नई दिल्ली 09 मई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नगरपालिकाओं के चयनित सदस्यों को लोक सेवकों या उनके राजनीतिक आकाओं की मर्जी से सिर्फ इसलिए नहीं हटाया जा सकता कि तंत्र को उनसे परेशानी हो रही है। इसी के साथ उसने महाराष्ट्र के तत्कालीन शहरी विकास मंत्री के उस फैसले को रद कर दिया जिसमें उन्होंने नगरपालिकाओं के पार्षदों/पदाधिकारियों को हटा दिया था।
शीर्ष कोर्ट ने चयनित सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई को पक्षपातपूर्ण, अन्यायपूर्ण और अप्रासंगिक अवधारणाओं पर आधारित बताया। जस्टिस सूर्यकांत एवं जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि नगरपालिका बिल्कुल जमीनी स्तर के लोकतंत्र की इकाई है। किसी नगरपालिका के चयनित सदस्य अपने रोजमर्रा के काम में समुचित सम्मान और स्वायत्तता के हकदार हैं। सरकारी अधिकारी या उनके सियासी आका इन सदस्यों के दैनिक कामकाज में अनावश्यक अड़ंगा नहीं डाल सकते।
कलेक्टर की जांच में सही पाए गए आरोप
एक याचिकाकर्ता पर महाराष्ट्र नगरपालिका परिषद, नगर पंचायत एवं औद्योगिक नगरी अधिनियम, 1965 के प्रविधानों के उल्लंघन और अनुमति से ज्यादा घरों के निर्माण का आरोप लगाया गया था। कलेक्टर की जांच में आरोप सही पाए गए और आरोपित को कारण बताओ नोटिस भेजा गया।
चुनाव लड़ने से भी कर दिया गया था प्रतिबंधित
कारण बताओ नोटिस की प्रक्रिया लंबित रहते हुए प्रभारी मंत्री ने दिसंबर 2015 में स्वयं संज्ञान लेते हुए याचिकाकर्ता मार्कंड उर्फ नंदू को उस्मानाबाद नगरपालिका परिषद के उपाध्यक्ष पद से हटाने का आदेश पारित कर दिया था। साथ ही उन्हें छह साल तक चुनाव लड़ने से भी प्रतिबंधित कर दिया गया था।इसी प्रकार, नालदुर्गा नगरपालिका परिषद के अध्यक्ष को पद से हटाकर छह साल तक चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया गया। उनके खिलाफ सबसे कम बोली लगाने वाली कंपनी की अनदेखी कर कूड़ा उठाने और उसके निष्पादन का ठेका किसी दूसरी कंपनी को देने की शिकायत की गई थी।
साल 2016 में बाम्बे हाई कोर्ट ने सुनाया था फैसला
इससे पहले 2016 में बाम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने सरकार द्वारा पार्षदों को अयोग्य घोषित किए जाने के आदेश में हस्तक्षेप से इन्कार कर दिया था। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि दोनों मामलों में की गई कार्रवाई और चुनाव लड़ने पर छह साल का प्रतिबंध उनके कथित कदाचार के अनुपात में काफी ज्यादा है।
शीर्ष कोर्ट ने कहा जिस प्रकार कलेक्टर के पास कारण बताओ नोटिस के चरण में मामला लंबित रहने के बावजूद मामला राज्य सरकार के पास स्वत: संज्ञान के जरिये स्थानांतरित कर दिया गया और प्रभारी मंत्री ने जल्दबाजी में हटाने का आदेश भी पारित कर दिया, उससे हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि कार्रवाई पक्षपातपूर्ण, अन्यायपूर्ण और अप्रासंगिक अवधारणाओं पर आधारित है।
सुप्रीम कोर्ट ने दोनों मामलों में दी थी यह अनुमति
शीर्ष कोर्ट ने यह भी कहा कि कूड़ा उठाने और निष्पादन के लिए ठेका काफी चर्चा के बाद दिया गया था और यह सुनिश्चित किया गया था कि नगरपालिका को कोई नुकसान न हो। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों मामलों में पहले ही याचिकाकर्ताओं को सुनवाई लंबित रहते अपने-अपने पदों पर बने रहने की अनुमति दे दी थी।