asd बंद हो संविदा व ठेकेदारी व्यवस्था के कर्मचारियों का आर्थिक और मानसिक उत्पीड़न

बंद हो संविदा व ठेकेदारी व्यवस्था के कर्मचारियों का आर्थिक और मानसिक उत्पीड़न

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सरकारी कार्यालयों शिक्षण संस्थाओं आदि में निरंतर कर्मचारियों के सेवानिवृत होने और नए की नियुक्ति ना होने से प्रभावित हो रहे कार्यों को पूरा कराने और नागरिकों की समस्याओं के समाधान के लिए सरकारी नीति के तहत संविदा कर्मियों की तैनाती पिछले सालों से की जा रही है। इसमें कोई बुराई भी नजर नहीं आती है। मगर स्थायी कर्मचारियों और अधिकारियों के मुकाबलें कम वेतन पर रखे जाने वाले संविदा कर्मियों का कहीं कार्यालय और स्कूल संचालक तो कहीं स्थायी अधिकारी व कर्मचारी आर्थिक मानसिक और सामाजिक उत्पीड़न करने में लगे बताए जाते हैं। ऐसी खबरें पिछले कुछ दिनों से खूब पढ़ने सुनने को मिल रही है क्योंकि स्थायी कर्मचारियों के अपने संगठन है। जरा सी बात होने वो हड़ताल पर चले जाते है। और वह प्रदेश स्तर तक हो जाती है इसलिए इनसे तो अधिकारी और स्कूल कमेटियां भी घबराती हैं मगर संविदाकर्मियों का संगठन इतने मजबूत नजर नहीं आते। दूसरे जब इन्हें रखा जाता है तो जिन शर्तों पर हस्ताक्षर कराए जाते हैं वो भी उत्पीड़न के विरूद्ध और अधिकार मांगने में बाधा उत्पन्न करते है। परिणामस्वरूप यह कर्मी 32 दांतो के बीच जीभ के समान कार्य करने के लिए मजबूर है। मेरा मानना है कि सरकार और अधिकारी संविदाकर्मियों की समस्याओं के समाधान पर ध्यान दें। अगर यह किसी वजह से अपनी मांगों को लेकर मुखर हो गए तो स्थायी कर्मचारी निरंकुश हो सकते है। बताते हैं कि सरकारी छुटिटयों में इनसे काम कराया जाता है मगर सुबह को जल्दी व देर शाम तक काम लिया जाता है। कही तों एक संविदाकर्मी पर इतना काम लाद दिया जाता है जितना पांच स्थायी कर्मचारी भी नहीं करते है। उत्पीड़न की यह सोच कभी भी नागरिकों और कार्यालयों के लिए परेशानी का कारण बन जाती है। ऐसा ना हो इसलिए संविदा कर्मियों को भी स्थायी कर्मचारियों की तरह छुटिटयां और निर्धारित समय में ही काम कराया जाए। और इनका उत्पीड़न करने वाले अधिकारियों से हो जवाब तलब और उन्हें जनहित में निलंबित भी किया जाए क्योंकि अब जनहित की योजनाएं लागू कराने में पात्रों को लाभ पहुंचाने में इनका बहुत बड़ा योगदान कम तनख्वाह में ज्यादा मेहनत कर दिया जा रहा है। इसी प्रकार से सरकारी कार्यालयों में जो ठेकेदारी प्रथा लागू है वो भी नौजवानों जिन्हें ठेकेदारों द्वारा दफ्तरों में रखवाया जाता है उनका उत्पीड़न अफसर और ठेकेदार मिलकर करते हैं क्योंकि जब मर्जी होते हैं ठेकेदार संबंधित अफसरों से मिलकर कर्मचारियों की तनख्वाह खुद तो बढ़वा लेता है लेकिन कर्मचारियों की नहीं बढ़ाई जाती और काम उनसे भरपूर लिया जाता है। कोई इसका विरोध करता है तो उसे आरोप लगाकर बाहर खड़ा कर दिया जाता हैं। मैं यह तो नहीं कहता कि यह बिंदु सभी पर लागू होते हैं मगर सरकार को इन ठेकेदारों पर देना चाहिए ध्यान।

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