Date: 05/12/2024, Time:

हिन्दू विवाह संस्कार है नाच गाने का आयोजन नहींः सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली 01 मई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह एक संस्कार है, जिसे भारतीय समाज में पवित्र संस्था का दर्जा हासिल है। यह नाचने गाने का आयोजन नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा, हिंदू विवाह को वैध बनाने के लिए इसे उचित संस्कारों व रीतियों के साथ किया जाना चाहिए। विवाह से जुड़ी रीतियों का निष्ठापूर्वक पालन होना चाहिए। शीर्ष कोर्ट ने कहा, विवादों के मामले में रीतियों के पालन का प्रमाण पेश करना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत हिंदू विवाह की कानूनी जरूरतों व पवित्रता को स्पष्ट किया।

अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि हिंदू विवाह को वैध होने के लिए, इसे सप्तपदी (पवित्र अग्नि के चारों ओर फेरे के सात चरण) जैसे उचित संस्कार और समारोहों के साथ किया जाना चाहिए और विवादों के मामले में इन समारोह का प्रमाण भी मिलता है. जस्टिस बी. नागरत्ना ने अपने फैसले में कहा, हिंदू विवाह एक संस्कार है, जिसे भारतीय समाज में एक महान मूल्य की संस्था के रूप में दर्जा दिया जाना चाहिए. इस वजह से हम युवा पुरुषों और महिलाओं से आग्रह करते हैं कि वो विवाह की संस्था में प्रवेश करने से पहले इसके बारे में गहराई से सोचें और भारतीय समाज में उक्त संस्था कितनी पवित्र है, इस पर विचार करें.

उन्होंने कहा, विवाह ‘गीत और नृत्य’ और ‘शराब पीने और खाने’ का आयोजन नहीं है या अनुचित दबाव द्वारा दहेज और उपहारों की मांग करने और आदान-प्रदान करने का अवसर नहीं है. जिसके बाद किसी मामले में आपराधिक कार्यवाही की शुरुआत हो सकती है. विवाह कोई व्यावसायिक लेन-देन नहीं है, यह भारतीय समाज का ऐसा महत्वपूर्ण आयोजन है जो एक पुरुष और एक महिला के बीच संबंध स्थापित करने के लिए मनाया जाता है, जो भविष्य में एक विकसित होते परिवार के लिए पति और पत्नी का दर्जा प्राप्त करते हैं.

शीर्ष कोर्ट ने एक महिला की ओर से उसके खिलाफ तलाक की कार्यवाही स्थानांतरित करने की मांग वाली याचिका पर फैसला सुनाते हुए ये टिप्पणियां कीं। सुनवाई के दौरान, पति और पत्नी ने संयुक्त आवेदन कर यह घोषणा की कि उनकी शादी वैध नहीं थी। उन्होंने कहा, उनके द्वारा कोई विवाह नहीं किया गया, क्योंकि कोई रीति-रिवाज, संस्कार या अनुष्ठान नहीं किए गए। हालांकि, उन्हें एक जनकल्याण समिति (पंजीकृत) से प्रमाण पत्र लेने के लिए बाध्य होना पड़ा। तथ्यों के बाद पीठ ने घोषित किया कि यह वैध विवाह नहीं था। कोर्ट ने दर्ज किए मुकदमों को भी रद्द कर दिया।

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