाल में गोपनीय रूप से मैंबरशिप खोली जाती है और फिर अपने अपने सौ दो सौ लोगों को सदस्य बनाकर बंद कर दी जाती है आम आदमी को हवा भी नहीं लगती इसलिए यह प्रबंध समितियां और इनके संचालक सरकार या दानदाताओं के माल पर शिक्षा दिलाने के नाम पर अपनी नेतागिरी चलाने में लगे है। यहां तक भी ठीक है मगर अब तो कुछ पदाधिकारी मठाधीश बनते जा रहे उससे शिक्षा और शिक्षक व छात्र मौखिक खबर के अनुसार हो रहे है प्रभावित।
चर्चा से पता चलता है कि उत्तरी भारत के प्रसिद्ध शिक्षा संस्थान मेरठ कालेज की वर्तमान कमेटी के कुछ पदाधिकारियों द्वारा पूर्व सदस्य बनाने के मामले में मौखिक खबर के अनुसार जब यह दृष्टिकोण अपनाया गया तो बताते है कि दूसरे ग्रुप के एक व्यक्ति कोर्ट से स्टे लिया और वो अपने चहेतों को मैंबर बनाने की मंशा से वंचित हो गये। कितने ही जागरूक नागरिक का कहना है कि हर बच्चे को शुरू से लेकर उच्च स्तर तक की अच्छी शिक्षा बिना किसी राजनीतिक मौहाल के सरकार की शिक्षा नीति के तहत उपलब्ध हो सके इस दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए इन मैनेजमेंट कमेटियों को खत्म किया जाए और अगर इनके ही माध्यम से ही व्यवस्थाऐं चलवानी है तो हर वर्ष खुले आम सदस्यता अभियान चलाया जाए और जो भी मैंबर बनना चाहे उसे फार्म उपलब्ध कराया जाए और मैंबर शुल्क भी इतना रखा जाए जो हर व्यक्ति आसानी से दे सके। मैं भी नागरिकों की ऐसी मौखिक मांग से पूर्ण रूप से सहमत हूं क्योंकि इससे एक तो स्कूल की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और हर काम के लिए सरकार की ओर नहीं देखना होगा और बच्चों की शिक्षा का माहौल बनाने हेतु हॉस्टल स्टॉप के निवास और सौन्दर्यकरण की व्यवस्था भी पुख्ता हो सकती है। सरकार को जनहित में एक काम और करना चाहिए कि जिन स्कूलों को आर्थिक सहायता वो देती है उनको विभिन्न प्रकार की मान्यताऐं दिलाने का काम जिलाधिकारी जी के माध्यम से किया जाए क्योंकि नेक आदि की मान्यता लेने के नाम पर मौखिक चर्चा अनुसार काफी पैसा खर्च किया जाता है। जो नहीं होना चाहिए।

सदस्यता बढ़ाने के संदर्भ में कुछ संस्थाऐं कहती है कि मैंबरशिप ओपन करने से कुछ ऐसे लोग भी सदस्य बन सकते है जो संस्थान के कार्यों मे अड़गा अटका सकते है। तो इस संदर्भ में मेरा मानना है कि फार्म सबको दिये जाए और भरवाये जाए और जिस व्यक्ति के बारे में ऐसा लगता है कि वो परेशानी उत्पन्न कर सकता है उसे स्पष्ट कारण बताकर ना दी जाए सदस्यता लेकिन मैंबरशिप जरूर खोली जाए।

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