Date: 10/02/2025, Time:

पहले अयोध्या और अब बदरीनाथ सोचे भाजपा

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जनसंघ की स्थापना से लेकर भाजपा तक हमेशा पूरी राजनीति धर्म और हिंदूवाद की तरफ पूर्व में घूमती नजर आई लेकिन पिछले कुछ वर्षों से भाजपा के वरिष्ठ नेताओं द्वारा देश की एकता में विश्वास रखने वालों को भी अपने साथ जोड़ने की कोशिश की गई। तथा भाजपा ने सत्ता पाने के लिए मोदी के नेतृत्व में जो चुनाव लड़ा वो भी ज्यादातर भगवान राम और धार्मिकता को प्रमुखता देकर लड़ा गया लेकिन देश की 18वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में और अब विधानसभाओं के उपचुनाव के जो परिणाम आए उससे एक बात तो साफ हो गई कि आम नागरिकों का भगवान राम और धर्म के प्रति आस्था तो बढ़ी लेकिन इस नाम पर चुनाव लड़ने वाले दलों से मतदाता थोड़ा दूर हुआ है। क्योंकि ऐसा नहीं होता तो पूरे विश्व में प्रसिद्धि दिलाने में सफल अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और भव्य स्थापना व विकास की लहर चलाने के बाद भी अयोध्या से सपा उम्मीदवार चुनाव नहीं जीतते। और अब दुनियाभर के हिंदुओं के आस्था के प्रतीक बदरीनाथ की सीट भी इस पार्टी के हाथ से निकल गई। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए मेरा मानना है कि सत्ताधारी दल को कार्यकर्ताओं को अपने साथ जोड़ने के साथ ही अब धार्मिक मुददों के अतिरिक्त जनसमस्याओं के समाधान पर भी विशेष ध्यान देना होगा। क्योंकि ऐसा नहीं किया गया तो पहले अयोध्या और अब बदरीनाथ की पराजय सत्ताधारी दल को कमजोर करेगी ही कार्यकर्ताओं का मनोबल प्रभावित हो सकता है। क्योंकि लोकसभा चुनाव परिणामों से उत्साहित इंडिया गठबंधन यूपी के 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव में पूरे दमखम के साथ उतरेगी।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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