आज एक खबर पढ़ने को मिली कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पोकर रमी जुआ नहीं है कौशल के खेल हैं। न्यायमूर्ति शेखर वी सर्राफ व न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ल की खंडपीठ ने मेसर्स डीएम गेमिंग प्राइवेट लिमिटेड की याचिका पर दिया है। संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत याचिका दाखिल कर गत 24 जनवरी को डीसीपी, सिटी कमिश्नरेट आगरा के आदेश को चुनौती दी। जिस पर यह फैसला आया। सुनने पढ़ने में यह सामान्य बात नजर आती है लेकिन इस खबर को पढ़कर कुछ पाठकों द्वारा जो प्रतिक्रिया दी गई उसके अनुसार अब उन पुलिसकर्मियेां का क्या होगा जो ऐसे खेलों को जुआ बताकर लोगों को पकड़ते हैं और छोड़ने के नाम पर क्या क्या होता है वो किसी को बताने का आवश्यकता नहीं है। क्योंकि खासकर विजय दिवस के रूप में मनाई जाने वाली दीपावली और गोवर्धन के दिन कई लोग धार्मिक भावनाओं से पोकर और रमी खेलते हैं तो कुछ मनोरंजन के लिए। अगर पुलिस को पता लग जाए या खेलने खिलाने वालो की कोई खबर देता है तो कुछ पुलिसकर्मियों की बल्ले बल्ले होती है त्योहार भी शानदार हो जाता है।
पिछले पांच दशक में ऐसे बहुत मामले दिखाई दिए जो शायद पोकर व रमी की तरह किसी जुर्म की श्रेणी में नहीं आते लेकिन कानून की आड़ में कुछ लोग अपना बैंक बैलेंस बढ़ाने का कोई मौका नहीं चूकते हैं। क्योंकि यह ऐसे मुददे हैं कि अदालत तो शायद इनका स्वत संज्ञान नहीं लेगी इसलिए जनहित याचिका दायर किसी को नागरिकों केे होने वाले उत्पीड़न को रोकने के प्रयास करने चाहिए। यह तो किसी ने सिटी कमिश्नरेट के आदेश को चुनौती दी और अब उससे पूरे समाज को राहत मिलने का रास्ता साफ हो गया। क्योंकि पोकर और रमी को लेकर खबरों से पता चलता रहता है। हमारी सरकारें ही ऐसे कानूनों की आड़ लेकर लोगों को परेशान और सरकार को बदनाम करने वालों पर अंकुश लगाने वालों के लिए ऐसे नियमों का खुलासा कर जानकारी दे तो वो सबके हित में होगी।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
पुलिस वाले दें ध्यान! हाईकोर्ट ने कहा: पोकर और रमी नहीं है जुआ, सरकार ऐसे मामलों को लेकर बने फालतू नियमों को करे समाप्त
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