नई दिल्ली 10 फरवरी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि अगर न्यायाधीश प्रशिक्षण के लिए राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी जा सकते हैं, तो वकील क्यों नहीं जा सकते। अदालत ने यह भी कहा कि सभी वकीलों को अनिवार्य प्रशिक्षण से गुजरना चाहिए और उन्हें तब तक प्रैक्टिस करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, जब तक उनके पास किसी मान्यता प्राप्त विधि विश्वविद्यालय से प्रमाण पत्र न हो।
जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने बंगाल शिक्षक भर्ती घोटाले के संबंध में गिरफ्तार तृणमूल कांग्रेस के विधायक माणिक भट्टाचार्य के बेटे सौविक भट्टाचार्य की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।
भट्टाचार्य की ओर से कोर्ट में पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि समन आदेश के अभाव में एक अधिवक्ता ने निचली अदालत में भी जमानत याचिका दायर की थी। इस पर पीठ ने कहा कि आपके पास अधिवक्ताओं के लिए कानून अकादमी क्यों नहीं है? हमारे पास जजों के लिए तो है। बार काउंसिल द्वारा दोषी अधिवक्ताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। उन्हें ठीक से शिक्षित किया जाना चाहिए। कुछ करो। प्रत्येक अधिवक्ता के लिए अनिवार्य प्रशिक्षण होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अगर जज राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी जा सकते हैं तो वकील क्यों नहीं? जब तक उनके पास किसी मान्यता प्राप्त विधि विश्वविद्यालय से प्रमाणपत्र न हो, उन्हें वकालत करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। यह विदेशों में है। ऐसा नहीं है कि कोई भी इसे नहीं जानता है। समस्या यह है कि कोई भी इसे लागू नहीं करना चाहता है।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसिटर जनरल एसवी राजू को निर्देश दिया कि वह इस बात की जांच करें कि क्या अदालत ने कोई समन आदेश पारित किया है। बंगाल में शिक्षकों की भर्ती में कथित अनियमितताओं को लेकर दर्ज मामले में जेल में बंद तृणमूल कांग्रेस विधायक माणिक भट्टाचार्य और उनके बेटे की जमानत के लिए पिछले साल 21 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर प्रवर्तन निदेशालय से जवाब मांगा गया था।